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आस्था

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गली तो चारों बंद हु हैं मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय॥ ऊंची-नीची राह रपटली पांव नहीं ठहराय। सोच सोच पग धरूं जतन से बार-बार डिग जाय॥ ऊंचा नीचां महल पिया का म्हांसूं चढ्यो न जाय। पिया दूर पथ म्हारो झ

सुण लीजो बिनती मोरी मैं शरण गही प्रभु तेरी। तुम तो पतित अनेक उधारे भव सागर से तारे॥ मैं सबका तो नाम न जानूं को कोई नाम उचारे। अम्बरीष सुदामा नामा तुम पहुंचाये निज धामा। ध्रुव जो पांच वर्ष के ब

हे मेरो मनमोहना आयो नहीं सखी री। कैं कहुं काज किया संतन का। कैं कहुं गैल भुलावना॥ हे मेरो मनमोहना। कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी। लाग्यो है बिरह सतावना॥ हे मेरो मनमोहना॥ मीरा दासी दरसण प्या

स्याम मने चाकर राखो जी        गिरधारी लाला चाकर राखो जी। चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं। बिंद्राबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं॥ चाकरी में दरसण पाऊं सुमिरण पाऊं खरची। भाव भगति जाग

मैं गिरधर के घर जाऊं। गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊं॥ रैण पड़ै तबही उठ जाऊं भोर भये उठि आऊं। रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त।ह्यूं ताहि रिझाऊं॥ जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊं

रोकणहार मगन हो मीरा चली॥ लाज सरम कुल की मरजादा सिरसै दूर करी। मान-अपमान दो धर पटके निकसी ग्यान गली॥ ऊंची अटरिया लाल किंवड़िया निरगुण-सेज बिछी। पंचरंगी झालर सुभ सोहै फूलन फूल कली। बाजूबंद कड

राणोजी रूठे तो म्हारो कांई करसी       म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्यां हे माय॥ राणोजी रूठे तो अपने देश रखासी       म्हे तो हरि रूठ्यां रूठे जास्यां हे माय। लोक-लाजकी काण न राखां       म्हे तो नि

आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको॥ घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा दरसन गोविन्द जी को॥१॥ निरमल नीर बहत जमुना में भोजन दूध दही को। रतन सिंघासण आपु बिराजैं मुकुट धर।ह्यो तुलसी को॥२॥ कुंजन कुंजन फिरत राधिका स

दूर नगरी बड़ी दूर नगरी-नगरी कैसे आऊं मैं तेरी गोकुल नगरी दूर नगरी बड़ी दूर नगरी रात को आऊं कान्हा डर माही लागे दिन को आऊं तो देखे सारी नगरी। दूर नगरी॥। सखी संग आऊं कान्हा शर्म मोहे लागे अकेल

नटवर नागर नन्दा भजो रे मन गोविन्दा श्याम सुन्दर मुख चन्दा भजो रे मन गोविन्दा। तू ही नटवर तू ही नागर तू ही बाल मुकुन्दा सब देवन में कृष्ण बड़े हैं ज्यूं तारा बिच चंदा। सब सखियन में राधा जी बड़ी

अब तो निभायां सरेगी बांह गहे की लाज। समरथ शरण तुम्हारी सैयां सरब सुधारण काज॥ भवसागर संसार अपरबल जामे तुम हो जहाज। गिरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज॥ जुग जुग भीर हरी भगतन की दीनी मोक्ष सम

म्हारो प्रणाम बांकेबिहारीको। मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे। कुण्डल अलका कारीको म्हारो प्रणाम॥ अधर मधुर कर बंसी बजावै। रीझ रीझौ राधाप्यारीको म्हारो प्रणाम॥ यह छबि देख मगन भ मीरा। मोहन गिरवरधार

दरस म्हारे बेगि दीज्यो जी ओ जी अन्तरजामी ओ राम खबर म्हारी बेगि लीज्यो जी आप बिन मोहे कल ना पडत है जी ओजी तडपत हूं दिन रैन रैन में नीर ढले है जी गुण तो प्रभुजी मों में एक नहीं छै जी ओ जी अवगुण

जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन। रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे। गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे। उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे । ग्वाल बाल सब करत कोलाहल जय जय सबद उचारे ।

अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥ माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई। साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥ सतं देख दौड आई, जगत देख रोई। प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥ मारग में तारग मिले, संत राम दोई। संत

आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि। झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति। झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति। झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर। सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे स

अच्छे मीठे फल चाख चाख, बेर लाई भीलणी। ऎसी कहा अचारवती, रूप नहीं एक रती। नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी। जूठे फल लीन्हे राम, प्रेम की प्रतीत त्राण। उँच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी। ऎसी कहा वेद प

भजु मन चरन कँवल अविनासी। जेताइ दीसे धरण-गगन-बिच, तेताई सब उठि जासी। कहा भयो तीरथ व्रत कीन्हे, कहा लिये करवत कासी। इस देही का गरब न करना, माटी मैं मिल जासी। यो संसार चहर की बाजी, साँझ पडयाँ उठ जासी

तोती मैना राधे कृष्ण बोल। तोती मैना राधे कृष्ण बोल॥ध्रु०॥ येकही तोती धुंडत आई। लकट किया अनी मोल॥तोती मै०॥१॥ दाना खावे तोती पानी पीवे। पिंजरमें करत कल्लोळ॥ तो०॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरण

कुबजानें जादु डारा। मोहे लीयो शाम हमारारे॥ कुबजा०॥ध्रु०॥ दिन नहीं चैन रैन नहीं निद्रा। तलपतरे जीव हमरारे॥ कुब०॥१॥ निरमल नीर जमुनाजीको छांड्यो। जाय पिवे जल खारारे॥ कु०॥२॥ इत गोकुल उत मथुरा नगरी। छोड

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