*ईश्वर द्वारा प्राप्त इस दिव्य जीवन में प्रकाश प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य सतत प्रयासरत रहता है | सूर्य चंद्रमा के द्वारा मिल रहे प्राकृतिक प्रकाश के अतिरिक्त मनुष्य ने प्रकाश के कई भौतिक संसाधनों का भी आविष्कार किया है | जहां प्रकाश मनुष्य को ऊर्जावान बनाता है वही अंधकार मनुष्य को निष्क्रिय कर देता है | मानव जीवन बहुत ही दिव्य है , मात्र प्राकृतिक एवं भौतिक प्रकाश से मनुष्य के इस जीवन की सार्थकता नहीं हो सकती | वाह्य अंधकार के अतिरिक्त मनुष्य को अपने आंतरिक अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान रूपी प्रकाश प्रकाशित करना चाहिए , इसे ही हमारे मनीषियों ने "आत्मप्रकाश" कहां है | मनुष्य के हृदय में जब अज्ञान का अंधकार होता है तो काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार , छल , कपट आदि स्वमेव प्रकट हो जाते हैं | अंधकार के इन कीटाणुओं को भगाने के लिए मनुष्य को अपने हृदय में दया , क्षमा , करुणा , परोपकार एवं सहृदयता रूपी दीपक जला कर के आत्मप्रकाश करने का प्रयास करना चाहिए | जब हृदय में सद्गुण रूपी दीपक प्रज्वलित होता है तो अवगुण रूपी अंधकार को स्वत: पलायन करना पड़ता है | आत्मप्रकाश तभी हो सकता है जब मनुष्य महापुरुषों की जीवनियों का स्वाध्याय करें या फिर सज्जनों की संगति अर्थात सत्संग करें | मनुष्य अपने जीवन में वाह्य प्रकाश के अनेकों उपाय तो करता है परंतु वह आत्मप्रकाश करने के लिए प्रयास नहीं करता | हमारे महापुरुषों ने आत्मप्रकाश के बल पर ही अंधकार में भी देखने की क्षमता प्राप्त की थी | जब मनुष्य के हृदय में प्रकाश हो जाता है तो उसे दिन के प्रकाश में तो दिखाई ही पड़ता है परंतु वह रात्रि अंधकार में भी देखने की कला प्राप्त कर लेता है | हमारे महापुरुष जो ध्यान लगाकर दूर बैठे किसी भी व्यक्ति की गतिविधियों को जान लेते थे उसका एक ही रहस्य था कि उन्होंने भौतिक एवं प्राकृतिक प्रकाश के अतिरिक्त आत्मप्रकाश भी स्वयं में प्रकट किया था | जब मनुष्य में आत्मप्रकाश हो जाता है तो उसे मानव मात्र एक समान दिखाई पड़ने लगता है निर्धन - धनवान की खांईं अपने आप मिट जाती है | प्रत्येक मनुष्य को प्राकृतिक जगमगाते हुए प्रकाश के अतिरिक्त आत्मप्रकाश जगाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए और यह तभी संभव है जब हम इसके लिए सत्संग करने का प्रयास करेंगे क्योंकि सत्संग ही एक ऐसा माध्यम है जहां मनुष्य को जीवन की सार्थकता को समझने का अवसर प्राप्त होता है | बिना आत्मप्रकाश के मानव जीवन पशु के समान ही कहा जा सकता है |*
*आज हम वैज्ञानिक युग में जीवन यापन कर रहे हैं | धरती पर फैले अंधकार को दूर करने के लिए मनुष्य में भौतिक एवं कृत्रिम प्रकाश का आविष्कार अधिक से अधिक करने का प्रयास प्रकाश किया है | गांव को छोड़ दीजिए यदि आप महानगरों में चले जाएं तो वहां रात्रि में भी दिन का आभास होता है यह मनुष्य के आविष्कार का परिणाम है , परंतु आज आत्मप्रकाश करने के लिए कोई भी तत्पर नहीं दिखाई पड़ता है | आज समाज में चारों ओर जो भ्रांतियां दिखाई पड़ रही हैं उसका कारण मनुष्य के हृदय का अंधकार ही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में चारों ओर मनुष्य को काम , क्रोध , लोभ , मोह आदि से ही ग्रसित देख रहा हूं | एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को मारकर आगे बढ़ना चाह रहा है | आज मानव मात्र एक समान की धारणा विलुप्त होती दिखाई पड़ रही है , इसका एक ही कारण है मनुष्य का आत्मअंधकार | आज के मनुष्य ने वाह्य प्रकाश तो खूब कर लिया है परंतु आत्म प्रकाश करने में विफल रहा है | इसका प्रमुख कारण एक है कि आज मनुष्य आधुनिकता के भंवर में फंसकर के अपने दिव्य ऋषि - मुनियों के इतिहास को ना तो पढ़ना चाहता है और ना ही उसका पालन करना चाहता है | आत्मप्रकाश करने का सर्वश्रेष्ठ साधन सत्संग आज मनुष्य को व्यर्थ की बात लगती इसीलिए आज संपूर्ण विश्व में अनेकों प्रकार के कृत्य / कुकृत्य मनुष्य कर रहा है | जब मनुष्य के हृदय में प्रकाश होता है वह कोई अनैतिक कार्य करने से स्वयं को बचाता रहता है | परंतु जब आत्मप्रकाश नहीं होता है तो मनुष्य को भले - बुरे का ज्ञान नहीं होता है और मनुष्य के द्वारा अनेकों अनैतिक कृत्य होते रहते हैं | प्रत्येक मनुष्य को वाह्यप्रकाश के अतिरिक्त आंतरिक अर्थात आत्मप्रकाश करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए क्योंकि आपका हृदय ही अनेक प्रकार के भावों को जन्म देता है और जब वहाँ ही अंधकार रहेगा तो जीवन भी अंधकार मय ही हो जायेगा | जीवन को अंधकारमय होने से बचाने का एक ही मार्ग है जिसे आत्मप्रकाश कहा गया है |*
*आत्मप्रकाश हो जाने के बाद मनुष्य के दुर्गुण हृदय में एक भी क्षण नहीं ठहर सकते हैं इसलिए प्रत्येक मनुष्य को इसके लिए सतत् प्रयासरत होना चाहिए `*