बेचारी के इससे पूर्व भाग में आपने पढ़ा -ऋचा और उसके पिता ,नितिका नाम की आत्मा से बचते - बचाते एक मंदिर में जाकर शरण लेते हैं। मंदिर के पंडित जी उनकी सहायता का वायदा करते हैं और अपना एक आदमी ''भैरों बाबा ''के पास भेज देता है किन्तु वे उन्हें अपने पास बुलाते हैं। तब दोनों ''भैरों बाबा '' के पास पहुंचते हैं ,वे घने जंगलों के बीच ,गहरी गुफा में रहते हैं। ऋचा और उसके पापा को ,उनके पास पहुंचाने के पश्चात ,वो व्यक्ति अचानक से गायब हो जाता है।बाबा कहते हैं -तुम उसकी चिंता न करो ,वो सही जगह पहुँच जायेगा। तभी वो ध्यान लगाकर ,ऋचा के पापा से नाराज हो जाते हैं और कहते हैं -तुम हत्यारे हो !उनके इतने कहने से ऋचा चौंक जाती है और वो आँखें चौड़ी कर कभी पापा को कभी ''भैरों बाबा ''को देखती। अब आगे -
ऋचा के मन में ,अनेक प्रश्न उठते हैं, और सबसे ज्यादा तो यही प्रश्न कुलबुला रहा था ,मेरे पापा ने हत्या की ,वो भी किसकी ?मेरी ज़िंदगी भी अजब पहेली है ,मेरी माँ ,जो ''बेचारी'' बनकर दूसरों की भावनाओं से खेलती और अब पिता का नया रूप दिखा ,एक अपराधी का।
तभी बाबा बोले -बेटा ये तुम्हारी गलती नहीं ,तुम तो निर्मल आत्मा हो ,बस कुछ कर्मो का लेखा -जोखा हैं ,जिन्होंने तुम्हें इनकी बच्ची रूप में पैदा किया।ऋचा सोच रही थी- कि क्या बाबा मन के विचार भी सुन सकते हैं ?तभी उन्होंने हाँ में गर्दन हिलाई और बोले - तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ -
आज से तीन सौ साल पहले ,एक गाँव था ,''दौलतपुर '' उस गांव के सभी लोग ''दौलत ''वाले थे तभी उस गांव का नाम ''दौलतपुर ''रखा गया था। अब जहाँ अच्छे लोग होते हैं तो बुरे भी होते हैं ,वहीं एक औरत रहती थी ,वो अत्यधिक चालाक और लालची थी ,उसके पास जितना भी धन था ,उससे संतुष्ट नहीं थी। अधिक धन की लालसा ने उसे बेईमान बना दिया। वो लोगों को कभी धोखे से ,कभी प्यार से फंसा लेती और जब वो लोग लाचार और बेबस हो जाते ,तब उनसे पैसे ऐंठने का कार्य करती।
एक बार उसने इसी तरह एक लड़के को फंसा लिया किन्तु वो लड़का तो उससे भी चालाक निकला ,उससे प्रेम -मोहबब्त के वादे कर ,बाहर चोरी करता और चुराया हुआ माल ,उसे लाकर देता। वैसे तो वो भी उस महिला यानि क़ादम्बिनी के धन के लालच में आया था ,किन्तु उसका यौवन और उसकी सुंदरता देखकर वो उस पर मोहित हो गया। उसने सोचा -घर तो बसाना ही है ,क्यों न यहीं बस जाऊँ ?ये अपनी चोरी की दौलत का कोई रखवाला भी तो होना चाहिए। यही सोचकर उसने अपने को एक बहुत बड़ा व्यापारी बताया। दोनों का लालच ही ,उनके मिलन का कारण बना। पति -पत्नी तो वो दोनों बन गए फिर भी दोनों ने अपना काम नहीं छोड़ा। चोरी -धोखाधड़ी यही उनके घर की नीव थी।
दोनों ने आपस में भी ,एक -दूसरे को कुछ नहीं बताया। एक दिन कादम्बिनी के कारण ,एक महिला का घर उजड़ गया क्योकि कादम्बिनी ने उसके पति को फंसाया और उनके घर में ,दोनों पति -पत्नी में झगड़े करा दिए ,जिस कारण उसके पति ने आत्महत्या कर ली। जब उसकी पत्नी को सही जानकारी मिली और उसे पता चला- कि उसका पति सही था सच्चा था ,उसे बहुत आत्मग्लानि और दुःख हुआ। तब उसने भी आत्महत्या की और मरने से पहले ,कादम्बिनी को श्राप दिया। तेरे कारण ,मैं अपने सीधे -सच्चे पति पर विश्वास नहीं कर पाई। जिस कारण हमारा बसा -बसाया घर उजड़ गया। अब मैं तुम्हें श्राप देती हूँ ,तुम भी कभी अपना घर बसा नहीं पाओगी और इस जन्म में भी तुम्हे कोई सुख प्राप्त नहीं होगा।
भुवन तो चोरी करने दूसरे शहर और गाँवों में चला जाता और फिर सिपाहियों से बचता फिरता ,इस कारण कई -कई दिनों तक बाहर ही रहता ,गांव नहीं आ पाता। उसकी पत्नी भी बेफिक्र होकर ,लोगों को ठगती ,एक बार उसने उस गाँव के प्रधान के बेटे को ही अपने चंगुल में फँसा लिया किन्तु प्रधान तो रौबीला व्यक्ति था और चरित्र का पाक़ , उस गाँव के लोगों का उस पर विश्वास भी था। सभी उस पर विश्वास रखते थे। कादम्बिनी ने तो पहले भी कई लोगों को छला और ठगा था। उसके व्यवहार के कारण कई लोग उसके विरुद्ध भी थे। तब प्रधान के बेटे ने उसकी असलियत सबके सामने लाकर ,रखी क्योंकि उसके दोस्त के साथ भी कादम्बिनी ने ऐसा ही किया था ,उसका बदला लेने के लिए ,उस प्रधान के बेटे ने ये षड्यंत्र रचाया था।
सभी चीजें सामने आने पर ,लोगों ने ,कादम्बिनी के विरुद्ध प्राण दंड देने की सिफ़ारिश की ,गांव की औरतों ने तो उसके ऊपर थूका और उसके ऊपर जूते - चप्पल फेंके।
प्रधान ने कहा - अभी इसका पति यहाँ नहीं है ,इसीलिए इसे गांव से बाहर निकाल देते हैं और जब वो आयेगा ,तभी इस बात का फैसला होगा कि इसका क्या करना है ?तब तक उसे गांव से बाहर एक झोंपड़े में भेज दिया किन्तु वहाँ से भी भाग न सके इसीलिए अपने दो -तीन लठैत उस पर निग़ाह रखने के लिए रख छोड़े। जब गांव में उसके पति ने कदम रखा लोग उसे अज़ीब नजरों से घूर रहे थे वो कुछ समझ नहीं पाया। एक -दो से उसने कादम्बिनी के विषय में भी पूछा तो उसे घूरते हुए निकल गए। घर उजाड़ वीरान पड़ा था।
तब अपने गांव के ही एक मित्र से मिन्नतें की और उससे कादम्बिनी के विषय में पूछा -तब उसने सारा क़िस्सा उसे समझाया। उसकी बात सुनकर उसे बहुत क्रोध आया ,जीवन में उसने पहली बार किसी महिला पर विश्वास और प्रेम जतलाया था। इसका अर्थ है ,वो मुझे भी ,धोखा ही दे रही थी। तब उसने आपने -आप से भी कुछ प्रश्न किये -तू भी तो उसे धोखा दे रहा था ,ये तेरा घर ,तेरे धोखे और लालच की नींव पर बसा है ,इसका ऐसा हश्र तो होना ही था। उसके मन में आया ,जाकर उस चुड़ैल की हत्या कर दे ,उससे मिलने का दिल नहीं हुआ।
अगले दिन ,गांव के प्रधान की तरफ से उसके लिए संदेशा आया और वो वहां गया भी ,गांव के प्रधान की आज्ञा का उलंघन नहीं कर सकता था। वहीं उसकी पत्नी भी उपस्थित थी ,लोग उसकी पत्नी को बद्दुआएं दे रहे थे। वो अपनी करनी पर शर्मिंदा नहीं थी वरन उन लोगों को घूर रही थी ,उसे शायद उम्मीद थी कि मेरा पति मेरा साथ देगा किन्तु भुवन तो चुपचाप बैठा रहा। उसे लगता था जो व्यवहार उसकी पत्नी उसके साथ कर रही थी ,उसके प्यार में होकर कर रही है किन्तु उसे ये नहीं पता था- कि ये ही तो उसका पेशा है। लोगों को मूर्ख बनाना ,अपने जाल में फंसाना और फिर उनका लाभ उठाना।
अब कादम्बिनी और भुवन की ज़िंदगी में क्या होगा ?लोगों का क्या फैसला होगा ?क्या उसे मृत्यु दंड मिलेगा या फिर भुवन उसे बचा लेगा। क्या भुवन की सच्चाई भी सबके सामने आ जाएगी ?क्या उस औरत का श्राप फलीभूत होगा ?जानने के लिए पढ़ते रहिये -बेचारी....