बेचारी में अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा ''प्रदीप चौबे ''का पता लगाने के लिए ,घर से निकलती है और बस में भी चढ़ती है ,और उसके घर देहरादून पहुंच जाती है ,जहाँ पर उसको पता चलता है कि'' प्रदीप चौबे '' तो अपनी माँ के अंतिम संस्कार के लिए गया था ,तबसे वापस ही नहीं आया ,किसी को भी नहीं पता, कि उसके साथ क्या हुआ ?अब वो कहाँ है ?है तो ,वापस घर क्यों नहीं आया ? ऐसे अनेक प्रश्न वो अपने पीछे छोड़ गया। वो अभी इसी बात से हैरान -परेशान थी कि तभी उसे कोई उठाता है तब वो अपने को उसी बस अड्डे पर पाती है ,अब वो इस बात से परेशान है कि ऐसा कैसे हो सकता है ?वो तो बस में ही बैठी थी ,यहाँ कैसे पहुंच गयी ?ये सब सपना तो नहीं हो सकता।अब आगे -
ऋचा घड़ी में देखती है ,सुबह के छह बज चुके हैं ,अब उसे स्मरण होता है ,पापा तो आज पंडितजी के साथ आने वाले हैं यही सोचकर वो घर के लिए ,रिक्शा करती है। घर के नजदीक पहुंचकर देखा- काफी सफाई लग रही थी और वहां कुछ फूल भी बिखरे थे ,बेल पत्रों द्वारा रास्ता सा बना था। जब दरवाजे के अंदर गयी ,तब देखा- उसके पापा ,उस घर के मंदिर की सफाई कर रहे थे। इसका अर्थ है ,पापा आ गए ,यही सोचकर उसने घर के अंदर जैसे ही उसने कदम रखा ,तभी पंडितजी ने रोका ,वहीं ठहरो !
वो वहीँ रुक गयी ,तब पंडितजी एक परात लेकर आये ,उसमें सिंदूर का पानी था ,उन्होंने उस पानी में उसके दोनों हाथ डलवाये और अपने भी हाथ डाले ,कुछ देर मंत्र पढ़ते रहे और धीरे -धीरे उन्हें उस पानी में एक परछाई दिखी ,वो बोले -वो यहीं है ,आस -पास ही है। उन्होंने गंगाजल लिया और उसके चारों और छिड़का। तभी घर के अंदर से ,बड़ी तेज -तेज दरवाजा बंद होने ,खुलने की आवाजें आने लगीं। वो घर के अंदर भी गए ,पहले जो उनका गोदाम था। उसे देखा ,वहां भी दो आत्माएं उन्हें दिखीं किन्तु वे दोनों आत्मायें उन्हें कैद नजर आई। वो समझ नहीं पाए कि ये कौन सी आत्माएं हैं ?तब उन्होंने ध्यान लगाया ,तब उन्हें वे आत्माएं दुःखी और कैद दिखीं।
उन्होंने ऋचा को भी उन आत्माओं के विषय में भी बताया ,तब ऋचा बोली -वे दोनों आत्माएं तो स्वयं ही परेशान हैं ,वे इस घर के मालिक और मालकिन की आत्मायें हैं वो किसकी कैद में है और क्यों ?वो मैं नहीं जानती इन्हें तो कई बार मैंने रोते देखा है।
क्या कभी तुम्हारी उनसे बातें नहीं हुईं ?
नहीं ,मुझे ड़र था ,कहीं ये उस नितिका की कोई चाल न हो।
पंडितजी बोले -वो तो तुमसे सहायता की उम्मीद कर रहे थे।
मैं भला उनकी कैसे सहायता कर सकती थी ?और कैसे उनसे सम्पर्क बनाती ?ऋचा ने पूछा।
तुम्हें ये अपने हाथ का रक्षा कवच खोलना होगा , तभी वो तुमसे सम्पर्क बना पायेंगे ,तुम्हें अपनी परेशानी बताने के लिए तैयार होंगे ,तभी हम उसका कुछ निवारण कर सकते हैं।
ऋचा इस बात के लिए तैयार हो गयी ,तभी उसके पापा बाहर से आये और बोले -पंडितजी ये आप क्या कर रहे हैं ? आपने इसका'' रक्षा कवच ''उतरवा दिया और वे लोग सम्पर्क न बना सके और इसके बदले वो ''नितिका ''आ गयी तब क्या होगा ?
पंडितजी को उनकी बात सही लगी ,बोले -कह तो तुम सही रहे हो किन्तु ये जोख़िम तो हमें उठाना ही होगा।
'रक्षा कवच 'उतारकर रख दिया जाता है ,पंडित जी ऋचा के सामने ही बैठ जाते हैं और तब ऋचा से कहते हैं कि उन बुजुर्ग दम्पत्ति का ध्यान कर ,ऑंखें बंद करो। कुछ समय पश्चात ही ऋचा हिलने लगी।उसके पापा उन्हें ये क्रिया करते देख रहे थे। पंडितजी ,कुछ समय पश्चात बोले -तुम कौन हो ?ऋचा इसी तरह हिलती रही।
पंडितजी का स्वर थोड़ा कठोर हुआ ,वे पुनः बोले - कौन हो ?तुम !
मैं चौबे !
क्या चाहते हो ?
मदद !
क्यों ,और कैसे ?
हम परेशान हैं ,हम मुक्ति चाहते हैं ?
किससे और कैसे ?
तभी ऋचा की आवाज एक भयंकर आवाज़ में बदल गयी और बोली -केेसी मुक्ति ,किससे मुक्ति ?और कहकर ज़ोर -ज़ोर से हंसने लगी। उसके पापा थोड़े विचलित हुए ,किन्तु पंडितजी उसी तरह बैठे रहे और बोले -तुम कौन हो ?वो उसी तरह हंसती रही।
मुझे कठोर कदम उठाने पर मजबूर मत करो ,पंडित जी दृढ़ता से बोले -बताओ !तुम कौन हो ?
नहीं ,मैं नहीं बताऊंगी ,मैं किसी की ग़ुलाम नहीं।
तुम क्या चाहते हो ? मुझे मार दिया तो सब ठीक हो जायेगा ,देखो ,मेरी शक्तियाँ अब भी बढ़ रही हैं ,मैं किसी को भी नहीं छोडूंगी। हर जगह मेरा ही राज होगा ,मैं ही मैं होऊंगी और ऋचा का शरीर धीरे -धीरे ऊपर उठने लगा। वो उसके शरीर को लेकर जाना चाहती थी। तभी पंडितजी ने कुछ मंत्र पढ़े पास रखा डंडा उसके घुटनों पर मारा। जिस कारण उसकी चीख़ निकली किन्तु उसने ऊपर उठना नहीं छोड़ा। तभी पंडितजी ने फुर्ती से अपने पास से सिंदूर निकाला और उसके ऊपर फूंक दिया। इस क्रिया से उसका बदन जलने लगा और वो चीखते हुए ऋचा के शरीर को छोड़ने पर मजबूर हो गयी।
उसके छोड़ते ही ऋचा का शरीर तेज़ी से नीचे आने लगा ,तब उसके पापा ने उसे अपने हाथों में थाम लिया।ऋचा अभी अचेत अवस्था में थी। उसे कमरे में लिटा दिया गया।
पंडितजी बोले -ये जो आत्मा थी ,बहुत ही ख़तरनाक है और जिद्दी भी ,देखा नहीं ,इतना कहने पर भी नाम नहीं बताया और हमारे रहते ही ऋचा को ले जा रही थी।
वे बोले -अब क्या होगा ?पंडितजी ! वो तो हमें उनसे सम्पर्क भी नहीं करने देना चाह रही है।
वो तो मैं भी सोच रहा हूँ इसने हमें उन लोगों से सम्पर्क नही करने दिया। उन लोगों से सम्पर्क हो जाता तो हम जान सकते थे, यह सब किसका किया -धरा है? तब हम उसकी काट भी ढूंढते, ये तो अच्छा हुआ मैने शीघ्र ही, सब सम्भाल लिया यदि इस बच्ची को ले जाती तो इसे ढूँढना भी मुश्किल हो जाता।
न जाने मेरी बच्ची ने कैसे- कैसे दिन गुजारे हैं ? चिंतित स्वर में ऋचा के पापा बोले।
हाँ वो तो है, तुम्हारी बेटी बहादुर है, जो इतने दिनों से एक चुडेल के साथ रह रही है । वो मरने के पश्चात् भी, अपनी शक्तियाँ बढ़ा रही है, इसका अर्थ है, उसकी आत्मा अभी भी तन्त्र क्रियाओं में लिप्त है। क्या तुम्हारी पत्नी कोई तांत्रिक क्रियाएँ करती थी?
मुझे नही मालूम, मेरी पीठ पीछे वो क्या -क्या करती थी?
क्या ये आत्मा नीतिका की ही थी या फिर कोई और आत्मा थी ? क्या पण्डित जी उसे अपने वश में कर लेंगे, इसके लिए पढ़ना होगा - बेचारी