अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा को दीक्षित परिवार ,आगे की कहानी सुनाता है ,और बताता है कि'' प्रदीप चौबे ''के माता -पिता का देहांत हो जाता है जिसकी ज़िम्मेदार ऋचा की माँ ''नितिका ''ही थी। वो बताती हैं -हमने उनके बेटे को फोन करके बुलाया - उससे कहा ,उसकी माँ की तबियत ज्यादा खराब है वो एक बार आकर उन्हें देख ले। जब वो अचानक आता है ,तब उसे पता चलता है कि उसके पिता की मृत्यु नहीं हुई वरन उन्हें एक योजना के तहत मारा गया हैं। इस योजना में वो डॉक्टर और नर्स दोनों ही शामिल हैं। कुछ अनिष्ट की आशंका से ,वो अपनी माँ को देखने जाता है तब उसे पता चलता है कि उसने आने में देर कर दी।
''नितिका ''के शब्दों को सुनकर ,वो उसी आधार पर ,वो अपनी माँ का ''पोस्टमार्टम ''करवाता है ,जिससे पता चलता है ,दोनों पति -पत्नी को ''धीमा जहर ''देकर बीमार किया गया और उन्हें समय से पहले ही मरना पड़ा। तब ''प्रदीप ''अपने माता -पिता की हत्या के आरोप में ''नितिका 'के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज़ कराता है। इससे पहले की पुलिस उसे पकड़ती ,वो घर से भाग जाती है। उनका बेटा भी चला जाता है। दीक्षित परिवार को बस इतनी ही कहानी मालूम थी। अब आगे -
ऋचा उनके घर से निकलकर ,अपने पापा को फ़ोन करती है और कहती है -पापा अब मुझे भी उस घर में जाने से ड़र लगने लगा है।
तू तो ,अपने पापा की बहादुर बेटी है उन्होंने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा।
नहीं पापा ,वो कुछ भी कर सकती है और अब तक मैं उनके इतने रूप देख चुकी हूँ कि साहस ही नहीं होता। अब आप भी यहीं आ जाइये।
मेरी बच्ची मैंने ,कल ही पंडितजी से बात कर ली थी ,वो कह रहे थे -अब हमें जाना ही होगा। हम लोग ,आज शाम चल देंगे और कल तक तो पहुंच ही जायेंगे।
जी पापा !तब तक मुझे एक कार्य और पूर्ण करना है ,उसे भी निपटा लेती हूँ ,कहकर वो फोन रखती है।
वो वहां से सीधे देवीलाल जी के दफ्तर में जाती है ,उसे देखकर देवीलाल जी चौंक जाते हैं और ड़रते भी हैं कहीं इसके अंदर कोई भूत तो नहीं। ऋचा कहती है -देवीलाल जी मुझसे ड़रने की आवश्यकता नहीं ,और उनसे पूछती है - क्या आपके पास ''प्रदीप चौबे ''जी का नंबर है?
उन्होंने' न 'में जबाब दिया और बोले -मैं तो कभी उनसे मिला ही नहीं।
क्या आप मिले भी नहीं और उनका मकान ,आप कैसे किराये पर उठाते हो ?आपसे कौन कहता था ?
देवीलाल जी बोले -मुझे तो एक नंबर से फोन आता था कि ''चौबे'' के घर को किराये पर दे दो।
तब उसका ही नाम पता दे दीजिये ऋचा बोली।
मुझे तो वो भी नहीं मालूम ,किसका नंबर है और कहाँ से आता है ?
ऋचा को आश्चर्य होता है ,बोली -ऐसा कैसे हो सकता है ? लाइए , मुझे वो नंबर दीजिये जिस नंबर से आपको किराये के लिए ,कॉल आती है।
उससे तो बस एक बार ही कॉल लगी थी ,उसके पश्चात मैंने ,कई बार प्रयत्न भी किया किन्तु किसी ने भी नहीं उठाया।
ऐसा कैसे हो सकता है ?आप फोन करें और कोई न उठाये।
ऋचा फ़ोन करती है ,घंटी जा रही थी किन्तु किसी ने भी फोन नहीं उठाया।
तभी उसे कुछ स्मरण हुआ और वो घर की ओर दौड़ती है ,अभी दिन बाक़ी है इसीलिए वो शीघ्रता कर रही है। आज वो ,उस घर के एक अन्य कमरे में भी जाती है ,जिनमें इतने दिनों से नहीं गयी। वो कुछ ख़ोज रही है। एक से दूसरा ,दूसरे से तीसरे की तरफ जाती है तभी उसकी दृष्टि एक अन्य कमरे की दीवार पर गयी जिस पर उन दोनों पति -पत्नी की तस्वीर टंगी थी। वो सीधे उसी कमरे में घुस जाती है और कुछ सामान ढूंढ़ती है। ये बात तो सही निकली ,ये कमरा ही उन दोनों पति -पत्नी का था। उसे जल्दबाज़ी भी इसीलिए थी कि दिन न छिप जाये और ये चुड़ैल अपनी कोई चाल न चल जाये ।उसे एक दराज़ में अपनी ज़रूरत का सामान मिला और बाहर की और भागी। उसे अपने साथ -साथ कोई चलता महसूस हुआ और अचानक बाहर का दरवाजा बंद हो गया।
उसका दिल धक से रह गया ,उसे लगा जैसे उसकी हृदयगति रुक गयी हो। तो अब इसने ये चाल चली है मुझे बाहर जाने ही नहीं देगी। मंदिर बाहर की तरफ ही था ,वो आँखे मींचे ,दीवार से सटकर खड़ी हो गयी। उसे किसी के दीवारें खरोंचने की आवाजें आ रही थीं। अब वो क्या करे कैसे बाहर जाये ?जब तक वो बाहर नहीं निकलेगी तब तक कैसे वो अपना कार्य पूर्ण कर पायेगी ?
जब तक, ऋचा को उसके विषय में पता नहीं था तब तक वो ये सब आसान समझ रही थी किन्तु अब तो ऋचा उसके रूप और उसकी शक्तियों को देख चुकी थी ,उसे ड़र तो लग रहा था। उसने अपने मन को शांत किया और सोचने लगी। इससे पहले कि वो कुछ करती ,ऋचा तेजी से दौड़ती हुई रसोईघर की ओर दौड़ी और वहां से सफेद पाउडर ले ,हवा में उडा दिया और मुट्ठी में भरकर ले आई और अंदाजे से ही हवा में उड़ा दिया क्योंकि वो अब दिख नहीं रही थी किन्तु उसकी चीख़ अवश्य सुनाई दी किन्तु दरवाजा तब भी नहीं खुला।
तभी बराबर के एक कमरे में गयी और उस कमरे की खिड़की से बाहर कूदी। बाहर अँधेरा हो चुका था। अब वो घर के अंदर जा नहीं सकती और बाहर......
उसने अपने हाथ में से कागज़ निकालकर ,उसे खोलकर पढ़ा ,तब वो एक निश्चय कर ,वो बस अड्डे की तरफ बढ़ चली।अब वो देहरादून की बस की प्रतीक्षा में बैठ गयी।तभी उसे स्मरण हुआ ,उसके पास तो पैसे भी नहीं हैं, वो कैसे जाएगी ?
तभी उसने अपना पर्स टटोला और उसमें उसे वो कार्ड मिला जिससे उसकी ये समस्या दूर हो सकती थी। और वो मशीन से पैसे निकालने चली गयी।
वापस आई और बस में बैठ गयी ,उसने महसुस किया कोई है ,जो उसके पीछे है किन्तु कोई दिखाई भी नहीं दे रहा। उसने कई बार पीछे की तरफ घूमकर देखा किन्तु कुछ भी अलग नहीं लगा। अब उसे नींद आने लगी और वो सो गयी।
ऋचा ने उस घर से कैसे कागज लिए, उन कागजों को लेकर अब वो कहाँ जा रही है? उन कागजों में ऐसा क्या था, उनकी आवश्यकता उसे क्यो पड़ी? देहरादून की बस में क्यो बैठी? उसे किससे मिलने, और कहाँ जाना है? अनेक सवालों के जबाब चाहिए तो पढ़िये - बेचारी