*इस धरती पर जन्म लेने के बाद मनुष्य एक लंबे समय तक जीवन जीता है और इस जीवन काल में जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए मनुष्य को अनेक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है | जितनी आवश्यकता मनुष्य को भौतिक संसाधनों की पड़ती है उतनी ही आवश्यकता आंतरिक संसाधनों की भी होती है , मात्र भौतिक संसाधनों के बल पर इस जीवन को सुचारू रूप से व्यवस्थित करके नहीं चलाया जा सकता है | इन्हीं आंतरिक संसाधनों में सबसे महत्वपूर्ण है मनुष्य का आत्मसंयम , क्योंकि जब तक मनुष्य में आत्मसंयम नहीं होता है तब तक वह कुछ भी नहीं प्राप्त कर सकता है | हमारे पुराण बताते हैं कि हमारे महापुरुषों ने कई कई वर्षों तक कठिन साधनाएं की है | यह कठिन साधना जिसे तपस्या कहा जाता है यदि फलीभूत हुई है तो उसका मुख्य कारण यही था कि उन महापुरुषों में आत्मसंयम की प्रबलता थी | साधारण सी बात है कि किसी भी कार्य को संपादित करने के बाद उसके परिणाम की प्रतीक्षा करने के लिए आत्मसंयम की आवश्यकता होती है | एक किसान खेत में बीज डालता है तो तुरंत उसको उसका फल नहीं मिल जाता बल्कि एक निश्चित समय तक उगने वाली फसल की सुरक्षा एवं संरक्षा करने के बाद ही उसे फल प्राप्त होता है | यहां पर यदि किसान के अंदर आत्मसंयम ना हो और बीज बोने के तुरंत बाद फल की आशा करने लगे तो यह कदापि संभव नहीं हो सकता है | ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जिनका सार यही निकलता है कि मनुष्य में आत्मसंयम का होना परम आवश्यक परम आवश्यक है | आत्म संयम अर्थात मन पर नियंत्रण इसे दूसरी भाषा में धैर्य भी कहा जाता है | जिस व्यक्ति में धैर्य का अभाव है और मन पर नियंत्रण नहीं है वह अपने जीवन में कभी भी सफल नहीं हो सकता है , यदि सफलता प्राप्त करनी है तो आत्मसंयमी होना ही पड़ेगा | अपनी समस्त इंद्रियों के साथ मन पर नियंत्रण करने के उपरांत ही मनुष्य इस जीवन में कुछ करने के योग्य बनता है | इसी आत्मसंयम के बल पर हमारे देश के महापुरुषों ने एक स्वर्णिम इतिहास रचा था जिसे पढ़ने के बाद भी आज की पीढ़ियों की समझ में नहीं आ रहा है क्योंकि आज प्रत्येक व्यक्ति के अंदर उतावलापन स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है |*
*आज मानव जीवन के लिए जो भी आवश्यक संसाधन हैं उससे कहीं अधिक का विकास मनुष्य ने अपने बुद्धि - विवेक से कर लिया है | आज सब कुछ तो है परंतु मनुष्य में आत्मसंयम का अभाव स्पष्ट झलक रहा है | आज समाज में जो आए दिन घटनाएं सुनने को मिलती उसका मुख्य कारण यही है कि मनुष्य का स्वयं पर संयम नहीं रह गया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में घट रही घटनाओं को देखकर यह कह सकता हूं कि मनुष्य ने सब कुछ प्राप्त करने के बाद भी अपने महत्वपूर्ण आंतरिक संसाधन संयम को खो दिया है | किसी की बात सुनकर के मनुष्य क्रोधित होकर प्रतिक्रिया देने लगता है , यह प्रतिक्रिया उसके मुख से तभी निकलती है जब उसका स्वयं पर संयम टूट जाता है और जब मनुष्य का आत्मसंयम टूटता है तो वह कोई ना कोई दुर्घटना को अवश्य जन्म देता है | आज प्राय: यह देखने को मिलता है कि मनुष्य प्रत्येक कार्य का परिणाम तुरंत चाहता है जबकि सत्य है कि मनुष्य के बस में सिर्फ कर्म करना है ना कि मनचाहा फल प्राप्त करना | आज मनुष्य के संयम का यह हाल है कि यदि सड़क पर जाते हुए उसके वाहन से आगे कोई दूसरा वाहन निकल जाता है तो उसको क्रोध लगने लगता है | कहां तक कहा जाए चारों तरफ आज यही दिखाई पड़ रहा है तो इसका मुख्य कारण यही है कि आज के मनुष्यों ने अपने सद्ग्रंथों का अध्ययन करना बंद कर दिया है | हमारे सद्ग्रंथों में आत्मसंयम बनाए रखने के लिए अनेकों उपाय बताए गए हैं परंतु उन उपायों की ओर देखने का समय आज के मनुष्य के पास नहीं बचा है | आत्मसंयम से विहीन होकर मनुष्य कर्म / कुकर्म करता चला जा रहा है जो कि कदापि उचित नहीं कहा जा सकता |*
*आत्मसंयमी मनुष्य के किए गए कार्य यदि निष्फल भी हो जाते हैं तो उसको क्रोध नहीं आता है बल्कि वह उस किये गये कार्य पर आत्ममंथन करके उसमें हुई त्रुटियों को सुधार करने का प्रयास करता है जिससे कि अगली बार उसे सुखद परिणाम प्राप्त हो सके | ऐसा एक आत्मसंयमी ही कर सकता है |*