बेचारी में ,अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा जो ,शास्त्रीनगर के मकान नंबर अट्ठावन में आती है ,वहां उसका एक रूह से सामना होता है। वो पहले तो ये बात ,हल्के में ले रही थी किन्तु ,जब उस आत्मा ने, उसे परेशान कर दिया ,तब उसे बहुत डर लगा।ऋचा ने उस आत्मा से लड़ने के लिए , अपना मन बना लिया। इसके लिए वो दीक्षित परिवार से सहायता मांगती है क्योंकि वो लोग पहले उनके घर के ,बराबर में ही ,किराये पर रहते थे। श्रीमति दीक्षित ऋचा को बताती हैं -एक बार श्रीमति चौबे जी के पति की तबियत बिगड़ गयी ,तब एक नर्स को उनकी सेवा के लिए लगाया गया। उसके साथ ,उसकी एक छोटी बच्ची भी थी।
उस नर्स ने उन्हें बताया -उसका पति उसे मारता -पीटता है और वो बड़ी परेशानी से अपना और अपनी बेटी का भरण -पोषण करती है। उस बेचारी नर्स को चौबे परिवार ,काम देने के साथ -साथ अपने घर में भी रख लेता है ताकि उसकी सेवा के साथ -साथ ,उस बेचारी की भी मदद हो जाये। इस तरह उसने उनकी सेवा और प्यार भरे व्यवहार से उन दोनों पति- पत्नी का दिल जीत लिया । उनके सामने, दुखियारी और" बेचारी "बनकर रही , जिस कारण उन दोनों ने उसे अपने घर में रहने की इजाज़त दे दी ।
छह माह तक तो सब ठीक रहा ,उसके पश्चात ,एक दिन अचानक वो एक लड़की लाती है ,उसके पश्चात एक लड़का भी आता है। तब तो वो उन्हें कभी अपना दोस्त ,कभी रिश्तेदार बताकर, अपने घर के अंदर बुला लेती , किन्तु चौबे परिवार के' बुजुर्ग दम्पत्ति 'की नजरों से कुछ छिप नहीं पाया। जब चौबे जी थोड़े ठीक होने लगे तब उन्होंने नितिका को सख्ताई से मना कर दिया -यदि यहां रहना है तो ठीक से रहो ,बाहर का कोई भी व्यक्ति यहां दिखना नहीं चाहिए। उनके कहने पर उसने 'हाँ 'में सर हिलाया। कुछ दिन पश्चात एक व्यक्ति आया और उससे बहुत झगड़ा हुआ। हम लोगों को पता चला वो उसका पति था। अब आगे -
ऋचा बोली - उसका पति क्यों लड़ रहा था और उसने उस झगड़े की क्या वजह बताई ?
श्रीमती दीक्षित बोलीं -वही तो बता रही हूँ ,उस नर्स ने उससे प्रेम विवाह किया था । ये उसका प्रेम भी नहीं था वरन वो तो ,उसके गांव से निकलने का माध्यम था। नितिका ने उससे प्रेम का नाटक किया ताकि वो अपने गाँव से बाहर आये और शहर में ,अपनी मनमर्ज़ी से रह सके ,जो सपने उसने देखे हैं ,उन्हें जी सके। उसका सपना था -'बहुत सारा पैसा कमाना'। जब वो लोग , गाँव से भागकर आये तब रहने ,खाने -पीने की समस्या भी बढी। वो लड़का पढ़ा -लिखा था, तो किसी विद्यालय में ,पढ़ाने लगा। घर से भागकर आये थे ,इसीलिए किसी से कोई सहायता की अपेक्षा भी नहीं थी। कुछ दिन तो ,यूँ ही चलता रहा किन्तु इस तरह कैसे जीवन बिताते ?धीरे -धीरे , उसके साथ जो लड़की भागकर आई थी, वह भी लोगों से मिलने और शहर के तौर -तरीकों को समझने लगी।
एक दिन अपने पति से बोली -मैं भी कुछ काम सीखती हूँ।
काम सीखने के बहाने ,बाहर जाने लगी। दिनभर की भागदौड़ और कम आमदनी। आमदनी बढ़ी भी थी किन्तु उसके सपने तो बहुत ऊँचे थे। इस बीच उसकी बेटी भी आ गयी ,पहले तो वो उसे ,इस संसार में लाना ही नहीं चाहती थी किन्तु पति के समझाने पर मान तो गयी, किन्तु उसके मन की इच्छाऐ बढ़ती गयीं। अब तो एक बच्ची की माँ भी बन चुकी थी ,जो उसे अंदर से कचोट रहा था ,उस पर माँ की मुहर जो लग चुकी थी।
अपना क्रोध कभी -कभी ,अपनी बेटी पर निकालती। तू ही मेरे कर्म में रखी गई, अभी तो मेरे ही अरमान पूर्ण नहीं हुए, अब तुझे लाधे कहाँ -कहाँ घूमूँ ? एक तो इस मास्टर के बहकावे में आकर तुझे पैदा किया , अब तुझे सम्भालूं या अपना भविष्य देखूँ , कहकर उसके दो -चार तमाचे भी लगा देती बेचारी बच्ची रोते हुए अपने पिता के पास चली जाती
क्या सोचकर ,वो उसके साथ भागी थी और क्या हो गया ?एक गरीब मास्टर की पत्नी बनकर रह गयी। न ही जीवन में आगे बढ़ना, न ही कहीं से धन- दोलत की वर्षा होने वाली है अब भी यदि मैने कुछ नहीं किया तो इस मास्टर के साथ, ऐसे ही किसी किराये के मकान में सडकर् मर जाऊंगी सारा दिन उस बच्ची और अपने जीवन को कभी मास्टर को कोसती रहती।
कल को हमारी बेटी बड़ी होगी इसका क्या भविष्य होगा ? इसके खर्चे भी बढ़ेंगे ये स्कूल भी जायेगी, इतनी कमाई से गुजारा सम्भव नहीं ।अब वो अपनी बेटी का बहाना लेकर ,उससे और अधिक पैसे कमाने के लिए कहती। बेचारे ने ट्यूशन भी किये। वो भी नर्स बन गयी। अब तो वो पैसे वाले लोगों को देखकर ,सोचती - काश!वो उनकी जगह होती।
ज्यादा पैसे लेकर 'अवांछित गर्भ 'भी गिरा देती। इसके अतिरिक्त उसने ,अलग कमरा लेकर ,लड़के -लड़कियों को भी बुलाने लगी और अपनी बेटी को भी ,पति के पास ही छोड़ आई। उसकी पैसे की लालसा इतनी अधिक हो गयी थी कि वो कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थी।
उन्हीं दिनों ,चौबे जी कि तबियत बिगड़ गयी। ऐसे में एक नर्स की आवश्यकता पड़ी तो संयोग देखिये -उन्हें वो ही मिली। और वो बेचारी बनकर ,उनके घर में आ गयी।
किन्तु आंटी उसकी बेटी तो अपने पिता के पास थी ऋचा ने पूछा।
हाँ ,पहले अपने पिता के पास थी किन्तु एक माँ पर लोग शीघ्र ही, विश्वास कर लेते हैं इसीलिए उसे चुपचाप उठाकर ,ले आई। उसने तो अपने पति को अपने रहने का स्थान भी नहीं बताया और जब उसे ढूंढता -ढाढंता ,यहां पहुंचा तब झगड़े हुए और हमने भी देखा, उसे अपनी बेटी से मिलना था, वो नही चाहता था, वो अपनी बेटी को भी अपने जैसा न बना दे।
उसके पति का क्या नाम था ?ऋचा ने पूछा।
वो तो हमें नहीं मालूम ,क्योंकि वो तो कुछ देर के लिए ही तो आया था ,उसमें भी उन दोनों का आपस में झगड़ा हो गया। वो तो अपनी बेटी को लेने आया था ,लेकर चला गया। कह रहा था -जैसी ये स्वयं है ,मेरी बेटी को भी ऐसा ही बना देगी।
वो भी तो लड़कर कह रही थी ,मेरी भी बेटी है ,मैं चाहे जो करूं ?
उनकी बेटी का तो नाम स्मरण ही होगा ,ऋचा ने उनसे पुनः पूछा।
वो अपनी स्मरणशक्ति पर जोर देते हुए बोलीं -सालों हो गए ,अब इतने वर्षों की बातें कहाँ स्मरण रहती हैं ?तभी वो अंकल बोले -वो उसे ,मलु -मलु कहती थी।
हाँ ,शायद ,उसका नाम मालिनी था ,पक्का तो नहीं कह सकती।
ऋचा उस नाम को सुनकर ,उदास हो गयी और बोली -अच्छा अब मैं चलती हूँ ,बहुत देर हो गयी ,बाक़ी कि कहानी कल सुन लूँगी कहकर उठी।
वो बोलीं -जिन्दा बचेंगे ,तब न। देखा नहीं ,तेरे अंकल की क्या हालत कर दी उसने ?
उनकी कहानी सुनकर और उस लड़की का नाम सुनकर ऋचा क्यों उदास हो गयी ? जानने के लिए पढ़ते रहिये - बेचारी