*सनातन धर्म आदिकाल से स्वयं में वाज्ञानिकता को समेटे हुए अनेक देवी - देवताओं की पूजा के साथ प्रकृति पूजा का भी प्रबल समर्थक रहा है | सृष्टि में अनेकों वनस्पतियाँ ऐसी हैं जो मानव जीवन के लिए जीवन प्रदायक मानी गयी हैं ऐसी वनस्पतियों को सनातन धर्म में एक विशेष स्थान देते हुए उसके महत्त्व को बढ़ाया गया है | उन्हीं दिव्य वनस्पतियों में एक है - तुलसी | तुलसी मानव जीवन के लिए कितनी उपयोगी है यह बताने की आवश्यकता नहीं है | दैनिक जीवन में मानवमात्र के लिए अपने प्रत्येक अंगों के साथ दिव्य औषधि के रूप में प्रस्तुत होने वाली तुलसी के सम्बन्ध में अनेक पौराणिक कथायें भी हमको प्राप्त होती हैं | पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार सृ्ष्टि में उपस्थित सभी वृक्षों / वनस्पतियों में तुलसी का विशेष स्थान है | तुलसी के दर्शन एवं पूजन से मनुष्य के त्रिताप ( दैहिक , दैविक , भौतिक) तो नष्ट हो ही जाते हैं साथ ही मनुष्य सुख - समृद्धि भी प्राप्त करता है | भगवान विष्णु की पूजा में जब तक तुलसी न निवेदित की जाय तब तक वह पूजा पूर्ण नहीं मानी जा सकती | तुलसी की कथायें लगभग सभी धर्मग्रंथों में प्राप्त होती हैं पद्मपुराण में वर्णित है कि :-- दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी ! रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्ताकान्तकत्रासिनी !! प्रत्यासत्तविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता ! नस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: !! अर्थात जो दर्शन कपने से समस्त पापों का माश कर देती है स्पर्श करने से शरीर को पवित्र बना देती है , प्रणाम करने मात्र से निरोगी बनाने री क्षमता रखती है , जल से सिंचित करने पर यम को भी भयभीत कर देती है आरोपित करने अर्थात लगाने से भगवान कृष्ण के समीप ले जाती है तथा भगवान को चढ़ाने से मोक्ष प्रदान करने वाली तुलसी देवी को प्रणाम है | इतने सारे गुण स्वयं में समाहित रखने वाली तुलसी की पूजा वैसे तो नित्य होती है परन्तु २५ दिसम्बर को आधुनिक भारत में "तुलसी पूजन दिवस" के रूप में मनाया जाता है | जब आधुनिक भारत में क्रिसमस के प्रति लोग आकर्षित होकर ईसाईयत को अपनाने लगे तब सनातन के धर्मगुरुओं ने आज के दिन तुलसी पूजन दिवस की नींव रखी |*
*आज हम अपनी सनातन संस्कृति को भूलते जा रहे हैं | इसी भारत देश में सभ्यता एवं संस्कृति के मूल संवाहक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एवं उनके सहयोगी बंदर भालू के द्वारा निर्मित विशाल राम सेतु का भी प्रमाण मांगा जा रहा है | ऐसे में प्लास्टिक का वृक्ष तैयार करके , उसके चारों तरफ प्रकाश करके यह कामना करना कि सेंटाक्लाज नाम का कोई व्यक्ति आकरके हमारी मनोकामनाएं पूरी करेगा यह हास्यास्पद लगता है | आज दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो कभी देखा नहीं है उस क्रिसमस के वृक्ष एवं सैंटा क्लॉस का पर्व हम बड़े ही उत्साह से मना रहे है परंतु जीवन में प्रत्येक क्षण मनुष्य को जीवन देने वाली , अनेक रोगों से बचाने वाली तुलसी का पूजन करना भूलते जा रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के आधुनिक लोगों को बताना चाहता हूं कि आज के वैज्ञानिक युग में जहां वैज्ञानिकों ने भी तुलसी के महत्व को माना है वही हम आज अपने पौराणिक महत्व के तुलसी पूजन से स्वयं को वंचित रखे हैं | विचारणीय एवं चिंतनीय कि हम आज दिव्य औषधि के रूप में हमारे बीच में उपस्थित तुलसी जैसे पौधे का पूजन भूल कर के क्रिसमस के पेड़ का पूजन करके क्या प्राप्त करना चाहते हैं ?? इतिहास गवाह रहा है की परिवर्तन सृष्टि का नियम है इस परिवर्तन में अनेकों सभ्यता एवं संस्कृति काल के गाल में समाहित हो गई हैं | किसी भी जीवन शैली का पतन होना प्रारंभ होता है तो सर्वप्रथम उसकी संस्कृति एवं सभ्यता पतित होती है उसके बाद ही वह समूल संस्कृति ही इतिहास का हिस्सा बन जाती है | आज यदि सनातन संस्कृति को मानने वाले अपनी संस्कृति को न बचा पाये तो वह दिन दूर नहीं जब आप भी इतिहास का एक पन्न बनकर रह जायेंगे |*
*आज तुलसी पूजन दिवस के रूप में तुलसी के पूजन संरक्षण एवं संवर्धन का संकल्प लेते हुए करते सनातन धर्म को इसके महत्व को समझने का प्रयास करना चाहिए*