*जब से इस धरा धाम पर सृष्टि का विस्तार हुआ तभी से यहां सनातन धर्म का प्रसार हुआ | सनातन का अर्थ ही होता है शाश्वत अर्थात जो आदिकाल से है | सनातन धर्म अपने आप में अद्भुत इसलिए है क्योंकि सनातन धर्म के महापुरुषों ने जिस ज्ञान - विज्ञान का प्रसाद इस धरा धाम पर किया उसका लाभ मानव आज तक ले रहा है | सनातन धर्म के प्रत्येक क्रियाकलाप मानव मात्र के लिए कल्याणकारी ही सिद्ध हुए हैं | मानव विकास में सनातन धर्म के सिद्धांतों का बहुत बड़ा योगदान है आयुर्वेद एवं अन्य चिकित्सा पद्धति सनातन की ही देन है | अनेक आयुर्वेदाचार्यों ने ऐसे ऐसे अनुसंधान किये हैं जो कि आज सुनने भले ही अद्भुत लगते हो परंतु इनमें सत्यता निहित है | अश्विनी कुमारों ने वृद्ध महात्मा च्यवन ऋषि को आयुर्वेद के ही बल पर युवावस्था प्रदान की थी | सनातन का विज्ञान इतना विस्तृत था कि त्रेता युग में पुष्पक विमान का वर्णन तो मिलता ही है साथ ही प्रत्येक देवताओं के पास एक विमान होने का वर्णन भी प्राप्त होता है | यही नहीं भगवान श्री हरि विष्णु , भगवान गणेश एवं महाराज दक्ष का शीश कट जाने के बाद उनकी शल्य चिकित्सा (अंग प्रत्यारोपण) का भी वर्णन हमें हमारे शास्त्रों में पढ़ने को मिलता है जिससे यह सिद्ध होता है कि जिसे आज हम चमत्कार मान रहे हैं वह चमत्कार नहीं बल्कि सनातन का विज्ञान है जिस को आधार बनाकर आज चिकित्सक एवं वैज्ञानिक नित्य नए अनुसंधान कर रहे हैं | ऐसे अनेक कथानक हमें सनातन के धर्मग्रंथों में पढ़ने को मिलते हैं जिन्हें पढ़कर हमको आश्चर्य तो होता ही है साथ ही हमारा मन इन पर विश्वास करने को तैयार नहीं होता परंतु यह सभी तथ्य पूर्णतया सत्य हैं | विमान , ज्ञान , विज्ञान , शल्य चिकित्सा , अंग प्रत्यारोपण यह सब सनातन के विद्वान आदिकाल से करते चले आ रहे है इसमें कुछ भी नया नहीं है जोकि आज हमें देखने को मिल रहा हो और पूर्व काल में ना रहा हो | यह अलग बात है कि आज इनका स्वरूप आधुनिक हो गया है परंतु है यह प्राचीन परंपरा है इन परंपराओं को जानने के लिए हमें अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करने की परम आवश्यकता है |*
*आज के युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है लोग नित्य नये आविष्कारों का आनंद ले रहे हैं परंतु वे यह नहीं जानते हैं कि इन आविष्कारों का आधार क्या है ? यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो इन सब का आधार सनातन के धर्मग्रंथ ही हैं | सनातन की मान्यताएं आज वैज्ञानिक भी मानने को विवश हो रहो है | कुछ लोग कहते हैं राजवैद्य सुषेण ने रावण की नाभि में अमृत कैसे रखा होगा ? ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि जिस प्रकार आज चिकित्सक अपने रोगी की चिकित्सा अनेक माध्यमों से करती हुए असाध्य से असाध्य रोग का निदान कर रहे हैं उसी प्रकार पूर्व काल में भी असंभव कुछ भी नहीं था | ऐसे प्रसंगों को सुनकर उन्हें झूठा कहना या आश्चर्य करना यह सिद्ध करता है कि हमारा ज्ञान अधूरा है | कोई भी नया विषय सुनने के बाद उसका गहन अध्ययन करने का प्रयास करना चाहिए जिससे कि मन में उठे भ्रम का निराकरण हो सके परंतु आज हम वही मानना चाहते हैं जिसे हम जानते हैं और यह सत्य है कि जीवन में सफल होकर स्वयं का विस्तार वही कर सकता है जो नित्य नए ज्ञान पर अनुसंधान करने की क्षमता रखता है , अन्यथा सुनी सुनाई बात से आगे बढ़कर हमें कोई भी नवीन ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता | आज हम नित्य नए आविष्कारों को देखकर भले ही प्रसन्न हो रहे हों परंतु हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि बिना आधार के आधेय नहीं हो सकता और इन सभी आविष्कारों का आधार सनातन के धर्म ग्रंथ ही हैं परंतु आज हम अपने ही धर्म ग्रंथों का अध्ययन नहीं करना चाहते और कोई नवीन विषय सुनकर के उसे मिथ्या भाषण की घोषणा कर देते हैं | आज हम टेलीविजन के माध्यम से विभिन्न प्रकार के खेलों का , आयोजनों आंखों देखा हाल सुनकर इसे विज्ञान का अद्भुत चमत्कार मांनते हैं परंतु हम भूल जाते हैं कि महाभारत जैसे विशाल युद्ध का आंखों देखा हाल संजय जी ने महाराज धृतराष्ट्र को द्वापरयुग में ही सुनाया था | कुल मिलाकर यही कहना चाहता हूं कि जो कुछ भी आज हो रहा है वह बहुत पहले सनातन के विज्ञानियों ने करके दिखा दिया था | इसीलिए सनातन ही सबका आधार कहा जाता है |*
*इस बार हम सनातन धर्म से अलग हटकर कुछ भी नया नहीं हो रहा है इन के रहस्यों को समझने के लिए हमें सनातन की दिव्यता को जानने की आवश्यकता है |*