अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा और उसके पापा ,''नितिका''की आत्मा से बचने के लिए ,एक पंडित जी को अपने संग लाते हैं। पंडित जी ,पहले उन बुजुर्ग आत्माओं का निवारण करना चाहते हैं और उनकी आत्माओं को बुलाते भी हैं किन्तु नितिका आकर सम्पूर्ण योजना पर पानी फेर देती है। तब पंडित जी उस घर की कुछ विशेष जगहों को अभिमंत्रित कर सुरक्षित कर देते हैं, किन्तु कुछ स्थानों से निश्चिन्त हो जाते हैं ,कि यहां तक वो नहीं आ पायेगी।ऋचा पंडितजी से कहती है -पापा के लिए भी ,सुरक्षा कवच बना दीजिये और अपने लिए भी ,किन्तु पंडितजी उसे बताते हैं -उनके गले में ,जो रुद्राक्ष की माला है उसका एक -एक मोती अभिमंत्रित है । वो शाम को एक विशेष पूजा करने के लिए ,ऋचा के पापा से सामान मंगवाते हैं ,ऋचा भी अपने कमरे में आराम कर रही थी। जब उसके पापा बाहर से आते हैं ,पंडित जी को न पाकर ऋचा से पूछते हैं और जब उन्हें खोजते हुए ,वे बाथरूम के अंदर झांकते हैं तो उनके होश उड़ जाते हैं ,क्योंकि वो आत्मा पंडित जी को मार चुकी थी ,उसने उनकी गर्दन तोड़ दी थी। तब ऋचा और उसके पापा उस घर से भागते हैं और मंदिर में पहुंच जाते है ,वो काफी घबराये हुए थे ,तब उस मंदिर के पंडित जी से ही आश्रय मांगते हैं। अब आगे -
पंडित जी ,उन्हें अपने घर की तरफ लेकर जा रहे थे ,बोले -मेरा घर पास में ही है किन्तु वो तो चले जा रहे थे ,और एक सुनसान रास्ते पर चलने लगे। उधर तो कोई भी आ जा नहीं रहा था। तब ऋचा बोली -पंडितजी....... ये आप हमें किधर ले जा रहे है ?क्या हम सही राह पर हैं ,उन्होंने कोई जबाब नहीं दिया और चलते ही जा रहे थे। तब ऋचा ने उन्हें पकड़कर हिलाया और बोली -पंडितजी..... हम कहाँ जा रहे हैं ?उसके इस तरह चिल्लाने के कारण ,पंडितजी जैसे नींद से जगे हों ,चौंककर बोले -ये हम लोग कहाँ आ गए ?मेरा घर तो काफ़ी पीछे रह गया।
अब ऋचा को लगा -वो अभी भी हमारे पीछे है और शायद उसने ही अपनी शक्ति से उन्हें सम्मोहित किया हो। वो लोग वापस चले दिए और शीघ्र अति शीघ्र घर पहुंचना चाह रहे थे। घर पहुंचते ही ऋचा बोली -वैसे पंडितजी हम किस राह पर जा रहे थे?
तब पंडितजी बोले - वो रास्ता तो श्मशान की ओर जाता था।
ऋचा और उसके पापा की रूह काँप गयी और दोनों सोच रहे थे कि वो हमें श्मशान में क्यों ले जाना चाहती थी ?क्या हमें भी ,उन पंडित जी की तरह..... इससे आगे वो सोच नहीं पाए।
घर पहुंचकर ,पंडितजी ने ,सबसे पहले अपने घर के चारों तरफ गंगाजल छिड़का ,अपने ऊपर भी और ऋचा और उसके पापा के ऊपर भी ,उनके खाने की व्यवस्था करके ,अपने घर के अंदर चले गए।
उन्हें एक कमरा दे दिया था ,वैसे अब रात्रि बहुत हो चुकी थी किन्तु दोनों ने, अभी कुछ घंटे पहले जो दृश्य देखा था ,उसे सोचकर उन्हें नींद नहीं आ रही थी।
कुछ समय पश्चात ,पंडितजी कमरे में आये और बोले -आप लोग निश्चिन्त होकर सो जाइये ,सुबह चार बजे एक पूजा होगी ,उस समय ये काली शक्तियाँ कमजोर होती हैं , आप लोग आराम करिये।
वे दोनों लेट तो गए ,किन्तु नींद नहीं आ रही थी। तब ऋचा बोली -पापा एक बात पूछूं।
पूछो !
क्या माँ का स्वभाव आरम्भ से ही ऐसा था ,या फिर परिस्थितिवश, वो ऐसी बन गयीं।
उसे तो मैं समझ ही नहीं पाया ,उसने तो मेरा ही लाभ उठाया ,तभी तो आज भुगत रही है।
वो क्या भुगत रही हैं ,भुगत तो हम रहे हैं ,बेचारे पंडितजी ने तो कुछ भी नहीं किया ,वो तो हमें ही बचाने के प्रयत्न में थे ,बेचारे अपनी जान से हाथ धो बैठे।
पंडित जी ने तो ,अपनी सब तरफ से सुरक्षा की थी ,तब ये'' सुरक्षा कवच ''कैसे टूटा ?
पता नहीं ,उनके साथ क्या हुआ होगा ?सोचते -सोचते न जाने ,उन्हें कब नींद आई ?
प्रातः काल ही ,उनके कानों में ,मंत्रों के जप के स्वर सुनाई पड़े ,दोनों उठकर उस आवाज की दिशा में गए ,उन्हें देखकर ,पंडित जी ने बैठने का इशारा किया।
वो दोनों ,पंडितजी के सामने ही बैठ गए ,कुछ मंत्रोच्चारण के पश्चात ,वो ध्यान लगाकर बैठ गए।
कुछ समय पश्चात ,बोलना प्रारम्भ किया -उनकी मौत बहुत बुरे तरीके से हुई है ,वो बहुत ही शक्तिशाली है।
तभी ऋचा के मन में एक प्रश्न उठा। उन्होंने तो सभी जगह सुरक्षित की थीं फिर वो उस बाथरूम में कैसे पहुंची होगी ?
इससे पहले कि वो अपने प्रश्न को पूछ पाती उससे पहले ही ध्यान लगाए ,पंडितजी बोले -वो जल मार्ग से अंदर आई ,जब वो जल का उपयोग कर रहे थे ,तभी जल मार्ग से उसने वहां प्रवेश किया और उनकी गर्दन पकड़ ली। उनकी नाक और मुँह से खून बहने लगा ,तब उसने उनकी गर्दन पर वार किया ,उनके कुछ अंग उसने चबा भी डाले।
सुनकर दोनों बाप -बेटी की हालत खराब हो गई और वो मन ही मन सोच रहे थे- कि अच्छा हुआ ,हम वहां से भाग आये।
तभी पंडितजी का स्वर फिर से वातावरण में गूंजा और बोले -वो वायु मार्ग से बाहर गयी। वो बौखलाई हुई है और क्रोधित भी क्योंकि पंडितजी ने उसकी कुछ शक्तियों को बांध दिया था इसीलिए उसने उनसे बदला लिया।
कुछ देर पंडितजी ,इसी तरह शांत बैठे रहे ,उसके पश्चात उन्होंने आँखें खोली और बोले -वो बहुत ही रौद्र रूप लिए है ,ख़तरनाक है उसकी तांत्रिक शक्तियां बढ़ती जा रही हैं और उसके रास्ते में जो भी आयेगा उसका भी वही हश्र होगा ,जो उन पंडितजी का हुआ।
अब क्या करें ,क्या चाहती है वो ?
अपनी मौत का बदला !पंडितजी ने उनकी तरफ देखते हुए कहा।
तभी ऋचा बोली -गुरूजी !उस परिवार के दो बुजुर्ग़ हैं ,उनकी मुक्ति कैसे होगी ?वो उन्हें कैसे छोड़ेगी ?जब तक वो मुक्त नहीं होगी ,उन्हें भी इसी तरह कष्ट देती रहेगी और उनके बेटे की मुक्ति होनी भी ,अभी बाक़ी है।
क्या मतलब ?दोनों ने चौंककर उन्हें देखा ,क्या उसने ,उसे भी मार दिया ?
पंडितजी ने आँखें बंद की और बोले -मारने का प्रयत्न तो किया था किन्तु सफल न हो सकी।
इसका अर्थ है ,''प्रदीप चौबे ''जिन्दा है ,ऋचा के पापा ने कहा।
नहीं ,अब वो जिन्दा नहीं ,ये एक बड़ा रहस्य है।
आखिर पण्डित जी, कहना क्या चाहते हैं? वो प्रदीप चौबे को मारना चाहती थी किंतु सफल नहीं हुई , किंतु अब वो जिंदा भी नहीं, पण्डित जी, ये क्या पहेली बुझा रहे हैं ?अब इसमें कौन सा नया रहस्य छिपा है ? जानना चाहते हैं तो पढ़ते रहिये - बेचारी