*प्राचीनकाल में हमारे देश भारत में राजाओं का शासन होता था , जो कि कुल परंपरा के अनुसार चला करता था | राजा के चुनाव में प्रजा का कोई अर्थ नहीं होता था | आदिकाल से लेकर के अंग्रेजों के शासन तक यही परंपरा चलती रही जिसे राजतंत्र कहा गया है , परंतु जब हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अथक परिश्रम के बाद १५ अगस्त सन १९४७ को हमारा देश भारत स्वतंत्र हुआ तब राजवंशीय परंपरा से हमको मुक्ति मिली | उसके बाद देश को चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता को समझते हुए हमारे विद्वानों ने अथक परिश्रम करके अपना संविधान बनाया और यह संविधान २६ जनवरी सन १९५० को धरातल पर आया | इस संविधान के अनुसार देश का शासक जनता के द्वारा चुना जाता है इसीलिए २६ जनवरी को प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस मनाया जाता है | गणतंत्र का अर्थ होता है जनता का राज्य | अर्थात जनता के द्वारा चुना हुआ प्रतिनिधि राजा के रूप में देश पर शासन करता है | कहने को तो राजवंशीय परंपरा समाप्त हो गई थी परंतु भारत की स्वतंत्रता के बाद से लेकर एक लंबे समय तक एक ही वंश ने हमारे देश पर शासन किया | जहां गणतंत्र का अर्थ जनता का राज्य होता है वही आज हमारे देश में भगवान शिव के गण कुछ ज्यादा ही तंत्र को चलाते हुए देखे जा रहे हैं | आज हमारे देश का जो हाल है क्या यही सपना अपनी आंखों में भर कर के हमारे पूर्वजों ने देश को स्वतंत्र कराया था ? देश की परिस्थिति को देखकर के अमर बलिदानियों की आत्माएं भी दुखी हो रही होंगी | कहने को तो आज सशक्त संविधान हमारे पास है परंतु उस संविधान का कितना पालन हो रहा है यह किसी से छुपा नहीं है | आज का परिदृश्य बहुत ही विचारणीय एवं चिंतनीय होता चला जा रहा है | जिस तिरंगे को ले करके हमारे पूर्वजों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी आज उसी तिरंगे को लेकर के ऐसे ऐसे कृत्य किए जा रहे हैं कि देखकर बरबस ही मन दुखी हो जाता है |*
*आज गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर देश की राजधानी दिल्ली के राजपथ से लेकर के देश के कोने कोने में राष्ट्रीय पर्व को लोगों ने बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया | गणतंत्र दिवस मनाने का अर्थ हम भले ही ना जानते हो परंतु जिस प्रकार हम बिना त्योहारों के रहस्यों को जाने उनको मनाते चले जाते हैं उसी प्रकार गणतंत्र दिवस भी मना रहे हैं | हमारे देश के विद्वानों ने प्रत्येक भारतीय को समानता का अधिकार दिलाने के लिए संविधान की रचना की थी , परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देख रहा हूं कि समान कानून होने के बाद भी आज साधारण मनुष्य कराह रहा है | जिसके पास धनबल जनबल है आज वह ऐश कर रहा है | यह कैसी समानता है कि बिना किसी अपराध के गरीब एवं असहाय को कारागार में डाल दिया जाता है और व्यभिचारी , अत्याचारी , भ्रष्टाचारी एवं आतंकवादियों को सराहा जाता है | कहने को तो हम स्वतंत्र हो गए हैं परंतु कहीं ना कहीं से आज भी हम विकृत मानसिकता के दास बने हुए हैं | जहां एक साधारण निर्धन व्यक्ति बिना किसी अपराध के दंड भोग करता है वही अनेकों अपराध करने के बाद भी धन एवं अपने प्रभुत्व के बल पर उच्च पदों पर बैठे हुए लोग खुलेआम घूम रहे हैं | देश विरोधी कृत्य करने वालों के लिए देशद्रोह का कानून है परंतु आज देश के विरोध में अनेकों वक्तव्य देने वाले सर आंखों पर बिठाये जा रहे हैं | यदि हम संविधान का पालन नहीं कर पा रहे हैं तो गणतंत्र दिवस मनाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है | गणतंत्र दिवस मनाना वास्तव में तभी सार्थक होगा जब संविधान का अक्षरश: पालन किया जाय जो कि आज नहीं हो पा रहा है | यही कारण है कि आज समाज में चारों और भ्रष्टाचार अपना सर उठाए खड़ा है |*
*आज भारतीय गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर पुन: आत्ममंथन करने का समय आ गया है कि क्या हम वास्तव में गणतंत्र दिवस मनाने के योग्य है ??*