जब किसी किलकारी की आहट आती है
तब घर में खुशियों की सुगंध भर जाती है
घर के जर्रे जर्रे से प्रकाश किरणें आती हैं
आती जाती हवा भी मधुर गीत सुनाती है
मासूम मुस्कुराहट लबों पे खिलने लगती है
उसे गोद में लेने को ये बांहें मचल उठती हैं
अपना बचपन भी लौट आता है साथ उसके
शांत सी जिंदगी में लहरें सी उठने लगती हैं
पलने को पंख लग जाते हैं वो उड़ने लगता है
झूमर भी मस्त मगन होकर झूमने लगता है
"हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की"
का जयगान घर - आंगन में गूंजने लगता है
दूध की बोतल भी बेचैनी से इंतजार करती है
बुआ की धड़कनों से सुर सरिता सी बहती है
अम्मा की खुशियों का तो खजाना खुल गया
दद्दू की पीठ शाही सवारी को सजने लगती है
पापा तो जन्नत में विचरण करते से लगते हैं
उनके एक एक पल सदियों जैसे गुजरते हैं
मम्मी के वात्सल्य का तो कहना ही क्या है
उसके रोम रोम से सैकडों झरने से फूटते हैं
नानी नजर के लिए काला धागा लेकर आती है
नानू की आंखें में जहां की खुशियां समा जाती हैं
मामा तो बच्चों को लगता ही चंदा मामा जैसा है
किलकारी की गूंज फूफाजी को भी बहुत भाती है
हरिशंकर गोयल "हरि"
22.10.21