*इस धरा धाम पर हमें सर्वश्रेष्ठ मानवयोनि प्राप्त हुई है | हम इस जीवन में जो कुछ भी करना चाहें कर सकते हैं | परंतु किसी भी कार्य में सफल होने के लिए आवश्यक है आत्मनिरीक्षण करना | इस जीवन में भौतिक , शारीरिक , बौद्धिक या आर्थिक किसी भी दृष्टि से विकास के लिए आत्मनिरीक्षण करना अनिवार्य प्रक्रिया है , जिसकी अवहेलना नहीं की जा सकती | यह मनुष्य द्वारा किये गये प्रत्येक कार्यक्षेत्र में नितांत आवश्यक है | एक खिलाड़ी अपने खेल का या अपना मूल्यांकन स्वआत्मनिरीक्षण के अनुसार ही करता है | वह इस आत्मनिरीक्षण के माध्यम से अपनी कमियों को जानकर उसमें सुधार करते हुए सफलता के उच्चशिखर पर पहुँचता है | वैज्ञानिक अपने प्रयोंगों का , उद्योगपति अपने उद्योग का समय समय पर यदि निरीक्षण न करें तो परिणाम क्या होगा ? इस संसार के सफलतम व्यक्तियों ने इस आत्मनिरीक्षण के बल पर ही सफलतायें अर्जित की हैं | यह भी सत्य है कि जहाँ ईमानदारी से किया गया आत्मनिरीक्षण मनुष्य को फर्श से अर्श तक पहुँचा देता है , वहीं आत्मनिरीक्षण के अभाव में मनुष्य अर्श से फर्श तक भी पहुँच जाता है | आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाय तो इसका महत्व बढ जाता है | क्योंकि अध्यात्म व योग साधना निश्चित ही एक समर है | और यदि इस समर को जीतना है तो फिर आत्मनिरीक्षण परमावश्यक है | एक साधक तब तक नहीं सफल हो सकता जब तक वह समय समय पर आत्मनिरीक्षण न करता रहे | कुल मिलाकर जीवन के किसी भी क्षेत्र में बिना आत्मनिरीक्षण के सफलता कदापि नहीं प्राप्त की जा सकती |*
*आज का युग आधुनिक संसासाधनों से भरपूर है और मनुष्य इसका लाभ भी ले रहा है | अनेकों युवा अपने पुरुषार्थ के बल पर सफलतायें भी अर्जित कर रहे हैं परंतु कुछ लोग करना तो सब कुछ चाहते हैं , साधक सीधे ब्रह्म को पा जाना चाहते हैं परंतु सफल नहीं हो रहे हैं क्योंकि वे आज तक स्वयं को ही नहीं जान पाये हैं ! उन्हें अपनी कमियाँ दिखाई ही नहीं पड़ती क्योंकि वे स्वयं के भीतर देखना ही नहीं चाहते | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि जिस प्रकार किसी खिड़की से हम कमरे में रखी हर वस्तु को देख सकते हैं ठीक उसी प्रकार हम आत्मनिरीक्षण के द्वारा अपने भीतर की कमियों एवं खूबियों को जान सकते हैं | संयम , सेवा , पवित्रता में हमारी स्वयं की क्या स्थिति है इसकी जानकारी हमें आत्मनिरीक्षण के माध्यम से ही मिल सकती है | यदि हमारे जीवन में संयम , सदाचार एवं पवित्रता नहीं है तो हमारी आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं हैं | हम सिर्फ आत्मनिरीक्षण करते हुए ही अपनी चेतना को रूपांतरित कर सकते हैं | क्योंकि अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए हमें अपनी कमियों को विषय वासनाओं को त्यागना पड़ता है ! और यह आत्मनिरीक्षण के माध्यम से ही संभव है | यह करके ही हम धीरे - धीरे अध्यात्म के पथ पर आगे बढ सकते हैं | क्योंकि साधना में वेश का कोई महत्व नहीं होता | अध्याम कोई अभिनय करने की वस्तु नहीं है बल्कि यह रूपांतरण का अद्भुत सोपान है | कुछ लोग आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं | जबकि आध्यात्म में जाने के लिए स्वयं को बदलना होगा | इस अध्यात्म से अक्सर लोग निराश भी हो जाते हैं कि मेहनत तो बहुत किया परंतु सफलता नहीं मिली | एक विशेष बात यह है कि अध्यात्म में निराशा उसी को मिलती हैं जिन्होंने सिर्फ वेश बनाकर आध्यात्मिक होने का नाटक मात्र किया | ऐसे लोग जीवन में सफल नहीं हो पाते |*
*अध्यात्म अभिनय का नहीं रूपांतरण का मार्ग है | यह चतुराई नहीं चैतन्य होने का मार्ग है | यहाँ कपट, छल आदि त्यागकर साधक बनकर ही आत्मानंद के अखंड राज्य में प्रवेश किया जा सकता है |*