देवी लाल जी एक 'प्रॉपर्टी डीलर '' हैं ,ऋचा उनसे एक मकान अथवा फ्लैट के लिए सम्पर्क करती है। वो ऋचा को भी वही मकान दिखाते हैं ,जो इससे पहले भी कई लड़के लड़कियों को दिखा चुके हैं, किन्तु पता नहीं ,उस मकान में ऐसा क्या है ?वे लोग उस घर को छोडकर ,रातों -रात भाग जाते हैं। आज भी उन्होंने वही साहस किया क्योंकि उनके पास किसी का फोन आता है कि उस मकान को किराये पर चढ़ा दो ,ये किसका फोन है ?ये वो भी नहीं जानते। वे उस मकान की असलियत जानने के लिए ,एक रात उस मकान में ठहरते हैं। शराब के नशे में ,कुछ बेहोशी की हालत में तो उन्हें कुछ पता नहीं चल पाया किन्तु उनका नौकर नंदू जिसकी आँखों के सामने ही सब कुछ हुआ ,वो काफी डरा हुआ था। सेठजी को तीन दिन पश्चात् अस्पताल में होश आया ,अपनी हालत देखकर वो नंदू से बोले - मुझे क्या हुआ था ?अब आगे -
नंदू ने एक पल देवीलाल जी की तरफ देखा और सेठजी से बोला -क्या आपको कुछ भी स्मरण नहीं ?सेठजी ने न में गर्दन हिला दी। तब नंदू बोला -पहले आप ठीक हो जाइये ,तब बातें करेंगे। वो नहीं चाहता था- कि इस कमज़ोर हालत में ,सेठजी कुछ भी सुने और उनकी हालत और बिगड़ जाये।
तभी उनकी पत्नी वहां पहुंच गयी और नंदू को डांटने लगी। तुम इन्हें कहाँ ले गए थे ?ये कहाँ गए थे ,जो इसकी ये हालत हो गयी ?
नंदू क्या कहता ?कि वो तो स्वयं ही सेठजी के कारण ,उस डरावने घर में फंस गया था। उनकी पत्नी की डांट खाकर ,वो बाहर आ गया। निर्मला देवी को लग रहा था ,शायद इसी के कारण ,देवीलाल जी किसी गलत जगह फंस गए ,तब उन्होंने उन्हें शांत रहने के लिए कहा ,बोले -वो बेचारा मुझे क्या ले जायेगा ?वो तो मेरे पीछे ही रहता है ,मैं ही ,उसे अपने साथ ले गया था ,दोस्तों के साथ था , पीने पिलाने लगे , मुझे लगता है कुछ ज्यादा ही हो गयी होगी ,उसके पश्चात क्या हुआ ?अभी वो भी डरा हुआ है ,पर उसने अभी कुछ नहीं बताया। उनकी बातें सुनकर निर्मला देवी थोड़ी शांत हुई और बोली -वैसे आप लोग कहाँ गए थे ?
अरे !कहीं ज्यादा दूर नहीं ,वो शास्त्री नगर का जो सबसे बाद का ,बंद गली का मकान है ,मकान नंबर अठ्ठावन।
क्या !तुम उस मकान में गए थे ?निर्मला देवी आश्चर्य से बोली -तुम्हें वहां रुकने के लिए किसने कहा था ?क्या तुम उसके विषय में कुछ भी नहींजानते ,ये बात तो पूरे शहर को मालूम है ,क्या -क्या हादसे नहीं हुए ,वहां ?उधर की तरफ तो कोई जाता तक नहीं और तुमने वहां सम्पूर्ण रात्रि व्यतीत की। शुक्र है !वहां से ज़िंदा वापस आ गए। कहकर उसने अपनी जूती उठाई और मन ही मन कुछ बुदबुदाते हुए - "जिसकी क़ाली नज़र पड़ी इन पर, उसी को लग जाए।" कहते हुए, अस्पताल में ही, उनकी नज़र उतारने लगी। ये सब प्रक्रिया अस्पताल में, सेठजी को बहुत बुरा लगा ,बोले -तुम भी न, कहीं भी आरम्भ हो जाती हो।
निर्मला बोली -ये हस्पताल है ,यहां तो कोई और साधन तो है ही नहीं ,इसीलिए ऐसा कर रही हूँ ,जो वहां की अलाय -बलाय है ,यहीं रह जाये ,उसे घर न ले आओ ,इसीलिए ऐसा कर रही हूँ। देवीलाल जी जानते थे -इसे जो करना है ,करके ही मानेगी। वो भी न जाने क्या -क्या कहती रही ?तभी नर्स ने आकर कहा -अब मरीज को आराम करने दीजिये। नर्स की बात सुनकर देवीलाल जी ने चैन की साँस ली।देखो ! अब मैं घर जा रही हूँ , किंतु मेरे जाने के पश्चात लापरवाही मत करना, अपने व्यापार की चिंता भी मत करना , कुछ अलग सा नज़र आये या कुछ अजीब सा महसूस हो तो मुझे सब बताना क्योंकि जिस स्थान से आप आयें हैं , कुछ भी हो सकता है।इस विषय में, मुझे पण्डित जी से भी मिलकर बात करनी होगी। नन्दु आपकी देखभाल के लिए है ही, उसे छोड़कर जा रही हूँ। निर्मला देवी उन्हें कुछ नियम और बातें समझाकर चली गयी।
देवीलाल जी अपने को काफी थका महसूस कर रहे थे ,उस मकान के विषय में कुछ सुना तो उन्होंने भी था किन्तु उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया ,न ही उन्हें ऐसी बातों पर विश्वास है किन्तु अपने साथ हुई दुर्घटना उन्हें सोचने पर मजबूर कर रही थी। सोचते -सोचते और कुछ दवाइयों का असर ,उन्हें नीद आ गयी। बाहर जाकर निर्मला देवी ने नंदू को पकड़ा और उससे सम्पूर्ण बातें विस्तार से पूछी।नंदू ने उन्हें सम्पूर्ण बातें विस्तार से बताई ,जिसे सुनकर वो चुपचाप चली गयी।
नंदू भी ,पहले मुँह -हाथ धोकर आया फिर चाय पी और सुस्ताने लगा। सेठजी अभी उसी घर में पहुंच गए ,तो क्या देखते हैं ?एक बुजुर्ग दम्पत्ति हैं ,जिनके चेहरे से दर्द -दहशत एक साथ टपक रही थी और उनके हाथ -पाँव बंधे थे , वो कह रहे थे -हमें बचाओ !हमें बचाओ !देवीलाल जी ,उनके समीप जाने का प्रयत्न करते हैं ,किन्तु पहुंच नहीं पाते। वो पूरी ताकत से जोर लगाते हैं, उन्हें पसीने आने लगते हैं ,वो हाँफ रहे हैं ,तभी वो लोग हंसने लगते हैं जैसे उनकी विवशता पर ,उनकी खिल्ली उड़ा रहे हों ,और धीरे -धीरे हड्डियों के ढांचे में परिवर्तित होने लगते हैं। सम्पूर्ण कमरे में अट्हास गूँजने लगता है ,और उन्हें उन दीवारों पर अनेक चेहरे लटके दीखते हैं। वो बुरी तरह घबरा जाते हैं और उनकी चीख़ निकल जाती है। तभी उनकी आँख खुल जाती है। तब उन्हें एहसास होता है - कि वो सपना देख रहे थे ,किन्तु उसका असर अब भी था और पसीने से वो तरबतर थे। उनकी चीख़ सुनकर नंदू आता है और उनके हाथों को सहलाता है और पानी पिलाता है।
क्या हुआ? सेठजी ! क्या कोई बुरा स्वप्न देखा है ? तब अपने आप से ही बात करते हुए, बुरे स्वप्न तो आयेंगे ही, जब ऐसी जगह रात्रि गुजार कर आये हैं।
हाँ नन्दू, बड़ा भयंकर स्वप्न था ,पसीना -पसीना हुए सेठजी बोले
इस घर में, ऐसा क्या है? जो लोग इसके अंदर जाने से कतराते हैं सेठजी को कौन गुमनाम व्यक्ति फोन करता है ? सेठजी ने जो सपना देखा क्या उस सपने का उस घर से ताल्लुक है? वे बुजुर्ग दम्पत्ति आख़िर कौन है ? पढ़िये - बेचारी के अगले भाग में