धर्म ,सत्य ,न्याय की रक्षा के लिए श्री कृष्णावतार
डॉ शोभा भारद्वाज
‘नीतिज्ञ , राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ श्री कृष्ण’ जब भी धरती पर पाप अनाचार बढ़ता है भगवान धरती पर अवतरित होते है कंस के कारगार में भगवान श्री कृष्ण अवतरित हुए हुए कंस के वध के बाद द्वारिकापुरी नगरी बसा कर वहीं बस गये आर्यावर्त की राजनीति में उनका दखल था वह भगवान की तरह पूजित थे महाभारत काल में मुख्य रूप से 16 महाजनपद थे सभी महत्वकांक्षी आपस में शक्ति प्रदर्शन करते रहते थे द्यूत उनका प्रिय खेल था चौसर की चालों पर अपनी प्रजा अपने राज्य को दावं पर लगा देते थे श्री कृष्ण का उद्देश्य सत्य ,धर्म एवं न्याय पर आधारित शक्तिशाली सत्ता का निर्माण करना था जिसके आधीन सभी महाजनपद हो एक मजबूत आर्यवर्त गीता में उन्होंने कहा था
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम ||
कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव पांडवों की सेना मरने मारने को तैयार आमने सामने खड़ी थी समय के महान राजनीतिज्ञ जिन्होंने राजनीति को नयी दिशा दी थी कूटनीतिकार द्वारिकाधीश अर्जुन के सारथि हाथ में रथ की डोर ले कर युद्ध के मैदान में विचलित ‘अर्जुन’ को गीता का उपदेश दे रहे थे |सामने हस्तिनापुर की द्यूत सभा के सभी पात्र खड़े थे | युधिष्टिर अपने भाईयों सहित अपमान का बदला लेने के लिये प्रतिज्ञा बद्ध थे| विपक्ष में कौरवों पांडवों के पितामह भीष्म ,हस्तिना पुर की रक्षा में समर्थ कोरवों के प्रधान सेनापति थे |
|हस्तिनापुर की द्यूतसभा में सम्राट युधिष्ठर जुये में सब कुछ हार चुके थे इंद्रप्रस्थ का राजपाठ अपने महान योद्धा भाई एवं स्वयं को यहाँ तक महारानी द्रोपदी को भी |दुर्योद्धन ने अपने छोटे भाई दुशासन को आदेश दिया जुए में हारी पांडवों की पत्नी अब उनकी दासी है राज्यसभा में लाया जाये |कुछ समय पहले की साम्राज्ञी जिसने सम्राट के साथ राजसूय यज्ञ किया था लाचार दीन हीन उसे लम्बे केशों से घसीटता दुशासन राजसभा में ला रहा था द्रौपदी पूरे बल से प्रतिरोध कर रही थी, राजसभा में जब ला कर पटका यहाँ भीष्म जैसे महान पितामह उन्होंने हस्तिनापुर के सिंहासन की रक्षा का अपने पिता को वचन दिया था काश स्त्री की रक्षा का भी दायित्व समझते ,द्रोणाचार्य जैसे आचार्य , कर्ण जैसे महावीर और भी अपने समय के हस्तिनापुर के महान योद्धा उपस्थित थे|
सिंहासन पर अंधा राजा धृतराष्ट्र आसीन था खुली आँखों वाले गूंगी बहरी सभा में दुर्योधन ने अपनी जंघाओं का इशारा करते हुए कहा आ दासी मेरी जंघा पर बैठ जा |भरी सभा में द्रौपदी को वस्त्र हीन करने का आदेश दिया |अकेली निस्सहाय उस युग की नारी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए धृतराष्ट्र से गुहार लगाई अविवेकी राजा पुत्र मोह में पागल था नीतिज्ञ कहे जाने वाले सभासदों से ,दोनों कुलों के पितामह के सामने जा कर द्रौपदी ने प्रश्न पूछा जब सम्राट अपने आप को हार चुके थे उन्हें मुझे जुए पर दांव लगाने का अधिकार किसने दिया? भीष्म ने राजसत्ता का मुकाबला करने के बजाय धर्म का सहारा लिया| आचार्य द्रोण के पास भी बहाना था द्रौपदी उनके शत्रु द्रुपद की बेटी थी| अंगराज कर्ण को स्वयंवर में द्रौपदी सूतपुत्र कह कर प्रतियोगिता से बाहर कर चुकी थी वह वैसे ही जातीय भेद के शिकार थे |भीम ने क्रोध में प्रतिज्ञा की दुशासन ने द्रौपदी को केशों से घसीटा है उसके छाती के रक्त से केशों को सीचूंगा जिस जंघा पर दुर्योद्धन ने बैठने का इशारा किया था अपनी गदा से तोड़ दूंगा| अर्जुन भी बिलख उठे नकुल अग्नि लाओ जिन हाथों से द्रौपदी को दांव पर लगाया है सम्राट के हाथ जला दूंगा लेकिन किसी ने न प्रतिकार किया न सभा का बहिष्कार, तेजस्वी नारी का तमाशा देखते रहे|
द्रौपदी का रोद्र रूप ,बिरोध अंत में थक कर भगवान श्री कृष्ण को पुकारना सबने देखा दुशासन असहाय उस युग की नारी की साड़ी खींच रहा था द्रौपदी की हृदय विदारक पुकार श्री कृष्ण के कानों में पड़ी द्वारका में श्री कृष्ण शैया पर विश्राम कर रहे थे अचानक वह अचेत हो गये लेकिन उनका शरीर गर्म वहीं था वह स्वयं द्यूत सभा में उपस्थित हो गये द्रौपदी सभा भवन के खंबे की आड़ में प्रतिरोध कर रही थी उन्होंने द्रौपदी की रक्षा की आततायी साड़ी खींचने लगा एक के बाद एक साड़ी द्रोपदी ने बंद आँखें खोली दुशासन थक चुका था सभा भवन में हर रंग की साड़ी बिखरी हुई थी दुशासन थक गया द्रोपदी की आँखे क्रोध से लाल थीं उसनें हाथ उठाया उसने बंद मुट्ठी से सम्पूर्ण शक्ति लगा कर दुशासन के चेहरे पर मुक्का जड़ दिया वह गिर पड़ा दुशासन ठंडा पड़ गया उसके मुहं से खून बहने लगा द्रौपदी क्रोध से फुंकार रही थी उसके साथ अदृश्य श्री कृष्ण थे अब अंधे राजा का विवेक जागा या उनकी पत्नी गांधारी ने जगाया |राजा ने पांडवों को जो भी हारा था लौटा दिया लेकिन द्यूतसभा में फिर से पांसे फेके गये अबकी बार हारने वाले को 12 वर्ष का बनवास और एक वर्ष अज्ञात वास का दंड भुगतना था|
बनवास और अज्ञात वास समाप्त हुआ श्री कृष्ण शांति दूत बन कर हस्तिनापुर गये पांडवों का अधिकार मांगा मद में पागल दुर्योधन ने इंकार कर दिया अंत में पांच गाँव मांगे लेकिन गाँव राजनीतिक महत्व के थे दुर्योद्धन कुछ भी देने को तैयार नहीं था |उसने श्री कृष्ण को कैद करने की कोशिश की उनका विराट रूप देख कर भयभीत हो गया भयानक युद्ध हुआ दस दिन तक भीष्ण पितामह ने युद्ध किया उन्होंने पांडवों को न मारने की प्रतिज्ञा की थी परन्तु सेना का भीषण संहार कर रहे थे सेना बिना युद्ध कैसा ? अंत में शिखंडी को आगे कर श्री कृष्ण ने अर्जुन से भीष्म पर ऐसे वाण चलवाये वह शर शैया पर गिर पड़े| गुरु द्रोण, श्री कृष्ण की कूटनीति ने युधिष्टिर को झूठ बोलने पर मजबूर किया पुत्र मोह से ग्रस्त, उसके झूठे वध का शोर सुन कर शस्त्र त्याग दिया उनका गला काट कर द्रौपदी के भाई ने प्रतिशोध लिया | दुशासन को भीम ने ऐसी सजा दी जिसे सदियाँ याद रखेंगी उसका सीना फाड़ कर रक्त पान किया और द्रौपदी के खुले केशों को रक्त में डुबोया| अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को सात महारथियों ने मिल कर मारा था उसकी मौत को ढाल बना कर श्री कृष्ण के आदेश पर कर्ण जब अपनी शस्त्र विद्या भूल चुका था रथ का पहिया धरती में धस रहा था वह निहत्था था अर्जुन से मरवाया कृष्ण के पास हर वध का ओचित्य था अंत में विष बेल दुर्योद्धन की गदा युद्ध के नियम के विरुद्ध भीम को इशारा कर जंघा तोड़ कर मरवाया | महाभारत समाप्त हुई कूटनीतिज्ञ श्री कृष्ण का गीता का दर्शन सर्वत्र पूजित है| एक जर्मन हमें सफर के दौरान मिले उन्होंने हमें बताया मन में उठने वाले हर प्रश्न का समाधान गीता में है
मेरे ननिहाल में हमारा अपना प्राचीन मन्दिर की छवि