अभी तक आपने पढ़ा , नितिका की आत्मा ,ऋचा के पापा के अंदर प्रविष्ट कर जाती है ,और उन्हें लेकर ,न जाने ,कहाँ निकल जाती है ?बाबा अब ''प्रदीप चौबे ''की आत्मा को मुक्त करते है ,ताकि वो बता सके -कि 'प्रदीप चौबे ''को किसने मारा ? उससे पहले वो उससे वायदा लेते हैं कि उसे कातिल को पकड़वाना होगा ,उसे स्वयं ही ,दंड़ नहीं देना है ,इस वायदे के साथ ,''प्रदीप की आत्मा ''चली जाती है।
देहरादून का वो घर ,जिसमें ,कभी ''प्रदीप चौबे ''अपने परिवार के साथ रहता था। सभी कितने प्रसन्न थे? ''प्रदीप ''नौकरी करता था और उसके बच्चे स्कू ल के लिए निकल जाते थे। उसकी पत्नी घर का कार्य निपटाकर घर पर ही ,कुछ कार्य कर लेती थी ताकि अतिरिक्त आमदनी हो सके। सब कुछ अच्छे से चल रहा था। तभी उन दोनों पति -पत्नी में ,कुछ दिनों से अनबन होने लगी। कारण था ,उसका काम। प्रदीप चौबे नहीं चाहता था- कि उसकी पत्नी घर के कार्यों से अलग और कुछ भी कार्य करे। अक्सर उन दोनों में झड़प हो जाती थी ,किंतु उसकी पत्नी की भी अपनी जिद थी, वो भी ,ये कार्य नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि जो व्यक्ति उससे काम कराने आता था। उसे अन्य महिलाओं से ,पैसे भी ज्यादा देता था और उसकी पत्नी के साथ ,ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करने ,के बहाने ढूंढता था। वो इंसान ही ऐसा था बड़ी चिकनी - चुपड़ी बातें करता था महिलाओं की कमजोरी पकड़, उसको मानसिक रूप से उनके जज्बातों को परखता और अपनी बातों के जाल में फंसा लेता और जब उस पर अपना विश्वास जमा लेता तब उनके तन से खेलने से भी परहेज नही करता। अच्छे- खासे घर में कलह का बीज बो देता और जब उस परिवार में झगड़े होते तब उन्हें रोने के लिए अपना कंधा भी देता ।प्रदीप चौबे की पत्नी तो उस मोहल्ले की सबसे खूबसूरत औरत थी । वो राकेश की बातों में शीघ् आ गयी वैसे वो अपने पति और बच्चों से प्रेम करती थी किंतु अब दोनों में नोक - झोंक होने लगी ।
इस नोक -झोंक का असर ये हुआ ,प्रदीप की पत्नी राकेश की तरफ और ज्यादा आकर्षित होने लगी। क्योंकि अब उसे लगता ,प्रदीप उसकी अधिक आमदनी से जलता है ,प्रदीप से उसकी उन्नति देखी नहीं जाती। घर में कोई बड़ा भी नहीं ,बच्चे भी स्कूल चले जाते और पीछे से राकेश उसके घर में घुस जाता। आरम्भ में कुछ औपचारिकता रही किन्तु जब प्रदीप को लोगों से पता चला कि कोई उसके पीछे ,उसके घर आता है।
तब उसने अपनी पत्नी को समझाया भी था -कि ऐसे लोग ,अकेली महिलाओं का लाभ उठाते हैं,किन्तु इसमें उसकी पत्नी को कुछ भी गलत नहीं लगा ,क्योंकि राकेश उसके साथ ऐसी मीठी -मीठी बातें करता कि उसकी बातों से प्रभावित हुए , बिना नहीं रह पाती।
तब राकेश उसे समझाता -कोई ,पुरुष नहीं चाहता कि उसकी पत्नी आगे बढ़े ,उन्नति करे। सब कुछ महिलाओं को ही झेलना होता है ,बच्चे बनाना ,पालना। भई ,तुम भी पढ़ी -लिखी लड़की हो ,तुम्हें ही क्यों नौकरी छोड़नी पड़ी ,वो भी तो छोड़ सकता था किन्तु त्याग तो महिलाओं से ही माँगा जाता है। बाहर घूमने -फिरने का त्याग ,स्वयं तो ,नौकरी के बहाने ,किसी के भी साथ घूमता रहता है और तुम्हें यहाँ कैद करके छोड़ा है और अब ये भी नहीं चाहता कि सीमित दायरे में ही सही ,तुम अपनी उड़ान भरो !तुम्हें वो बेबस करके ,पति नहीं मालिक बनना चाहता है। जैसे तुम उसकी ग़ुलाम या नौकर हो।
उसकी बातें ,प्रदीप की पत्नी पर गहरे से असर करतीं और फिर घर में झगड़े होने लगे। एक दिन तो प्रदीप ने उस पर हाथ भी उठा दिया था। वो बहुत रोई ,उसे तो जीवन जैसे नीरस नजर आने लगा ,अपना पति, अपने बच्चे ,कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। ऐसे कमजोर क्षणों की ,तलाश में ही तो राकेश था ,जब वो किसी दूसरे की पत्नी को रोने के लिए अपना कांधा दे।
प्रदीप तो सुलेखा से लड़कर चला गया और कांधा देने के लिए राकेश आ गया। आज तो सुलेखा ,उसके गले लगकर ,बहुत रोइ ,उसने प्यार का मरहम लगाया और मरहम लगाते -लगाते ,उसका हाथ सुलेखा के आँचल तक गए ,जब उसने कोई प्रतिरोध नहीं देखा, तो वो उसे बिस्तर तक ले गया ,उनकी जो भी ,औपचारिकताएं थीं ,समाप्त हो चुकी थीं। अब राकेश और सुलेखा ,जब घर से ,सभी चले जाते ,तब एक -दूसरे पर प्यार लुटाते। अब तो ,सुलेखा ने ,काम भी छोड़ दिया। प्रदीप को लगा ,अब राकेश उसके घर नहीं आता। पैसों की भी कमी नहीं , जो राकेश दे जाता था।
उन्हीं दिनों में ,प्रदीप के पिता के स्वर्ग सिधारे जाने पर ,वो अपने घर आया। उनकी मृत्यु से अक़्सर परेशान रहने लगा। माँ की जिम्मेदारी उस पर बनती थी ,उधर माँ ने भी ,उसके संग जाने से इंकार कर दिया। हालाँकि ये ज़िम्मेदारी वो नितिका को दे आया था ,फिर भी ,वो अपनी माँ के लिए चिंतित रहता था ,जिसमें कि उसे उनके बिमार होने की सूचना मिली। एक दिन तो ''दीक्षित ''परिवार के यहां से फोन भी आ गया।
तुम कैसे बेटे हो ?तुम्हारी माँ मर रही है। ''उनके फोन को सुनकर ,वो अपनी माँ से मिलने चला आया। तब उसे पता चला -उसके पिता और माँ को मारने की जिम्मेदार नितिका है ,जो पुलिस के ड़र से भाग जाती है। अब वो सोचता है -अपने माता -पिता के गुनहगारों को ,सज़ा दिलवाकर ही वापस जायेगा। माता -पिता के बिना ,वो सूना घर उसे काटने को दौड़ता। एक दिन इसी तरह ,आँखों में आँसू लिए ,अकेला बैठा था। तभी पीछे से किसी ने उस पर वार किया। उसने मुड़कर देखा -तो वो नितिका ही थी ,जो उससे कह रही थी -तू क्या समझता है ?जब मैं तेरे माता -पिता को मार सकती हूँ ,तो तुझे छोड़ दूंगी। इस घर पर ,अब मेरा ,अधिकार होगा। इस घर को पाने के लिए ही तो ,मैंने ,दोनों बूढ़े -बूढी मार दिए ,इसके लिए उनकी नज़रों में ''बेचारी ''बनी।
आज ''प्रदीप की आत्मा '' अपने उसी घर को देखने के लिए आई है ,कितने वर्ष हो गए ?बच्चे भी बड़े हो गए होंगे, उसने एक पल को ठहरकर ,अपने घर को निहारा बच्चों के कमरे में गया। बेटा कितना बड़ा हो गया ?बिटिया भी ब्याहने लायक हो गयी है ,दिन भी न ,कैसे निकल जाते हैं ?
तब वो ,सुलेखा के समीप जाता है ,सुलेखा..... सुलेखा....
सुलेखा डरकर उठ जाती है ,कौन है ?कौन है ?अपना वहम समझकर ,वो पुनः सोने का प्रयास करती है।
क्या तुम मुझे ,भूल गयीं ? इतनी जल्दी भुला दिया सुलेखा !!!!
प्रदीप सुलेखा से मिलने क्यों आया है ? क्या वो सुलेखा से मिलकर उसे अपने कातिल के विषय में बताना चाहता है या उसके आने का उद्देश्य कुछ ओर है जानने के लिए पढ़िये - बेचारी