अभी तक आपने पढ़ा ,ऋचा और उसके पापा को पंडितजी ''भैरों बाबा ''के यहां पहुंचा देते हैं।'' भैरों बाबा ''ऋचा के मन में उठते सवालों का जबाब ,उसे एक कहानी द्वारा देते हैं। वो कहानी तीन सौ बरस पुरानी है ,कादम्बिनी और भुवन की कहानी है ,जो धन के लालची और धोखे बाज़ हैं ,भुवन भी एक चोर है। दोनों ही अपने - अपने काम को ठीक से अंजाम दे रहे थे। एक दिन उस गांव के प्रधान के बेटे ने ,कादम्बिनी की सम्पूर्ण पोल -पट्टी गांववालों के सामने खोलकर रख दी। ये उसी का षड्यंत्र था ,ताकि कादम्बिनी की हकीकत सबके सामने ला सके। कादम्बिनी ने उसके दोस्त को भी ऐसे ही फंसाया था ,तब प्रधान के बेटे ने अपने दोस्त का बदला,लेने के लिए, कादम्बिनी को फंसाया और उससे अपने दोस्त को धोख़ा देने के कारण कादम्बिनी से बदला ले लिया किन्तु जब गांववालों को उसकी सम्पूर्ण सच्चाई ,पता चली तो उन्होंने उसे ''प्राण दंड 'देने की सजा की प्रधान से सिफरिश की किन्तु प्रधान ने ,यह कहकर उसकी सजा को टाल दिया -कि अभी इसका पति यहां नहीं है।
कादम्बिनी के पति के आते ही उसे बुलाया गया और कादम्बिनी की सच्चाई से उसे अवगत कराया गया ,जिसे सुनकर भुवन के'' पैरों तले से जमीन खिसक गयी।'' अब आगे -
भुवन अपनी पत्नी की सच्चाई जानकर ,बहुत ही दुखी हुआ किन्तु तुरंत ही उसने अपने को संभाला और सोचा -मैं भी तो इसे धोखा ही दे रहा था ,मैं ही कौन सा' 'दूध का धुला हूँ।'' अभी वो ये सब सोच ही रहा था ,तभी लोगों के शोरगुल ने उसका ध्यान भंग किया ,
वो कह रहे थे -इसे प्राण दण्ड दिया जाये।
एक बार तो भुवन के मन में भी आया कि इसे जान से मार दूँ किन्तु वो चोर था ,हत्यारा नहीं।प्रधान जी भी ,उसका ही चेहरा देख रहे थे, कि ये अपनी पत्नी के बचाव में क्या कहता है ?किन्तु वो तो कुछ समझ ही नहीं पा रहा था। माना कि, वो धोखेबाज़ निकली किन्तु वो तो उससे प्यार करता था ,अपना सब कुछ उसे सौंपा। उनका छल का रिश्ता था ,तो ऐसे परिणाम तो आने ही थे।
तभी प्रधान जी की आवाज़ गूँजी -भुवन तुम्हें अपनी पत्नी के व्यवहार के विषय में तो ,पता चल ही गया होगा। और अब इस गांव के लोगों ने इसके लिए ,मृत्यु दण्ड माँगा है। ये तुम्हारी पत्नी है ,क्या तुम इसके बचाव में कुछ कहना चाहते हो ?
कादम्बिनी अपने व्यवहार के लिए तनिक भी लज्जित नहीं थी ,फिर भी वो उसकी ओर आशा भरी ,नजरों से देख रही थी।
तब भुवन बोला -मैं मानता हूँ ,इससे गलती हुई है ,इसने लोगों को ठगा है ,किन्तु सम्पूर्ण गलती इसकी भी नहीं ,उसकी बात सुनकर, सभी एक -दूसरे का चेहरा देखने लगे। हाँ ,सम्पूर्ण गलती इसकी ही नहीं है, उसने अपनी बात को दोहराया। सभी की निगाहें भुवन पर टिकी थीं। जब उन लोगों को पता था ,[जो इसके धोखे में आये ]इसका पति बाहर गया है ,यहां नहीं रहता तो इसके पास क्यों आते थे ? मैं उन लोगों से अपने प्रश्नों का जबाब चाहूंगा ,जो मेरे पीछे मेरे घर में आते थे। भुवन के इस तरह के प्रश्न पूछते ही ,लोगों में सन्नाटा पसर गया।
लोगों ने तो सोचा ही नहीं था ,कि वे इस तरह के किसी प्रश्न में उलझ कर रह जायेंगे।वे तो अब इस औरत से छुटकारा चाहते थे।
तभी एक स्त्री खड़ी हुई और बोली -तुम्हारे इस तरह प्रश्न पूछने से ,तुम्हारी पत्नी का दोष कम नहीं हो जाता। पाप तो उसने किया ही है।हाँ... हाँ...... फिर से भीड़ एक स्वर में बोल उठी।
तब प्रधान जी की आवाज गुंजी और बोले - कादम्बिनी ने अपराध तो किये हैं ,किन्तु भुवन के कथनानुसार वो ही अकेली दोषी नहीं है,इसीलिए इसके अपराध को देखते हुए ,इसे गाँव से बाहर निकाला जाता है। इसके व्यवहार को देखते हुए भी , यदि इसको क्षमा कर दिया गया तो हमारे गांव की बहु -बेटियों पर इसका क्या असर होगा ?
कादम्बिनी ,प्रधान को घूर रही थी ,वो चिल्लाकर बोली -ये मेरा भी गाँव है ,मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी। मै बरसों से इसी गाँव में रह रही हूँ, अभी मेरे पति ने ही कहा - इसमें मेरा अकेली का कोई दोष नहीं सजा ही देनी है तो, उन लोगों को भी दो, वे भी तो उतने ही दोषी हैं।
प्रधान उसकी बातो को नजरअंदाज कर ,उठकर चला गया।भुवन को भी ,अब उससे कोई हमदर्दी नहीं थी किन्तु इस बात का संतोष था कि उसके तर्क ने उसे ''प्राण -दंड़ ''से बचा लिया। अब अपने कर्मो का फ़ल भुगतेगी।
इसका अर्थ है -ये दोनों पूर्व जन्म के पति -पत्नी कादम्बिनी और भुवन हैं किन्तु बाबा इनसे मेरा क्या नाता है?पूर्व जन्म में तो इनके कोई बच्चा था ही नहीं ,ऋचा ने पूछा।
अभी वो ही तो बताने जा रहा हूँ -
इस हादसे से , भुवन का मन तो बदल गया ,अब उसने चोरी -चकारी छोड़ दी और जो भी उसके पास धन -सम्पत्ति थी ,उसी से उसने काम -धंधा आरम्भ किया और लोगों की सहायता भी करने लगा , किन्तु कादम्बिनी में कोई सुधार नहीं आया बल्कि उसे तो गांववालों पर क्रोध था ,इसीलिए उसने गांव से बाहर एक जंगल में एक कुटिया बनाई और वहां रहकर ,कुछ तांत्रिक क्रियाएँ करने लगीं। अपने बदले की आग में वो तो पूरे गांव को जलाकर राख कर देना चाहती थी किन्तु अभी उसकी कुछ क्रियाएँ अपूर्ण थीं। दूसरे गांव का तांत्रिक उसकी सहायता करता।
सिद्धि पूर्ण होने के लिए ,उसे कुछ कन्याओं की बलि देनी थी ,सो उसने अपने ही गांव की कन्याओं को ,बहला -फुसलाकर ,उसी जंगल में लाने का निश्चय किया और उसने धीरे -धीरे ,अपने ही गांव से ,लगभग आठ कन्या कैद कर लीं ,पूर्णिमा की रात्रि को उन सभी की बलि देनी थी। अभी और दो लड़कियों की आवश्यकता थी तभी वो क्रिया पूर्ण हो सकती थी।
क्या कादम्बिनी को सिद्धि प्राप्त करने के लिए ,दो कन्या और मिल सकीं या नहीं। वो पकड़ी गयी या नहीं। क्या उसे पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकी या नहीं ?ऋचा का उस जीवन में क्या रिश्ता था ?जो इस जन्म की बेटी बनकर आई। उसके जीवन का क्या उद्देश्य है ?जानने के लिए पढ़ते रहिये -बेचारी .....