बेचारी में ,अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा और उसके पापा ,''भैरों बाबा ''से मिलते हैं। 'भैरोंबाबा'उन्हें उनके पूर्व जन्म की कहानी सुनाते हैं ,जिससे पता चलता है -ये इनके पूर्व जन्मों के ही कारण हो रहा है। अब वे लोग ''भैरों बाबा ''के साथ वापस उसी घर में आ जाते हैं। जहाँ ऋचा को ,पुलिस वालों के सवालों के जबाब देने पड़ते हैं। ''भैरों बाबा ''भी उन्हें अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके दिखा देते हैं। तब इंस्पेक्टर ललित खन्ना वहां आकर बात को संभालते हैं और बताते हैं कि ये केस मुझे ही मिला है ,बाबा उसे आशीर्वाद देते हैं ,अब आगे -
इंस्पेक्टर ललित खन्ना ''उस समय तो उन दोनों सिपाहियों को लेकर चला जाता है, किन्तु उस घर पर नजर रखने के लिए कहता है।उधर बाबा अपनी पूजा आरम्भ करते हैं। जिस कारण ,नितिका की आत्मा अत्यंत क्रोधित हो जाती है।तभी अचानक घर के अंदर ही तेज हवा चलती है ,जिसके फ़लस्वरुप ,पूजा का कलश गिरकर फूट जाता है। बाबा तब भी पूजा में लीन रहते हैं और अपना मंत्र जाप जारी रखते हैं।नितिका भी हार नहीं मानती ,तेज हवा के झोंके से ,पूजा की सम्पूर्ण सामग्री हवा में उडा देती है।इसके पश्चात भी ,बाबा विचलित नहीं होते ,तब अचानक हवा में ,तैरता हुआ सा, एक पंछी आता है और' हवन कुंड 'की अग्नि में गिर कर मर जाता है। इस समय दो शक्तिशाली ताकतों के बीच संघर्ष चल रहा था। अब तो बाबा को उठना ही पड़ा,वैसे तो अग्नि में भस्म होकर सब शुद्ध हो जाता है किन्तु उस पंछी की मौत के पश्चात , हवन की अग्नि बंद हो गयी थी।
वो शुद्ध हवन की अग्नि थी ,वातावरण को शुद्ध बनाने के लिए थी ,उसमें तामसिक अथवा किसी जीव की मौत हो जाने के कारण ,बंद हो गयी। बाबा ने वो सभी सामान वहां से साफ़ करवाया और दुबारा सारा सामान मंगवाया। फिर से ,सभी स्थानों की सफाई होने तक ,बाबा ने ध्यान लगाया। ध्यान में उस सम्पूर्ण घर का भृमण कर लिया। उन्हें वे दोनों बुजुर्ग भी दिखाई दिए ,जो उनसे विनती कर रहे थे ,मुक्ति चाहते थे। बाबा ध्यान में ही ,उनकी आत्मा से पूछ रहे थे -तुम लोग ,इसकी कैद में कैसे ?जबकि तुम्हारे बेटे ने तो तुम्हारे ''दाह संस्कार '' की सम्पूर्ण विधियां की हैं।
तब उन्होंने बताया -विधियां तो की हैं किन्तु इसने हमारी अस्थियों को अभी तक गंगा जी में ,विसर्जित नहीं होने दिया ,उसने हमारे कलश बदल दिए और अब हमारा बेटा भी ,उसके चंगुल में है।
उसे किसने मारा ?
उसी ने मारा......
बाबा थोड़ा मुस्कुराये ,और बोले -पहले इस नितिका से तो निपट लें ,तब उसका भी निर्णय हो जायेगा।
जब तक ऋचा के पापा ,उसके लिए ,पुनः हवन सामग्री लाते हैं ,तब तक बाबा ,उस तहखाने की ओर बढ़ते हैं। वो कमरा ,सिर्फ सीढ़ियों की तरफ से खुला दिखता है ,उसमें बड़े -बड़े जाले लगे थे ,ऋचा भी उनके साथ ही आती है। कमरा बहुत ही गंदा लग रहा था।
ऋचा बोली -बाबा एक दिन मैं भी , इधर आई थी तब इतना गंदा नहीं था।
बाबा मुस्कुराये और बोले -अभी देखती जाओ ! तभी उस कमरे की दीवारों पर आँखें बनने लगीं ,फिर उन आँखों से अश्रु बहने लगे ,धीरे -धीरे रोने की आवाज भी आने लगी और वो तीव्र से तीव्र होने लगी। ऋचा ने तो अपने कानों पर हाथ रख लिए। वो आवाज़ बढ़ती जा रही थी ,लग रहा था -जैसे उसके कान फट जायेंगे।
तभी बाबा ने कुछ मंत्र पढ़े और अपने हाथ के कमण्डल में से ,थोड़ा जल निकालकर उस कमरे में छिड़का। तभी तेज चीखों से वो कमरा भरने लगा और एक धुंध सम्पूर्ण कमरे में फैल गई।
बाबा बोले -अपने स्थान से हिलना नहीं ,तभी ऋचा के बराबर में से ,तेज़ गंध के साथ ,एक साया निकलकर गया। वो गंध इतनी तेज थी ,ऋचा का सिर घूमने लगा और उसका जी मिचलाने लगा ,जैसे वो वहीं वमन कर देगी। जब वो धुंध छंटी ,तब सामने की दीवार में ऊंचाई पर रखे दो कलश ,उन्हें दिखे।
ऋचा बोली -एक बार जब, मैं आई थी ,तब तो मुझे सामने ही रखे दिखे थे ,तब बाबा ने उसे इशारे से शांत रहने के लिए कहा और अपने दंड़ से ,उन कलशों को नीचे उतारा ,तभी दीवार के नीचे एक साथ कई लाल -काले रंग के कीड़े निकलने लगे। बाबा और ऋचा फुर्ती से बाहर आ गए और इन सीढ़ियों पर ,इन कीड़ों का असर न पड़े यानि सीढ़ियों से चढ़कर बाहर तक न आ जायें ,बाबा ने अपने दंड से अग्नि रेखा बना दी।
ऋचा ने वे कलश ले जाकर ,चौबे दम्पत्ति के कमरे में ही रख दिए। तब 'भैरों बाबा 'ने उस कमरे के दरवाजों को अभिमंत्रित करके बंद कर दिया।
ऋचा बोली -इस आत्मा का ,इन दोनों बुजुर्गों की आत्मा को कैद करने के पीछे ,नितिका यानि मेरी माँ का क्या उद्देश्य हो सकता है ?
कुछ नहीं ,मात्र उनसे बदला लेना ,उस अपमान का, जो उसे उनके जीते जी मिला ,उस अपमान का ज़िम्मेदार ,ये इन लोगों को ही मानती है। अब इन लोगों की अस्थियों को , उसके चंगुल से तो छुड़ा लिया है किन्तु अब इनके परिवार का ही कोई सदस्य जब इनका विसर्जन करेगा तभी मुक्ति होगी।
बाबा ! एक बात पूछूं ,इनका बेटा.... तो!!!!!!
हाँ ,मैं जानता हूँ। उसे भी मुक्त करना होगा। वो इसके चंगुल में नहीं है।
क्या..... ऋचा आश्चर्य से बोली।
आज़ाद है ,तो उसकी मुक्ति क्यों नहीं ?
क्योंकि???? उसकी आत्मा बंधी है ,उसके बंधन खुल जाने पर ,वो अपनी मौत का बदला लेगी।
अब इस आत्मा के भी न कितने दुश्मन हैं ?एक ये भी !!!!!
वक़्त आने पर पता चल जायेगा ,बाबा ने मुस्कुराकर कहा।
तब तक ऋचा के पापा पूजा और हवन का सामान भी ले आये और पुनः सभी सामान यथावत रखा जाने लगा। तभी बाबा ने ऋचा ,को कुछ समझाया - कब ,कैसे क्या करना है ?सब पहले से ही समझा दिया।
कुछ समय पश्चात ,बाबा अपना हवन आरम्भ कर देते हैं ,इस बार भी व्यवधान तो वो बहुत डाल रही थी किन्तु पूजा को रोकने के लिए नहीं वरन अपने आपको उस स्थान पर लाने से रोक रही थी। वो नहीं चाहती थी -कि उस हवन से ,उसका कुछ भी अनिष्ट हो ,वो अपने ही स्थान से लड़ सकती थी किन्तु यहां आने पर विवश हो सकती थी। ऋचा और उसके पापा भी बाबा के सामने ही बैठे थे। हवन की अग्नि ,तीव्र से तीव्र होती जा रहित थी।
बाबा ने ऋचा को क्या समझाया ?चौबे दम्पत्ति को मुक्त करके ,अब वो नितिका की आत्मा को उस हवन में क्यों बुलाना चाहते हैं ?क्या वो अपना बदला ले पायेगी ?या फिर अपने हत्यारे का पता ,बता देगी। जानने के लिए पढ़िए -बेचारी...