अभी तक आपने पढ़ा ,ऋचा अपने पापा से बात कर ,देवीलाल जी से उस नंबर का पता लगाने जाती है, जिस नंबर पर उन्हें फोन आता है किन्तु देवीलाल जी अनभिग्यता जाहिर करते हैं। ऋचा हैरत में पड़ जाती है ,कि जिसे देवीलाल जी ने कभी देखा नहीं ,न ही जानते हैं ,उसका इनके पास कैसे फोन आता है ? ऋचा ने भी उस नंबर से फोन करके देखा किन्तु किसी ने भी नहीं उठाया। अभी तक तो वो ये ही समझे थी कि देहरादून से ''प्रदीप चौबे ''का ही फोन आता होगा। अब वो अपने घर वापिस जाती है और चौबे दम्पत्ति के कमरे में से ,अपनी जरूरत की चीज़ लेकर बाहर आना चाहती है किन्तु वो आत्मा तो दरवाजा ही बंद कर देती है। अब तो ऋचा बुरी तरह घबरा जाती है और किसी तरह बाहर निकलने का प्रयास करती है और उस प्रयास में सफल भी हो जाती है। तब वो बस अड्डे पर आकर ,देहरादून वाली बस में बैठ जाती है। इस बीच उसे लगता है ,जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है किन्तु कौन ?ये जान नहीं पाती। अब आगे -
वो बस से उतरती है और टेढ़े -मेढ़े रास्तों से होती हुई ,आगे बढ़ती जाती है। पहाड़ी इलाका है ,लोग घूम रहे हैं ,मज़े कर रहे हैं। चारों तरफ पहाड़ों के साये ही उसे नजर आ रहे हैं। कुछ धुंध भी है ,उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसे इतनी ठंड लगेगी,रात्रि का समय है ,पहाड़ी इलाका भी , अब तो ठंड जैसे बढ़ती जा रही है। सड़कों की लाइट से अंदाज़ा लेते हुए वो किसी को रोकती है और उससे कागज पर लिखा हुआ पता पूछती है , किन्तु वो उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाता क्योंकि वो भी तो इस जगह से अनजान है। किसी अन्य व्यक्ति से ,इस तरह तीन -चार लोगों से पूछने के पश्चात वोो, निराश हो जाती है। तब उसे एक लड़का जाता दिखलाई पड़ता है ,पहले तो सोचती है -इसे भी कहाँ मालूम होगा ?अब इतने बड़े शहर में ,कहाँ जाये किससे पूछे ?हताश हो ,आख़िरी बार मन में सोचकर उस लड़के से ,पता पूछती है ,वो उसे पता बताता भी और उसके संग भी चल देता है।
ऋचा उससे मना करती है ,किन्तु वो है कि सुनने को तैयार ही नहीं है। ये क्या नई मुसीबत है ?उसे एक अंजाना सा भय भी सताता है। वे लोग कभी किसी पहाड़ी पर चढ़ते और फिर नीचे उतरने लगते। कभी उसे लगता ये अज़नबी उसे भृमित तो नहीं कर रहा। वो उसे टटोलने के उद्देश्य से बातचीत आरम्भ करती है -क्या तुम इन लोगों को जानते हो ?
उसने'' हाँ ''में गर्दन हिलाई।
उनका परिवार कैसा है ?बहुत दिनों बाद आई हूँ न इसीलिए रास्ता भटक गयी। तभी वो एक घर के सामने जाकर रुक जाता है और कहता है -आपकी मंजिल आ गयी।
वो उस घर का दरवाज़ा खटखटाती है और पीछे पलटकर उसे धन्यवाद के लिए मुड़ती है तभी देखती है ,वो अब भी वहीं खड़ा है और दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा कर रहा है।
अब तो ऋचा को कहना ही पड़ा -आपका बहुत -बहुत धन्यवाद !अब आप जा सकते हैं।
तभी घर की मालकिन थी ,पता नहीं कौन थी ?बोली -आ गया तू ........ ऋचा की तरफ देखते हुए बोली -ये कौन है ?अपने संग किसे ले आया ?
वो बोला -ये हमारे ही घर का पता पूछ रही थीं, मैंने इन्हें ये घर दिखा दिया कहकर, ऋचा की तरफ देखकर मुस्कुराया ।
तू ऐसे ही ,किसी को भी , अपने घर ले आया ,क्या तू इसे जानता है ?
नहीं !
अभी तक ऋचा उनके घर का जायजा ले रही थी। वो एक फ्लैट था ,उसके ऊपर भी मंजिल थी ,उन माँ -बेटों की बहस सुनकर वो बोली -आप परेशान न होइए। बस मुझे एक बार श्रीमान ''प्रदीप चौबे '' जी से मिला दीजिये।
उसकी बात सुनकर ,जैसे उन दोनों को चार सौ चालीस वॉल्ट का झटका लगा हो।
वे दोनों ,एकसाथ बोले - कौन हो तुम ?
जी...... मैं .... आपके शास्त्रीनगर के मकान नंबर अठ्ठावन में रहती हूँ।
क्या........ ?वो दोनों उसकी बातें सुनकर चौंकते जा रहे थे।उसकी माँ बोली -तुम उस घर में कितने दिनों से रह रही हो ?
यही कोई आठ -दस दिनों से ;
आठ -दस दिन ,क्या तुम्हें वहां कुछ नहीं दिखा ,किसी ने कुछ नहीं कहा।
कौन कहता ? वहां तो कोई रहता ही नहीं ,वहां तो मैं अकेली रहती हूँ। ऋचा हालाँकि समझ रही थी कि ये लोग किसकी बातें कर रहे हैं ?किन्तु उसने अनजान बनते हुए उन्हें जबाब दिया। अच्छा अब आप लोग ये सब बातें छोड़िये और मुझे चौबे जी से बात करा दीजिये।
ऋचा की बात सुनकर ,उनका चेहरा मुरझा गया और वो रुआँसी हो गयीं और बोलीं -वो तो यहां नहीं हैं।
कहाँ गए हैं ?मुझसे उनसे कुछ महत्वपूर्ण बातें करनी हैं ऋचा ने समझाना चाहा।
पता नहीं !
क्या मतलब ?चौंकते हुए ऋचा बोली।
वो तो ,अपनी माँ का अंतिम संस्कार करने गए थे ,आज तक नहीं लौटे।
क्या....... अब चौंकने की बारी ऋचा की थी। कहाँ रह गए ?उनको फोन किया। ढूंढा भी नहीं।
कैसी बातें करती हो ?मैं अपने पति की खोजबीन नहीं करूंगी उनको ढूंढूगी नहीं। उनके न मिलने पर मैंने तो थाने में रिपोर्ट भी दर्ज़ कराई किन्तु कुछ भी हासिल न हुआ। गहरी उच्छवास के पश्चात बोलीं -मैं तो अपने बच्चे लेकर ,उसी घर में चली गयी कि जब तक वो नहीं मिलेंगे ,मैं नहीं आउंगी।
फिर क्या हुआ ?
क्या होना था ?उनकी नौकरी पर भी आन पड़ी थी और पता नहीं क्यों, बच्चे ड़र जाते ? मुझे भी रात्रि में कुछ पूजा -पाठ की सी आवाज़ें सुनाई पड़तीं किन्तु दीखता कोई नहीं। कुछ दिनों पश्चात मुझे भी लगता, जैसे कोई मेरे साथ है किन्तु दिखलाई नहीं पड़ता। घर के ख़र्चों की भी परेशानी ,बच्चों की शिक्षा भी बीच में ही रुक गई ,तब हम वापस यहाँ आ गए किन्तु इसके पापा नहीं आये। कहकर अब तो वो रोने लगीं।
ऋचा के लिए ये बेहद अचम्भित करने वाली बात थी। दीक्षित आंटी भी बता रही थीं कि वो बिन बताये ही चला गया। तब इस बीच क्या हुआ होगा ?''प्रदीप चौबे '' कहाँ है ?इतने बरस पश्चात ,जिन्दा है या फिर........
ऐ...... उठो !ऐ....... उठो !की आवाज से ,ऋचा की नींद टूटी।
उसने आँखें खोलकर देखा -एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति ,उसके बराबर में खड़ा हो उसे जगा रहा था।
उसने देखा ,वो बस अड्डे की एक बेंच पर बैठी थी। वो अचकचाकर उठी और बोली -मैं यहाँ कैसे ?मैं तो देहरादून की बस में बैठी थी।
ऋचा को इस तरह हड़बड़ाहट में देखकर वो हंसा और बोला -शायद तुमने कोई सपना देखा होगा ,अब यहाँ से उठो ! मुझे सफाई करनी है।
ऋचा वहां से उठ तो गयी किन्तु उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि ये एक सपना था।
दोस्तों मेरी कहानी ''बेचारी ''आपको किसी लग रही है ,मुझे बताते चलिए कोई सुझाव भी आप देना चाहे तो दे सकते हैं ।आखिर ऋचा के साथ ये क्या हुआ? क्या ऋचा देहरादून सच में ही गयी थी ? या फिर वो एक स्वप्न ही था? वो तो बस में बैठी थी ,बेंच पर कैसे आई ? आखिर प्रदीप चौबे कहाँ गया ? जानने के लिए, पढ़िये! बेचारी !