अभी तक आपने पढ़ा -देवीलाल , सम्पत्ति लेन -देन का व्यापारी है ,उसके दफ्तर में ऋचा आ जाती है जिसे रहने के लिए एक फ्लैट चाहिए क्योंकि वो इस शहर में नई आई है ,यहां वो किसी को जानती भी नहीं और अब उसे इसी शहर में रहकर नौकरी करनी है ,इसीलिए उसे एक सम्पत्ति के ''डीलर ''की आवश्यकता पड़ी जो उसे ''देवीलाल जी ''के रूप में मिले। ''देवीलाल जी ''उसे एक फ्लेेट दिखाते हैं जो बहुत ही पुराना गंदा और बदबू से भरा था। किन्तु ''देवीलाल जी ''उसे समझाते हैं -ये फ्लैट सस्ता और उसके दफ्तर के नजदीक है और इसमें दो कमरे भी हैं ,वो जब चाहे दूसरे कमरे को अपनी किसी भी दोस्त से बाँट सकती है। वैसे तो वो घर ऋचा को अच्छा नहीं लग रहा किन्तु ''देवीलाल जी ''के समझाने पर ,उसके दिमाग में बात भर जाती है।ये फ्लैट देहरादून में रह रहे '' प्रदीप चौबे जी ''का है।अब आगे -
अक्सर देवीलाल जी को किसी का फोन आता है- कि इस फ्लैट को किराये पर उठा दें क्योंकि वो फ्लैट बरसों से ख़ाली पड़ा है। उसमें कोई नहीं रहता ,एक -दो किरायेदार आये भी तो ,रातों -रात भाग खड़े हुए ,पता नहीं कौन सी मनहूसियत इसमें छाई है ?कोई भी नहीं टिक पाता। देवीलाल जी ने जानने का प्रयत्न भी किया किन्तु कोई कुछ बताता नहीं ,सब की घिग्घी बंध गयी। इसी कारण एक दिन वो उसमें गए ,किसी न किसी तरह लोगों का डर तो समाप्त करना पड़ेगा ही। तब उन्हें एहसास हुआ कि कोई उनके साथ है ,वे जहाँ भी जाते हैं ,उस साये का एहसास होता ,उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक माली को बुलाकर वहां के पेड़ पौधों की सफ़ाई करवा दी। सभी सूखे पौधे निकलवाकर बाहर फिंकवा दिया और उनके स्थान पर नए पौधों के लिए ,जगह ठीक करवाई।
अब तो ,ये घर उनके पास था ,उसके बेचने या किराये पर देने के अधिकार भी ,इसीलिए रात में ,वहीं अपने दोस्तों को बुलाया और उनके संग मंत्रणा की। जब सभी दोस्त चले गए ,तो उनका नौकर बोला -मालिक अब हम भी घर चलें ,शाम होने वाली है। अंदर आकर नंदू ने देखा , देवीलाल जी को थोड़ी चढ़ गयी और वे तो वहीं सोफे पर पसर गए। नंदू ने भी इस घर के विषय में कुछ सुना था -उसने देखा, शाम गहराने लगी ,उसने घबराते हुए ,देवीलाल जी को उठाने के लिए हिलाया किन्तु अलसाये स्वर में देवीलाल जी बोले -आज नंदू यहीं सो लेते हैं ,तू जाना चाहता है तो चला जा। नशे में उन्हें ये भी स्मरण नहीं कि वो किस जगह हैं ?नंदू असमंजस में था ,जाये कि यहीं रहे। ऐसी स्थिति में सेठजी को इस हालत में छोड़कर जाना ,उसे अच्छा नहीं लग रहा था। उन्हें लेकर भी जाये तो कैसे ?
उसे उस घर में ,कुछ अजीब लग रहा था ,जैसे कोई उस पर नज़र रखे है ,सेठजी तो नशे में थे किन्तु वो तो नहीं। तभी उसे बाहर से कुछ चीजें सरकने की आवाज़ें आने लगी। उसने बाहर जाकर देखा ,तो ख़ौफ के कारण उसे पसीने आ गए क्योंकि जो भी पेड़ -पौधे सेठजी ने बाहर फिंकवाये थे वो अपने आप ही खिसकते हुए आ रहे हैं ,उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गयीं और वो अंदर की तरफ ,सेठजी को ये सूचना देने के लिए दौड़ा किन्तु वहां तो न ही सेठजी और न ही सोफा ,उसने घबराकर इधर -उधर देखा। तभी उसके मुँह पर एक गर्म -गर्म बूँद का एहसास हुआ ,उसने ऊपर देखा तो उसकी चीख़ निकल गयी। सेठजी तो ऊपर हवा में तैर रहे थे और उनके सिर से रक्त की बूँदे टपक रही थीं। छत भी खून से लाल हो गयी थी। अब तो नंदू ने आव देखा न ताव बाहर की ओर भागा। इससे पहले कि वो मुख्य रास्ते पर पहुँच पाता ,वो पहले ही बंद हो गया।
अब वो किधर जाये ?बाहर भी वो पौधों की स्थिति देखकर अंदर की ओर भागा था। दीवार भी ऊँची थी फांदकर भी नहीं भाग सकता था। उसे घबराहट के कारण मूर्छा आने वाली थी तभी उसे उस घर का मंदिर दिखा जो घर के दाईं तरफ था ,उसने पूरी ताकत से, उस ओर दौड़ लगा दी। किन्तु जैसे वो दौड़ नहीं पा रहा है ,उसके पैर जैसे वहीं जमीन में धंस गए ,वो आगे बढ़ने के लिए जोर लगा रहा है। किसी ने उसके पैरों को जकड़ लिया है। पहले तो वो हताश सा हो गया तभी एकाएक उसने पूरी ताकत लगा दी और वो आगे बढ़ गया। जैसे -जैसे वो उस मंदिर के नजदीक पहुंचा ,उसकी जकड़न कम होने लगी और वो आखिर में मंदिर के समीप पहुंच ही गया। उस मंदिर का दरवाजा खोलकर वो अपने को सिकोड़कर उसके अंदर घुस गया। घबराहट में उसका गला भी सूख गया था और वो पसीने से तरबतर था। यहां उसे कुछ सुकून मिला ,अपने सुरक्षित महसूस कर रहा था। उसने आस -पास देखा ,वहाँ देवी माँ की मूर्ति थी ,जो धूल से अटी पड़ी थी। दीपक और भी पूजा का सामान था किन्तु उन्हें न जाने कितने दिनों से उपयोग लाया ही नहीं गया है ?कुछ देर तो इसी तरह घबराया बैठा रहा और पता नहीं ,कब उसे नींद आ गयी ?
सुबह उसकी जब आँख खुली तो धूप काफी ऊपर चढ़ चुकी थी। उसके मन में रात वाला डर अब भी समा या था। वो डरते -डरते बाहर निकला ,आश्वस्त होकर वो आगे बढ़ा। पहले तो उसने सोचा- कि मुख्य द्वार से वो सीधा अपने घर भाग जाये किन्तु अब दिन निकलने पर उसका थोड़ा ड़र भी कम हो गया था। उसे सेठजी का स्मरण था ,वो उनके विषय में जानना चाहता था कि उन्हें क्या हुआ ?या अब भी छत पर ही लटके हैं ,जिन्दा हैं या..... सोचते हुए उसने उस कमरे का दरवाजा भड़ाक से खोला ,ताकि उस आवाज से उसका ड़र कुछ तो कम हो।
नंदू डरते हुए ,अंदर गया ,तो देखा सेठजी सोफे पर बेहोश पड़े हैं ,उसने उनकी नब्ज़ टटोली जो चल रही थी। वो बाहर की ओर दौड़ा ,बड़ी मुश्किल से एक गाड़ी लेकर आया और उसमें सेठजी को डालकर ले गया। सेठजी अस्पताल में तीन दिन तक बेहोश रहे ,रक्त बहने के कारण ,उनमें रक्त की कमी भी हो गयी थी।उनके सिर में भी कई टाँके आये। सेठजी होश में आने पर नंदू से बोले -मुझे क्या हुआ था ?