अभी तक अपने पढ़ा -''भैरों बाबा '' उस घर की शुद्धि के लिए हवन करते हैं ,किन्तु 'नितिका की आत्मा ''उस हवन में व्यवधान डालती है। दोनों तरफ कुछ देर तक ,अपनी -अपनी शक्तियों के बल पर युद्ध सा चलता है। अंत में ,नितिका का भेजा हुआ पंछी ,उस हवन की अग्नि में अपनी जान देकर ,उस हवन की अग्नि को बुझा देता है। अब बाबा पुनः हवन के इरादे से ,उस स्थान को शुद्ध कराते हैं ,नई हवन सामग्री मंगाते हैं ,तब तक ऋचा और बाबा दोनों ''चौबे दम्पत्ति ''की अस्थियों को 'नितिका 'के चंगुल से मुक्त करा लाते हैं। तब बाबा ऋचा को कुछ समझाते हैं और पुनः हवन आरम्भ कर देते हैं। अब आगे -
हवन में ,बाबा के ठीक सामने ऋचा और उसके पापा बैठे हैं ,ये हवन अब शुद्धि के लिए नहीं ,अब तो 'नितिका की आत्मा' को उस स्थान पर बुलाने के लिए हो रहा था , किन्तु नितिका थी....... कि वो अपने स्थान को छोड़ना नहीं चाहती थी। अपने स्थान से अलग होने पर वो कमजोर पड़ जाती ,अब तो चौबे परिवार की आत्मा भी ,उसके चंगुल से मुक्त हो गयीं ,जिस कारण उसकी शक्ति और भी कमज़ोर पड़ गयी। किन्तु बाबा के मंत्रों के आगे, वो कमजोर पड़ती जा रही है।
तभी तेज़ बवंडर सा उठता है ,और घर का सामान भी ,उस बवंडर की चपेट में आकर इधर -उधर गिरने लगता है ,तब बाबा तेज स्वर में कहते हैं -क्या तुम्हें , अपने अपराधी से बदला नहीं लेना ?क्या तुम इसी तरह इस संसार में भटकती रहोगी ?हर किसी को एक न एक दिन जाना होता है। अब अपने मन को शांत करो और ये बताओ !तुम्हें किसने मारा ?
नितिका ने अपनी सम्पूर्ण ताकत झोंक दी ,किन्तु उसे बाहर आना ही पड़ा। तब बाबा ने ,ऋचा की तरफ इशारा किया और वो वहां से उठ कर चली गयी। उसके उठते ही ''नितिका ''उसके पिता के ,शरीर के अंदर प्रवेश कर गयी।
बाबा बोले -तू क्या चाहती है ?
बदला !!!!!!!
किससे ? सारी दुनिया से ,सभी मेरे दुश्मन हैं ,सभी ने मुझे जीते जी सताया।
तू क्या 'दूध की धुली 'है ?तूने भी तो ,लोगों को धोखा दिया अपने फ़रेब में फँसाया।
तूने तो अपनी बच्ची और अपने पति को भी नहीं छोड़ा।
वो भी तो, इतना सीधा नहीं था ,मुझे सुंदर सपने दिखलाकर लाया ,और मैंने अपनी इच्छाएं , अपनी इच्छा से जीना चाहा तो मेरा दुश्मन बन गया और लोगों को भी मेरा दुश्मन बना दिया। अब आ ही गयी हूँ तो इसे छोडूंगी नहीं ! इसी ने मुझे मारा !मेरी हत्या की !ये शब्द..... जाती हुई ऋचा के कानों में भी पड़े। उसके कदम वहीं ठहर गए। क्या !!!पापा ने माँ को मारा..... ?वो वापस आना चाहती थी ,किन्तु बाबा के अनुसार उसे उसी स्थान पर ,पहुंचना था ,जब तक उसकी 'माँ की आत्मा 'को बाबा अपनी बातों में उलझाए हैं।
वो घर के ठीक ,पीछे पहुंच गयी ,वहां उसने देखा -बाबा के कहे अनुसार ,एक रास्ता बना है। वो गली सुनसान थी ,वहां कोई इक्का -दुक्का आदमी ही जाता होगा। उसने वो बड़ा सा लोहे का दरवाज़ा खोला। और वो उसमें अंदर दाख़िल हो गयी। वो ये देखकर ,हैरान रह गयी ,ये रास्ता उनके घर के उस तहखाने से जुड़ा है किन्तु उस तहख़ाने से ये रास्ता नहीं दिखता ,क्योंकि वो दीवारें इस तरह बनाई गयी हैं ताकि इधर की होने वाली गतिविधियों के विषय में किसी को भी पता न चल सके।
उसने आगे बढ़कर देखा ,उस स्थान का उपयोग ,वो अपनी तांत्रिक गतिविधियों के लिए करती थी। ऋचा ने बिना देरी किये ,उस स्थान के सभी सामान नष्ट करने आरम्भ कर दिए। इस बात का आभास ,''नितिका ''को हुआ ,तब वो जाने लगी किन्तु बाबा के मंत्रों ने उसे जकड़ लिया।
वो चीख़ने लगी और चिल्लाकर बोली -तू इस तरह मेरी शक्तियाँ नष्ट करना चाहता है ,मुझे समाप्त करना चाहता है ,मैं तुझे ऐसा नहीं करने दूंगी ,मुझे छोड़ दे...... मुझे छोड़ दे...... जाने दे..... जब उसका बस नहीं चला तो उसने बाबा को लालच भी दिया ,तु मुझे छोड़ देगा तो तेरी शक्तियाँ और बढ़ा दूंगी ,तेरी ग़ुलाम बनकर रहूंगी।
उधर ऋचा ने ,सारा सामान और वो स्थान ,उसमें आग लगा दी ,उसी स्थान के कारण तो ,मरने के पश्चात भी ,उसकी शक्तियां बढ़ रही थीं।
अपनी विवशता पर ,वो चीख़ रही थी ,वो ऋचा के पापा के शरीर को छोड़कर ,एक धुंयें की सी आकृति में बाहर खड़ी थी किन्तु उस आसन से बाहर नहीं जा पा रही थी।
तब तक ऋचा भी ,अपना कार्य करके आ चुकी थी ,आकर बाबा के सामने आकर बैठ गयी और बोली -पापा आपने ही माँ को मारा!!!!!!
उनकी नजरें झुक गयीं और बोले -बेटा जब मैं ,तुझे लेकर गया तब मैंने सोचा था -कि इससे कभी भी नहीं मिलूंगा ,न ही इसकी शक़्ल देखूंगा , किन्तु ये अपनी हरकतों से बाज नहीं आई -इसने उन दोनों पति -पत्नी को भी ,मार डाला , जिन्होंने इसे ''बेचारी ''समझकर अपने घर में ,पनाह दी। उसके पश्चात भी ,इसका मन नहीं भरा। पुलिस से बचने के लिए ,पहले तो ये भाग गयी , जब इन लोगों के जाने के पश्चात ,घर ख़ाली पड़ा था ,तब इसने उस तहख़ाने का उपयोग किया ,और किसी की नज़र न पड़े, इसीलिए रास्ता घर के पीछे बनवा लिया। एक दिन ये ,मुझे दिख गयी ,तब मैंने इसका पीछा किया और मैं ,इसके पीछे -पीछे ,घर के तहखाने तक पहुंच गया। तब तक इसने भी मुझे देख लिया था और अनजान बनी रही ,जैसे ही मैं इसके पीछे पहुंचा ,इसने मुझे तंत्र के बल से हवा में लटका दिया।
मैंने इसे बहुत समझाना चाहा ,किन्तु ये नहीं मानी ,ये तो मुझसे ही ऐसे खेल रही थी ,जैसे मैं कोई इंसान नहीं खिलौना हूँ। जब इसकी इच्छा होती ,मुझे छुड़ा देती ,जब मन करता कैद कर लेती किन्तु बाहर जाने नहीं देती। इसकी कैद में मुझे दस दिन हो गए ,मैंने भी सोच लिया -अब इससे बच पाना मुश्किल है और मैंने इसका साथ देने का निर्णय किया। निर्णय भी क्या करना ?बस यूँ समझो !मेरी मजबूरी बन गयी।
आखिर ऋचा के पापा को नितिका की कैद से ,भागने का मौका मिलता है या नहीं। वो उसे किस तरह नीतिका को मारते हैं ?क्या ऋचा अपनी माँ को दुबारा मारकर ,उसकी आत्मा को शांति दिला पायेगी ?या फिर अपनी माँ का साथ देगी। क्या 'प्रदीप चौबे 'को नितिका ने मारा या फिर किसी और ने उसकी मृत्यु कैसे हुई जानने के लिए पढ़िए -बेचारी। .....