बेचारी में ,आपने पढ़ा -ऋचा उस घर की परेशानियों को दूर करने के लिए , वो इस आत्मा के चक्कर को ही समाप्त कर देना चाहती है। इसके लिए वो उस घर की कहानी जानना चाहती है और इसके लिए वो दीक्षित परिवार से सहायता लेती है। तब उसे पता चलता है - ''नितिका ''नाम की नर्स ,एक बच्ची के साथ ,उनके घर में आती है और चौबे परिवार की सेवा भी करती है। वो लोग उससे प्रसन्न होकर ,उसे अपने घर में ही रहने देते हैं। उसके घर में रहने के ,कुछ समय पश्चात वो अपना रंग दिखाती है। तभी उसका पति भी आ जाता है और उसकी सम्पूर्ण सच्चाई ,सबके सामने प्रकट कर देता है। ऋचा ''नितिका ''की बेटी का नाम उनसे पूछती है ,उन्हें कुछ ज्यादा तो स्मरण नहीं ,किन्तु शायद उसकी बेटी का नाम मालिनी था ,बताते हैं। ऋचा उन लोगों को सुरक्षित करके कल आने के लिए कहकर ,चली जाती है। अब आगे -
ऋचा का मन उदास हो जाता है और उसका दिल करता है ,वो रोये। पता नहीं ,जो वो सोच रही है -यदि वो सच हुआ ,तो पता नहीं क्या करेगी ?उसका दिल घबरा रहा था - कि सच्चाई की जानकारी लूँ या नहीं ,कौन मुझे इस सच्चाई से अवगत करायेगा?वो अपने उस डरावने घर न जाकर ,उसी बगीचे में चली गयी। बहुत देर तक उदास बैठी रही ,अचानक ही उसकी रुलाई फूट गयी। उस समय वहां कोई नहीं था। काफी देर तक रोती रही ,तभी उसका फोन बज उठा ,उसने बुझे स्वर में -हैलो !कहा।
उधर से आवाज आई ,हैलो !मालिनी बेटा कैसी हो ?क्या तुम ठीक हो ? उसके पापा का चिंतित स्वर उभरा।
जी...... पापा कहकर वह चुप हो गयी।
नहीं ,तुम्हारी आवाज तो कुछ और ही कह रही है ,शायद तुम परेशान हो ,अपने पापा से नहीं कहोगी।
पापा से नहीं कहूंगी तो और किससे कहूँगी ?कहते हुए ,ऋचा की हिड़की बंध गयी , कुछ देर इसी तरह रोती रही , तब बोली -पापा !मेरी माँ का क्या नाम था ?
बेटा , तू आज क्या बात ले बैठी ?आज तक तो तूने कभी उसका नाम नहीं पूछा।
आज ऐसे ही माँ का स्मरण हो आया। बताइये ,न पापा !
उधर से ,कोई आवाज नहीं आई। वो तो जैसे ,बेटी को समझाने के लिए शब्द ढूंढ़ रहे थे। कुछ समझ नही आ रहा था जिस राज को वो इतने वर्षों से अपने सीने में दफ़्न किये थे आज कैसे जुबान पर लायें।
अपने पिता की खामोशी देखकर ऋचा समझ गयी, कि इस समय वो बहुत परेशानी में हैं उनकी समस्या का हल शीघ्र ही ऋचा ने कर दिया।मेरी माँ का नाम ''नितिका ''था न ,जिसकी बेटी का नाम ''मालिनी ''था। मैं ठीक कह रही हूँ न, पापा !
हम्म्म !
यानि वो नर्स और कोई नहीं मेरी माँ ही थी जो आज इस घर में ,मरने के पश्चात भी ,अपना डेरा जमाये है। यानि मुझे अपनी माँ से ही लड़ना होगा ,माँ से नहीं वरना,उसके भूत से लड़ना होगा। मुझे मेरी माँ स्मरण नहीं ,मिली भी तो इस रूप में ,कहते हुए वो और तेज स्वर में रोने लगी।
चुप हो जा !मेरी बच्ची ,तेरा ये पिता विवश है ,होनी को कौन टाल सकता है ?उसने तो जीते जी ,तुझे माँ का सुख नहीं दिया तब मरने के पश्चात ,कैसे उससे उम्मीद कर सकते हो ? कि तुम्हारी माँ बनकर तुम्हारे साथ रहती, जिन्दा रहती भी तो ,अपने सुख के लिए ,जब तक रही ,अपनी इच्छाओं की दास बनी रही। अपने सिवाय उसे कुछ नहीं दीखता था।
पापा !मेरी माँ मरी कैसे ?
कुछ समय तक तो आवज नहीं आई फिर बोले -जिसने ये बताया कि वो तेरी माँ थी ,उससे ही पूछ लेती ,कैसे मरी ?
अपने आँसू पोंछते हुए ऋचा या मालिनी बोली -नहीं ,उन लोगों को तो पता ही नहीं ,कि वो अब इस दुनिया में नहीं। ऋचा के मन का बोझ ,अपने पापा से बात करके कुछ कम हुआ। बोली -अब चलती हूँ ,देखती हूँ मेरी माँ ने मेरे लिए ,क्या तैयारियाँ कर रखी हैं ?
बेटा ,अभी कुछ भी इतना आसान नहीं ,वो अब तेरी माँ नहीं ,पहले भी नहीं थी और अब तो प्रश्न ही नहीं उठता इसीलिए अपना ख्याल रखना और स्मरण रहे -अभी तुम ऋचा ही हो ,मालिनी नहीं।
ठीक है ,पापा ,कहकर ऋचा घर की ओर प्रस्थान करती है।
घर के नज़दीक पहुंचकर ,ऋचा ने देखा -उसके घर के सामने ,एक लड़की खड़ी थी ,जैसे उसी की प्रतीक्षा कर रही हो। उसको अपनी तरफ आते देखकर ,वो मुस्कुरा रही थी।
ऋचा ने सोचा -पता नहीं ,अब मेरी माँ ने मुझे मारने या डराने के लिए क्या योजना बनाई है ?जब वो नजदीक आई।
हैलो ! मैं कणिका ,मैंने सुना है -यहाँ एक कमरा किराये पर है।
मैं ऋचा ! इस मकान में ,तो कई कमरे ख़ाली हैं किन्तु कोई भी यहां रुक नहीं पाता।
क्यों, ऐसा क्या है ?इस मकान में। आप भी तो रह रही हैं।
मेरी तो बात अलग है ।
अगर आप रह सकती हो तो हम भी रहकर देख लेते हैं।उसने जबाब दिया।
,रह कर देख लीजिये। ऋचा को तो जैसे ,सहारा हो गया। वास्तव में तो ,उसे अब इस घर में ,अकेले रहते ड़र लग रहा है ,जब उसे एहसास होता है कि एक नहीं यहाँ कई भूतों के साथ उसे रात्रि बितानी है। तुम्हारा सामान किधर है ?ऋचा ने पूछा।
अंदर ही रक्खा है। कहकर वो घर के अंदर बढ़ चली।
ऋचा सोच रही थी -इसने पूछा भी नहीं और सामान अंदर भी रख दिया। फिर सोचा -ताला भी तो नहीं लगा था इसीलिए रख दिया होगा। ऋचा ताला लगाती ही नहीं थी क्योंकि उसका अपना तो कोई विशेष सामान था ही नहीं। और उस भूतिया घर के कारण ,और बंद गली होने के कारण, कोई उधर से गुजरता ही नहीं।
दोनों अंदर जाती हैं ,आज ऋचा को इतना ड़र नहीं लग रहा था क्योंकि एक से भले दो। अंदर जाकर देखा तो आज घर भी साफ था। ऋचा मन ही मन सोच रही थी -ये कैसे हुआ ?वो तो जब भी सफाई करती है ,पुनः वैसा ही हो जाता था। ये सफाई तुमने की ?
हाँ....... कणिका बोली।
अच्छा ,कुछ खाओगी ,नहीं मैं खा चुकी कहकर वो स्नानागार में चली गयी।
ऋचा को तो भूख लगी थी ,वो रसोईघर में गयी ,तभी उसे स्मरण हुआ उसे तो मंदिर का दीपक भी जलाना है। आज वो प्रसन्न है कि उसके साथ कोई है ,आज तो कणिका से विस्तार से बातें होंगी। वो जब मंदिर का दीपक ,जलाकर आई तो बोली -कणिका ,चाय पियोगी , अंदर से,कोई आवाज नहीं आई ,उसने स्नानागार का दरवाजा खटखटाया कोई आवाज न सुनकर एक दो बार और पुकारा और दरवाज़ा खोलकर देखा, तो अंदर तक सिहर गयी।
ऐसा क्या था ? वहाँ ,जो ऋचा घबरा गयी, अचानक कणिका कहाँ गायब हो गयी? कहीं उस आत्मा ने, उसका खात्मा तो नहीं कर दिया क्या हुआ उन दोनों के साथ? पढ़ते रहिये - बेचारी