राम नाम के साबुन से जो, मन का मैल छुडाएगा, (2) निर्मल मन के दर्पण मे वो, राम का दर्शन पाएगा। राम नाम के साबुन 2) राम, राम जी,जै,राम राम, राम राम जै जै राम राम (6) हर प्रा
महामृत्युंजय मंत्र पौराणिक महात्म्य एवं विधि〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना कई तरीके से होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों क
जय श्रीकृष्ण मित्रगण। जय श्रीकृष्ण। आप सबको यह जान कर हैरत होगी कि आप जो स्वय को लेकर भ्रमित है कि आप की जाति फलानी या फलानी है तो यह भ्रम शायद आपका "ब्राह्मण कौन" प
अहम ब्रह्मा अस्मि।क्या इस उक्ति का कुछ लेना देना है ब्राह्मण से ?मेरे मतानुसार हाॅ।बिल्कुल, शतप्रतिशत। क्योकि जो शुद्र से ब्राह्मण हो जाए वो ब्रह्मा।&nbs
जय श्रीकृष्ण गीता को जानने से पूर्व चलिए कुछ terms या शब्द जान ले जो सामान्यतः हम इस ग्रंथ मे पढेगे।व उनके अर्थ को सही से समझ सके यह आवश्यक है हम उन्हे वैसे ही जाने जैसे म
जयश्रीकृष्ण पाठकगण सुधिजन व मित्रगण। आप सब को ह्रदय से नमन।आज मै आपके बीच अपनी एक और पुस्तक लेकर उपस्थित हू श्री गणेश जी व माता श्री सरस्वती देवी से अनुकम्पा पाते हुए श्रीकृ
हम थे, हम है, ये सब जानते हैं,हम होंगे, ये कोई नही जानता।न मैं, न तुम, कोई नही....बस एक बात जानता हूंवो था, वो है, वो रहेगा।। महेन्द्र "अटकलपच्चू" ल
की परीक्षा शैतां ने, मुझको तुम सलाम करोगिरा दे अपने को, कहेगा तेरा प्रतिपाल करो।वचनों से बोलो तुम, अाये परीक्षा कुछ भीमेरे स्मरण के लिये यही किया करो।(मत्ती 4:1–11)सुन लिया है तुमने ब
तुम नेक राह चलना सीख लो।छोड़ो अब खोटी चाल कुटिलताराग, रंज, अपकार, दुष्टतामसीह के वचन को जान लोतुम नेक राह चलना सीख लो।।ले जन्म, पाप लगे हम करनेआया मसीह पाप हमारे ह
जन्मा हमारा यीशु ( कोरस) प्यारा हमारा यीशु हम झूमें सभी, हम गाएं सभी -2 यीशु है हमारा आया -2 जन्मा_____________ ईश्वर ने हमें चाहा है यीशु को यहां भेजा है खुशियां हम मनाएं , झुमें और हम गाएं - 2 आया
जो दुष्टों की चाल नहीं चलता जो पापियों की राह नहीं जाता न बैठता खिल्ली उड़ाने वालों के संग धन्य व्यक्ति है वो कहलाता।। 1।। जो उसकी व्यवस्था से प्रसन्न रहता जो चरणों में उसके सदा ध्यान करता सब का
होड़ लगी है भगवान तेरे दर पर सीष झुकाने की माँ बाप से लड़कर ही सही जल्दी है तेरे दर पर आने की होड़ लगी है भगवन..... भूके को एक रोटी न दे पर जल्दी है तेरा भोग लगाने की होड़ लगी है भगवन ........ प्या
भगवान में रखते है सभी विश्वास,अपनी अपनी आस्था; कुछ साकार तो कुछ निराकार ,लेकिन रखते है अपनी अपनी आस्था।कुछ आस्थाओं पर चोट करते है, दुःख की घड़ी में वही ईश्वर से आस करते है;कुछ सुख आने पर आस्थाओं पर,दुष्टों के साथ मिल कर अट्टहास करते है;आने वाले कष्ट उन सभी दुष्टों को,ईश्वर
*इस संसार में सबकुछ परिवर्तनशील है ! समय बहुत ही बलवान एवं परिवर्तनीय है ! वैसे तो यह कहा जाता है कि बीता हुआ समय कभी वापस नहीं लौटता यद्यपि यह सत्य भी है परंतु उसके साथ यह भी सत्य है कि समय स्वयं को दोहराता है | इस संसार में अनेक लोग सत्य को नकारने का प्रयास करते हुए उसके विरुद्ध अनेकानेक उपाय एवं
“ओह कहां रह गई होगी आखिर वो? सारे कमरे में ढूंढनेके बाद सुधीर ने फिर कहा“अरे सुनती होतुमने कोशिश की ढूंढने की”?“हां बहुत ढूंढ ली नहीं मिली.” रमा ने कहा.थोड़ी देर बाद 17वर्षीय मनोहर जो कि उनका छोटा पुत्र था वो भी आ गया और कहने लगा “पिताजी धर्मशाला के आसपास की जिनती भी दु
एक बार की बात है, हर जीवधारी में भगवान का रूप देखने वाले एकनाथ ने एक प्यासे साधारण से गधे के अंदर भगवान का रूप देखकर उसको गंगाजल पिला दिया। तो साथ चल रहे लोगों ने विरोध करना शुरू किया और आश्चर्य से कहने लगे, ‘महाराज! भगवान शंकर को जो जल चढ़ाना था, वह आप किसको पिला रहे
धार्मिक होने का मतलब आस्तिक होना नहीं, नास्तिक होने का मतलब धार्मिक होना नहीं. एक नास्तिक धार्मिक हो सकता है और एक आस्तिक ज़रूरी नहीं की धार्मिक ही हो. धर्म और आस्था दो अलग विषय है. आस्था ईश्वर में होती है , धार्मिक गुरुओं में नहीं.
लघुकथाभस्मासुर - अलख निरंजन!- आ जाइए बाबा पेड़ की छाह में। बाबा के आते ही वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- आज्ञा महाराज। बाबा ने खटिया पर आसन जमाया। बोले- बच्चा, तेरा चेहरा मुरझाया हुआ है। दुःखी लगते हो। दुख का करण बता, बेटा। चुटकी में दूर कर दूंगा। - एक दुख हो तो बताऊं। दुख का बोझ उठाते-उठाते मैं हं
वास्तु शास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ: समरांगण सूत्रधार, मानसार, विश्वकर्मा प्रकाश, नारद संहिता, बृहतसंहिता, वास्तु रत्नावली, भारतीय वास्तु शास्त्र, मुहूत्र्त मार्तंड आदि वास्तुज्ञान के भंडार हैं। अमरकोष हलायुध कोष के अनुसार वास्तुगृह निर्माण की वह कला है, जो ईशान आदि कोण से आरंभ होती है और घर को विघ्नों
मां दुर्गा का प्रत्येक स्वरूप मंगलकारी है और एक-एक स्वरूप एक-एक ग्रह से संबंधित है। इसलिए नवरात्रि में देवी के नौ स्वरूप की पूजा प्रत्येक ग्रहों की पीड़ा को शांत करती है।देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है,और सभी नाम ग्रहण करती है। माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक