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किलकारी की गूंज

22 अक्टूबर 2021

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जब किसी किलकारी की आहट आती है 
तब घर में खुशियों की सुगंध भर जाती है 
घर के जर्रे जर्रे से प्रकाश किरणें आती हैं 
आती जाती हवा भी मधुर गीत सुनाती है 

मासूम मुस्कुराहट लबों पे खिलने लगती है
उसे गोद में लेने को ये बांहें मचल उठती हैं 
अपना बचपन भी लौट आता है साथ उसके 
शांत सी जिंदगी में लहरें सी उठने लगती हैं 

पलने को पंख लग जाते हैं वो उड़ने लगता है 
झूमर भी मस्त मगन होकर झूमने लगता है 
"हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की" 
का जयगान घर - आंगन में गूंजने लगता है 

दूध की बोतल भी बेचैनी से इंतजार करती है 
बुआ की धड़कनों से सुर सरिता सी बहती है 
अम्मा की खुशियों का तो खजाना खुल गया 
दद्दू की पीठ शाही सवारी को सजने लगती है 

पापा तो जन्नत में विचरण करते से लगते हैं 
उनके एक एक पल सदियों जैसे गुजरते हैं 
मम्मी के वात्सल्य का तो कहना ही क्या है
उसके रोम रोम से सैकडों झरने से फूटते हैं 

नानी नजर के लिए काला धागा लेकर आती है 
नानू की आंखें में जहां की खुशियां समा जाती हैं 
मामा तो बच्चों को लगता ही चंदा मामा जैसा है 
किलकारी की गूंज फूफाजी को भी बहुत भाती है 

हरिशंकर गोयल "हरि"
22.10.21 


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रचनाएँ
मेरी कविताएं
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इस पुस्तक में मैंने अपनी कविताएं प्रकाशित की हैं जो विभिन्न विषयों जैसे श्रंगार , सौंदर्य , प्रेम, हास्य, जीवन, समाज आदि से संबंधित हैं । आशा है कि यह पुस्तक आपको पसंद आएगी । कृपया इस पुस्तक के संबंध में अपने विचार अवश्य प्रकट करने का श्रम करें । धन्यवाद
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2 जनवरी 2022
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3 जनवरी 2022
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इससे पहले कि इस जिंदगी का सूर्यास्त हो दिन के उजाले की तरह खुशियां समाप्त हो आओ मिलकर प्यार की स्वर लहरियां बिखेरें समय के कैनवास पर सत्कर्मों के चित्र उकेरेंगंगा की तरह मन को पावन और निर्मल कर लें राग द्वेष छोड़कर विश्व को अपनी बांहों में भर लें नफरत की कड़वी बोली छोड़ तराने प्रेम के गुनगुनायें मुफ्त की खैरात के बजाय परिश्रम पर भरोसा जतायें जब ज्ञात है कि जीवन में सूर्यास्त अवश्यंभावी है जिंदगी के चार दिनों पर मौत की कालजयी रातें हावी हैंइसलिए नेकी और सदाचार के पथ पर चलना होगा अपने कर्मों और व्यवहार से गुलाब सा महकना होगा जब सूर्यास्त का समय आये तब चेहरे पे मुस्कान हो इस तरह से इस जीवन रूपी दिवस का अवसान हो हरिशंकर गोयल "हरि"3.1.21

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4 जनवरी 2022
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सुनो प्रिये , प्यार के पंख लगाकर दूर कहीं उड़ जायें सुनहरी घाटियों के बीच "प्रेमनगर" बसायें जहां प्रेम रूपी उपवन सबको महकाता हो किस्मत का सूरज सबका मुकद्दर चमकाता हो नदिया

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6 जनवरी 2022
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स्वामी विवेकानंदहिंदू धर्म और दर्शन से विश्व लगभग अनजान था हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति का ना कोई मान था सांप संपेरो का देश मानते थेहमें जाहिल अनपढ़ जानते थे विश्व पटल पर

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19 जनवरी 2022
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सवाल और बवाल

7 सितम्बर 2022
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उसकी नशीली आंखें इस कदर जादू कर गईं प्यार का बुखार चढा कर दिल बेकाबू कर गई रात दिन बस उसी के ख्याल आने लगे उनकी गलियों के चक्कर बेवजह लगाने लगे नजदीक आने का कोई बहाना बनाने लगे

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11 सितम्बर 2022
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बंगाल में अर्थव्यवस्था तेजी से बदल रही है खाट भी अब करोड़ों के बंडल उगल रही है यहां वहां नोटों के पहाड़ सीना ताने खड़े हैं सादगी की प्रतिमा अब विखंडित हो रही है पलटूराम एक बार

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