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ओह कहां रह गई होगी आखिर वो?सारे कमरे में ढूंढने के बाद सुधीर ने फिर कहा“अरे सुनती हो तुमने कोशिश की ढूंढने की” ?
“हां बहुत ढूंढ ली नहीं मिली.” रमा ने कहा.
थोड़ी देर बाद 17 वर्षीय मनोहर जो कि उनका छोटा पुत्र था वो भी आ गया और कहने लगा “पिताजी धर्मशाला के आसपास की जिनती भी दुकानों में हम गए थे वहां सब जगह ढूंढ लिया लेकिन कहीं नहीं मिली.”
सुधीर ने कहा “कहीं हम घाट किनारे ही तो नहीं छोड़ आए। अरे जब हम रिक्शे में सवार थे तब तो थी मनोहर के हाथमें, बेटा कहीं तू ही तो रिक्शे में तो नहीं भूल आया, इतना भी याद नहीं रहता है तुझे.”
मनोहर ने कहा “नहीं पिताजी जब हम मूर्तियों की दुकान के पास खड़े थे तब थी मेरे हाथ में, मुझे अच्छी तरह याद है उसके बाद की बात याद नहीं आ रही है, शायद मैंने उसे लकड़ी टोकरी मैं रख दिया था.”
“लेकिन लकड़ी की टोकरी तो खाली है” सुधीर ने कहा.
रमा बोली “ओह फिर ना जाने क्या हुआ, आसमान खा गया या धरती निगल गई कहां गई वो?
सुधीर अपने परिवार के साथ ग्वालियर से हरिद्वार के लिए निकाला था।
गंगा के घाट से उनकी पत्नी ने छोटी सी बोतल में गंगा जल भर लिया था, उनके पड़ोस में रहने वाली उमा ने उन्हें इस बार गंगा जल लाने का आग्रह जो किया था।
“चलो भाई ट्रेन का टाईम हो गया है” ये कहकर सुधीर ने सारे परिवार को स्टेशन पर चलने को कहा।
सभी हरिद्वार स्टेशन पर पहुंचे, वहां से सफर करते हुए दिल्ली पहुंचे और दिल्ली से ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए।
सबसे नीचे वाली बर्थ पर बैठी रमा कहने लगी “ओह अब उमा मेरे बारे में क्या सोचेगी, पिछली बार भी गंगा दर्शन के लिए गए थे तो उसके लिए गंगा-जल लाना भूल गए थे, तब उसने कहा था कि अगली बार ले आना और इस बार भी नहीं मिला तो सोचेगी कि हमने जान बूझकर ऐसा किया है.”
आज ऐसा प्रतीत हो रहा था कि रमा का स्त्री मन बाल हठ कर रहा हो बात उसने अपने वचन और अपनी प्रतिष्ठा से जो जोड़ ली।
सुधीर ने कहा “जाने भी दो अब ये बच्चे होते ही लापरवाह है.”
मनोहर कहने लगा “ऐसा करो ना कि हम घर जाकर सादा पानी ही आंटी को दे देंगे, कह देंगे कि ये गंगा जल है.”
रमा ने पलटकर जवाब दिया “इतना बड़ा अधर्म मुझसे ना होगा किसी के साथ छल करना कितना बड़ा पाप है, चाहे उससे किसी का बुरा ना भी हो, ये सिर्फ पानी नहीं है, गंगा जल से तो लोगों की सदियों से आस्था जुड़ी हुई है.”
बातों ही बातों में ग्वालियर भी आ गया और सुधीर का पूरा परिवार थोड़ी ही देर में अपने घर जा पहुंचा.
पड़ोस में रहने वाली उमा भी अपने घर की चौखट पर खड़ी थी बोली “कैसी रही यात्रा? मैं आती हूं दोपहर में तुम्हारे यहां, बहुत दिन हो गए तुमसे मिले हुए.”
अब रमा थोड़ी उदास हो गई और सोचने लगी “वो उमा के सामने क्या बहाना बनाएगी, ऐसा सोचते-सोचते दोपहर हो गई.”
घर के सभी लोग नहा धोकर खाना खा चुके थे और टीवी देख रहे थे, तभी उमा आ गई और बरामदे में आ पहुंची. सुधीर से कहने लगी “कैसी रही आपकी यात्रा सब कुशल मंगल है ना.”
रमा को भी उसकी आवाज दूसरे कमरे में सुनाई दे रही थी जहां उसने कपड़ों से भरे बैग को वाशिंग मशीन में खाली किया और सभी कपड़े डालकर उसे चालू किया, तो खड़ खड़ की आवाज आने लगी।
अरे ये आवाज कैसी रमा ने सोचा।
जैसे ही उसने मशीन का स्वीच बंद करके उसमे हाथ डाला तो उसमें वही नन्ही सी बोतल मिल गई जो खो गई थी।
तभी वहां गोलू आ गया जिसकी उम्र करीब 5 साल थी जो सुधीर और रमा की बेटी का पुत्र था, जो आर्मी में थी उसके पति भी आर्मी में थे इस वजह से उसकी सही तरह से देखभाल हो सके, इसके लिए वो अपने नाना नानी के यहां रहता था। गोलू भी यात्रा में उनके साथ था।
रमा ने पूछा “बेटा गोलू ये बोतल तुमने बैग में डाली थी क्या ? ज़रा याद करो”
गोलू ने कहा “अ...... अ...... हां.... शायद मैं भूल गया पक्का नहीं मालूम.”
रमा को अचानक याद आया धर्मशाला के कमरे में बैग की चैन शायद खुली ही रह गई जिसमें सबके कपड़े रखे थे,
ओह तो ये गोलू की ही करामात है शायद।
बोतल जस की तस थी एक दम टाईट बंद... रमा ने बोतल को पानी से धोया और एक प्याले में गंगाजल भरकर उमा की तरफ़ बढ़ी।
उमा बोली “अरे मैं तो भूल ही गई थी गंगाजल वाली बात लेकिन तुम्हें याद रही, बहुत धन्यवाद तुम्हारा. मेरी कामवाली बाई आती ही होगी तो मैं अब चलती हूं फिर कभी आउंगी.”
तभी सुधीर ने रमा को चौंककर देखा “तुम तो कलियुग की भागीरथ निकली जो गंगा जल को यहां ले आई।क्या कोई चमत्कार हुआ है?
रमा ने कहा हंसते हुए कहा “यही समझ सकते हो.”
शिल्पा रोंघे
से कोई संबंध नहीं है।