अभी तक आपने पढ़ा - ऋचा किसी अनजान शहर में ,नौकरी करने आती है और देवीलाल जी के माध्यम से उसे एक मकान मिल भी जाता है।'' शास्त्रीनगर का वो मकान नंबर ,'' अट्ठावन ''जहाँ एक रात से भी ज्यादा कोई नहीं टिक पाता। ऐसा नहीं, कि वो मकान पहले से ही ऐसा था ,उसमें एक बुजुर्ग दम्पत्ति रहते थे।
''प्रदीप चौबे ''उनका बेटा , नौकरी के चलते देहरादून में रहता है, किन्तु वो भी बहुत दिनों से नहीं आया।तब से ही ये मकान ऐसे ही वीरान पड़ा है। बस देवीलाल जी को एक फोन आता है। देवीलाल जी ने वो मकान अब ऋचा नाम की एक लड़की को दिलवा दिया।
पहली रात्रि ऋचा, उस' नितिका' नामक भूतनी के चंगुल से बच जाती है ,जो भी ,जैसा भी उसके पिता ने उसे बताया था ,उसने वैसा ही किया। किन्तु आज कि रात्रि उसे भारी पड़ने वाली है क्योंकि वो "आत्मा" जिसका नाम' नितिका 'है ,वो ऋचा के व्यवहार से क्षुब्ध है। आज उसने ऋचा के घर में घुसते ही उसका अच्छे से स्वागत किया यानि अपना असली रूप दिखा ही दिया ,जिस कारण आज ऋचा भी ड़र ही गयी। वो उस आत्मा के कारण ,इतनी डरी हुई थी ,जब उसके पापा का फोन आया तो अचानक उसकी आवाज ने उसे हिला दिया। अब आगे -
ऋचा इतनी डरी हुई थी ,कि पापा का फोन आते ही ड़र गयी और उसके हाथ में पानी का जो गिलास था ,वो हाथ से छूटकर ,नीचे गिर गया ,उसकी आवाज़ ने उस वातावरण में और दहशत सी भर गयी। उसने सोचा तो, ये था कि पहले वो उस कमरे में जाकर अपने को सुरक्षित करेगी किंतु फोन था कि बार- बार घण्टी बजे जा रही थी । उसने अपने को संभाला और फोन उठाया - हैलो !
उधर से उसके पापा की आवाज आई ,क्या हुआ बेटा ?सब ठीक तो है।
जी..... ऋचा कांपते स्वर में बोली।
क्या हुआ ?तू कुछ परेशान लग रही है ,उनके स्वर में चिंता थी।
ऋचा अपने को अधिक देर न रोक सकी और रोने लगी -पापा ! वो तो अत्यधिक भयंकर है उसका तो बहुत ही विकराल रूप है और ऋचा ने अपने पापा से सम्पूर्ण बातें बता दीं।
ऋचा की बातें सुनकर ,वो थोड़े चिंतित हुए ,फिर बोले -मालिनी वो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी ,वो तुम्हें छू भी नहीं सकती। बस वो तुम्हें दूर, से ही डरा सकती है। मैंने अपने गुरूजी से बात करके ही तुम्हें भेजा था। बस तुम वो सब करती रहो ,जो भी उन्होंने बताया है और मंदिर का दीपक नियम से जलाती रहना ,इससे उसकी शक्ति कमजोर होगी। वो इससे भी ख़तरनाक हो सकती है ,बस तुम्हें जो बताया गया है ,उसे करती रहो।
पापा के फोन से ,ऋचा में थोड़ी हिम्मत आई ,और सबसे पहले तो उसने ,मंदिर में जाकर दीपक जलाया। उसकी मंशा देखकर '' नितिका ''ने ,एकदम से तेज हवाएं चलाईं ,फिर कुछ डरावनी ,दिल दहला देने वाली चीख़ें भी ऋचा ने सुनी। किन्तु उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ,जब तक उस मंदिर का दिया नहीं जल गया। वह समझ रही थी, यह जो अचानक वातावरण में परिवर्तन हुआ है, ये स्वत नही है किया गया है।
उस मंदिर से बाहर ,मुख्य दरवाजे पर आते ही अनेक मकड़ियाँ वहां जाले बनाने लगीं। तभी ,जो टहनी पेड़ से उसने तोड़ी थी ,वो हवा में तैरते हुए ,उसके सामने से गयी और उसी स्थान पर जाकर लगी। ऋचा ने अब इस ओर से ध्यान हटाया ,सीधे रसोईघर में गयी और अपना सामान लेकर ,ऊपर के कमरे में जाने की तैयारी करने लगी। जैसे ही रसोई से बाहर आई ,उसे अपने ही ऊपर छत पर किसी के खिसटने की आवाजें आने लगीं।
उसने अभी पहला ही कदम सीढी पर रखा था ,उसे लगा ,जैसे कोई उसे खींच रहा है किन्तु कुछ समय पश्चात ही , किसी की तेज़ चीख़ भी उभरी ,उसे विश्वास था -कि गुरूजी के बताये ,तरीक़े से कोई भी आत्मा उसका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी फिर भी वो थी तो ,बच्ची ही और वो उस चीख़ के कारण ,डरकर तेज गति से ऊपर की तरफ भागी और उसी कमरे में जाकर चैन की साँस ली। उसकी साँसे फूली हुई थी, पापा के दिये विश्वास के कारण ही, आज वो यहाँ है, वरना उसकी हालत भी ऐसी ही होनी थी जैसी अन्य लोगों की हुई है ।
आज जो कुछ भी उसने देखा ,उसकी आँखों के सामने घूम रहा था। तब वो सोचने लगी ,पापा ने मुझे ही ऐसे स्थान पर क्यों भेजा है ? उनके गुरूजी ने बताया -उस आत्मा का मैं ही ,विनाश कर सकती हूँ ,ऐसा क्यों ?अब तक तो वो जैसे इसे बच्चों का खेल ही समझकर आई थी किन्तु ये सब इतना आसान नहीं था।
खाना खाकर लेटकर सोचने लगी ,सोचते -सोचते उसकी न जाने कब आँख लग गयी ? किसी के रुदन से ही उसकी आँख खुली। उसने अपने फोन में समय देखा ,अब रात्रि के बारह बज रहे थे। उसने अपने कमरे की खिड़की से बाहर झाँककर देखा ,उसकी बाहर आने की हिम्मत ही नहीं हुई थी ,उसे लगा - शायद ये उसी आत्मा की कारस्तानी हो सकती है
उसे बाहर ,वो ही बुजुर्ग दम्पत्ति रोते नज़र आये ,ऋचा सोच रही थी ,पता नहीं ,ये लोग कौन हैं ? और क्यों रोते हैं ? ये उस आत्मा का छल भी हो सकता है ,इसके विषय में पापा से बात करूंगी। तभी उसे स्मरण हुआ ,वो क्या था ? जब मैं सीढियाँ चढ़ने का प्रयत्न कर रही थी ,जैसे किसी ने मुझे खींचा हो और तुरंत ही किसी के चीखने की आवाज भी आई। क्या पापा ठीक ही कह रहे थे कि वो मुझे छू भी नहीं सकती।
जब वो यहां आ रही थी , तभी पापा ने गुरूजी से मिलकर ,कुछ तैयारियां की थीं ,शायद उन्हें पहले से ही पता होगा कि मेरे साथ क्या -क्या घट सकता है ?तभी वो सफेद पाउडर ,हाथ में देवी के कवच से अभिमंत्रित ये कलावा और इस कमरे में छिड़कने के लिए ,पवित्र जल और भी कई सामान हैं। उसे एहसास होने लगा ,जैसे युद्ध में , भेजने से पहले योद्धा को तैयार करते हैं ,इसी तरह मुझे भी तैयार किया।
सुबह उठते ही ,सबसे पहले ऋचा के मन में , ये विचार आया। ये आत्मा कौन है ?इससे मेरा क्या संबंध ?मैं ही इसका सर्वनाश कैसे कर सकती हूँ ?अब जो ऋचा के साथ घटनाएँ हो रहीं हैं ,उन्हें देखते हुए तो उसके मन में ऐसे प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है।
शाम को आज फिर से ,वो उसी बगीचे में गयी वहाँ दो -चार ऐसे ही ,बुजुर्ग़ घूम रहे थे। उनमें से वो भी थे ,जो उसे पहली दफा मिले थे। उसे देखकर ,बोले -बेटा ,अब भी क्या तुम उसी घर में हो ?
जी..... उन्हें देखते हुए बोली। वो उसे आश्चर्य से देख रहे थे।
वो बुजुर्ग दम्पत्ति कौन है ? क्या वे उस घर के विषय में कुछ जानते हैं ? क्या ऋचा के सवालों का जबाब उसे मिल पायेगा? पढ़ते रहिये - बेचारी