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बाल-विमर्श

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मोबाइल में फंसकर छिन रहा, मासूमों का बचपन

-मोबाइल बच्चों से न सिर्फ उनका बचपन छीन रहा रहा

शिवा अपने भाई बहनो में सबसे छोटा और सबसे समझदार था। उसे जादू की कहानियों और जादू के खेल तमाशों मे

जब किसी किलकारी की आहट आती है 
तब घर में खुशियों की सुगंध भर

"बच्चों की किलकारी"विषय पर एक कविता   लिखी थी सुबह सुबह

कहते हैं बचपन से बढ़कर कुछ भी नहीं.... ये ही वो उम्र होतीं हैं जिसमें हम कोई बात दिल से नहीं लग

बाबूजी   के   जानें   से   घर   की  &nbs

बंधुराम किसी सरकारी कार्यालय में लिपिक थे. स्वभाव से बेहद नर्म और

प्यार से कोई गले लगाए

चूम के माथा उसे हंसाए

खोजी या डिस्कवरी कुछ नया या पहले से पहचाने गए कुछ को सार्थक के रूप मे

नन्हे नन्हे बच्चे
होती उनकी उम्मीदें नन्हीं।
छोटी-छोटी उम्मीद

नकारात्मक अंत


राजू हर साल की त

हर किसी का बचपन बड़ा निराला होता है । मेरा भी कुछ ऐसा ही था । पिताजी और अपनी नौकरी पर चले जाते थे

चलो बापू को पढ़ते हैं।
एक दिन नहीं, नित्य ही

तरुण पांच साल का था.. अपनी ननिहाल जा कर वो फूला नहीं समा रहा था. आख़िरकार अपने माता पिता की पहली संता

सभी को जीवन में निर्णय लेना पड़ता है । हमारे सामने हालत यह हो कि या तो कोई विकल्प ही न हो या फिर


समस्त गुरुकुल को शिक्षक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको सादर समर्पित कुछ पंक्तियां<

कच्चा सा दिल 
लम्हें नए चुन रहा हैं 

 भुख के

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