अभी तक आपने पढ़ा ,'' भैरों बाबा '' प्रदीप चौबे'' की आत्मा को छोड़ देते हैं ,प्रदीप चौबे की आत्मा अपने परिवार से मिलने ,देहरादून जाती है और उसकी आत्मा अपनी पत्नी को ,पुकारती है -सुलेखा ,सुलेखा..... पहले तो सुलेखा ड़र जाती है फिर अपना वहम समझ फिर से सो जाती है ,अब आगे -
सुलेखा ..... सुलेखा !तुमने मुझे इतनी जल्दी भुला दिया। आओ !न..... सुलेखा फिर से उठी। उसे आवाज़ आ रही है किन्तु कोई दिखाई नहीं दे रहा।
ये आवाज़ तो प्रदीप की है ,वो यहाँ कैसे हो सकता है ?सोचकर फिर से सोने का प्रयत्न करने लगी किन्तु अब उसे नीद नहीं आ रही थी। तभी उसे लगा जैसे कोई ,उसके समीप है ,उसके बिस्तर तक आ गया है। अब तो उसे ड़र लगने लगा। सुलेखा ने ,अपनी चादर ऊपर तक तान ली , कुछ समय तक तो सब शांत रहा किन्तु अब उसकी देह से चादर खिसकती दिखाई दे रही थी। अब तो उसकी चीख़ निकल गयी। कौन हो तुम ?मुझे इस तरह परेशान क्यों कर रहे हो ?अब उसकी हालत ऐसी हो चुकी थी कि उसने बाक़ी रात्रि जागते और डरते हुए बिताई।
सुबह वो थकी -थकी सी थी। नींद भी पूरी नहीं हुई थी। दोनों बच्चे भी तैयार होकर ,अपने -अपने काम पर चले गए। सुलेखा ने दिन में भी ,सोने का प्रयत्न किया किन्तु चौंक कर उठ जाती।
आज वो भरपूर नींद लेने लिए ,शीघ्र ही अपने बिस्तर में जा घुसी थी। कल रात्रि को उसे ठीक से नीद भी नहीं आई थी ,इसीलिए उसे लेटते ही नींद आ गयी ,जैसे ही रात्रि गहराने लगी। उसने महसूस किया कि कोई उसके बहुत क़रीब है। उसने अपनी आँखें खोली ही थीं ,उसने अपने बराबर में ,प्रदीप को लेटे पाया ,जो मिटटी से सना और उसका चेहरे की चमड़ी भी लगभग गल चुकी थी ,उसका इतना वीभत्स रूप देखकर ,वो चीखी और बाहर की तरफ भागी। उसके बच्चे ,उसकी चीखें सुनकर दौड़े आये।
क्या हुआ? मम्मी ! इतनी रात गए क्यों चीख़ रही हो ?
मे.... रे..... बिस्तर पर मिटटी है।
मिटटी !!दोनों बहन -भाई चौंके ! मिटटी कहाँ से आई ?यदि मिटटी है ,भी तो ,उसे आप साफ़ कर सकती हैं। दोनों अंदर जाकर देखते हैं ,बिस्तर तो साफ है।
सुलेखा ने भी अंदर आकर देखा ,तब उसे अपनी सोच और अपनी आँखों पर विश्वास करना कठिन हो जाता है।कुछ देर ,की परेशानी के पश्चात ,वो फिर से सोने का प्रयास करती है। उसे तभी अपने कानों में आवाज सुनाई पड़ती है। सुलेखा..... तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ?मैं तो तुमसे प्रेम करता था। मैंने तो अपने घर की बागडोर तुम्हारे हाथों में सौंपी थी। तुम्हारी गलतियों को भी क्षमा कर दिया था। फिर भी मुझे इतना बड़ा दर्द क्यों दिया ?क्यों दिया..... ,क्यों दिया.....? ये आवाज तीव्र से तीव्र होती चली गयी। अब वो समझ गयी ,है तो ये प्रदीप की ही आवाज़ या फिर कोई मुझे उसकी आवाज के माध्यम से डराना चाहता है। वो भी पलटकर चीख़ी ,क्या चाहते हो ?तुम....! जो भी है ,सामने आओ !
तभी प्रदीप की आत्मा उसके सामने आकर खड़ी हो गयी। अँधेरे में भी ,वो आकृति चमक रही थी और उसकी तरफ बढ़ने लगी। सुलेखा चीख़ी और बेहोश हो गयी। कुछ देर वो उसके समीप बैठा रहा फिर वो आकृति ग़ायब हो गयी।
अगले दिन ,राकेश आया ,तब उसने सुलेखा ,की हालत खराब देखी और बोला -क्या तुम ठीक हो ?
सुलेखा ने उसकी तरफ देखा और उससे गले लगकर रोने लगी ,बोली -वो आ गया है।
राकेश कुछ समझा नहीं ,बोला -कौन आ गया है ?
प्रदीप..... !
नाम सुनकर ,वो हंसा और बोला -मरे हुए लोग....... कैसे वापिस आ सकते हैं ?
तभी उसके बेटे ,के कानों में भी ये शब्द पड़े ,उनके पास आकर बोला -कौन मरा हुआ ?आ गया। आप लोग किसकी बातें कर रहे हैं ?
सुलेखा को लगा ,अब यही समय है ,जब अपने बेटे को ,सच्चाई बता देनी चाहिए। बोली -बेटा !तुम्हारे पापा....
क्या.... वो कब मरे ?वो तो खो गए थे न....... कुछ भी न समझ पाने की स्थिति में ,बोला -ये बात आपको कब पता चली ?
यही कोई दस वर्ष पहले.....
और ये बात , हमें आज पता चल रही है ,तभी आपने इन राकेश अंकल से विवाह कर लिया।
अब चौंकने की बारी ,सुलेखा की थी ,बेटे..... ये तुम क्या कह रहे हो ?
हाँ ,क्या मैं नहीं जानता ?आप लोगों ने ,क़ानूनी तरीक़े से विवाह कर लिया ,मैं एक दिन अपने सर्टिफिकेट् ढूँढ रहा था ,तभी मैंने देखा। मैं तो पूछना भी ,चाहता था-आपने हमारे पापा के आने की सम्पूर्ण उम्मीदें छोड़ दीं किन्तु छुटकी ने मना कर दिया ,कि अभी तो पापा नहीं आये। अभी के लिए ये बातें समय पर छोड़ दो। यदि मम्मी ने हमसे ,ये बात छुपाई है ,अवश्य ही कोई कारण होगा। किन्तु कारण तो ,अब पता चल गया। पापा तो रहे ही नहीं ,उनके आने की उम्मीद कैसी ?कहकर वो रोने लगा। दादी -बाबा गए ,पापा भी गए , कहकर वो बाहर निकल गया।
राकेश बोला -तुमसे एक बात भी नहीं छुपती ,अब ये क्या नया ड्रामा है ?तुमने अपनी हालत देखी है।
ये ड्रामा नहीं है ,सुलेखा चिढ़ते हुए बोली -यही सच्चाई है ,कि वो आ गया है और दो दिनों से ,मुझे परेशान कर रहा है।
रात्रि गहराने लगी ,देहरादून की ठंड ,दिन भी शीघ्र ही छिप जाता। घर का वातावरण ,तनावपूर्ण था किन्तु आज सुलेखा ने ,राकेश के आ जाने पर मन ही मन ,अपने को तैयार कर लिया था। आज वो ,राकेश के साथ थी ,बिस्तर पर दोनों थे। अब तो खुले आम वो पति -पत्नी की तरह रहना चाह रहे थे। कारण अब तो ,बच्चों को भी इसकी जानकारी है तब छुपाने से कोई लाभ नहीं.....
जब वो दोनों गहरी नींद में थे ,तभी उसे वही आवाज परेशान करने लगी ,उसने लाइट जलाने का प्रयत्न किया किन्तु लाइट नहीं जली। उस आवाज़ ने कहा -तुम मुझे नहीं देख सकतीं किन्तु मैं तो तुम्हें देख सकता हूँ। तुमने तो मेरे बच्चों को भी ,नहीं बताया कि मुझे मारने वाला और कोई नहीं ,तुम ही थीं.... तुम ही थीं.... मुझे वहां तड़पता छोड़कर ,यहां इसके साथ ,गुलछर्रें उडा रही हो ,तुमने मेरी ज़िंदगी के साथ ही ,मेरा परिवार भी छीन लिया ,अब मैं भी तुम्हें चैन से नहीं रहने दूंगा। तुम भी उसी तरह तड़प -तड़पकर मरोगी ,मैं भी तुम्हें नहीं छोडूंगा।
सुलेखा चीख़ी -मैंने तुम्हे नहीं मारा ,मैंने तुम्हें नहीं मारा.... तभी उसकी आँख खुल गयी ,उसने अपने बराबर में लेटे राकेश की तरफ देखा- तो वो उसकी तरफ देखते हुए ,चीख़ पड़ी, वो तो मृत पड़ा था। उसने अँधेरे में ही टार्च जलाई ,ऐसे समय में ,लाइट भी चली जाती है ,वो मन ही मन बुदबुदाई। टार्च की रौशनी में देखा ,तो दहल गयी ,वहां राकेश नहीं ,प्रदीप की लाश पड़ी थी। वो बिस्तर से कूदकर बाहर की ओर भागी किन्तु उसका पैर ,किसी चीज़ में उलझ गया और दहशत इतनी बढ़ी वो बेहोश हो गयी।
आखिर प्रदीप चौबे की आत्मा क्या कहना चाहती थी? प्रदीप चौबे अपनी पत्नी पर अपनी मौत का इल्जाम क्यों लगा रहा है ? उस रात्रि आख़िर ऐसा क्या हुआ था ? प्रदीप चौबे को किसने मारा था नीतिका या फ़िर उसकी अपनी पत्नी सुलेखा ने जानने के लिए पढ़ते रहिये - बेचारी
सुबह उठकर बच्चों ने देखा ,माँ कमरे के दरवाज़े पर बेहोश पड़ी थी। राकेश तो पता नहीं ,कहाँ गया ?