बेचारी में अब तक आपने पढ़ा - ऋचा उस मकान में रहने तो आ जाती है ,किन्तु नितिका की रूह ने ,उसे परेशान कर दिया वो ऋचा को छू तो नहीं पा रही किन्तु उसे डरा अवश्य दिया। घर में रहते अभी उसे तीन -चार दिन ही हुए हैं किन्तु ऋचा को आये दिन कुछ न कुछ परेशानी का सामना करना पड़ जाता है। हालाँकि उसके पापा ने उसे ढाढ़स बंधाया - कि वो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी ,फिर भी ऋचा इस तरह भूतिया घर में रह रही है ,ये भी तो कोई कम बड़ी बात नहीं। जिसमें उसे पता भी नहीं ,कि कितनी आत्मायें हैं और इनका निवारण कैसे होगा ?
तब वो उस घर की जानकारी लेने के लिए ,बगीचे में टहल रहे ,दीक्षित बुजुर्ग़ दम्पत्ति के समीप जाती है। तब उन्होंने बताया -पहले वे लोग ,उसी घर के बराबर में रहते थे किन्तु कुछ कारणवश उन्होंने अब वो घर अब छोड़ दिया। ऋचा बोली -मैं, वो ही कारण तो जानना चाहती हूँ किन्तु दीक्षित आंटी उसके प्रश्नों से बचकर जाना चाहती हैं। जब उसने बताया - रात्रि में उसे दो बुजुर्ग रोते हुए दीखते हैं , तो दीक्षित आंटी बुरी तरह चौंक गयी और बोलीं - इसका अर्थ है ,उन्हें भी मुक्ति नहीं मिली। कल आना कहकर ,वो अपने घर जाने लगती हैं। अब आगे -
वे लोग आगे बढ़ गए ,किन्तु अब तो उनकी बातें सुनकर ,ऋचा का साहस जबाब दे गया कि वो वापस अपने उसी भूतिया घर में जाये ,जहाँ वो आत्मा कुछ न कुछ कारस्तानी किये हुए,उसकी प्रतीक्षा कर रही होगी। ऋचा कुछ समय के लिए ,वहीं बैठ गयी या यूँ समझो -अपने घर जाने का साहस बटोर रही थी और मन ही मन अपने पापा को कह रही थी -पापा ! ये आपने मुझे कहाँ फँसा दिया ?
वो घर आई ,पापा ने उसे घर के मंदिर का दिया ,अवश्य जलाने के लिए कहा था इसीलिए वो घर आई उसने दरवाजे पर अभी कदम भी नहीं रखा और दरवाज़े तेजी से बंद और खुलने लगे।साहस करके मुख्य दरवाज़े से अंदर गयी। तभी एक आवाज़ गुंजी -''मिल गयी ,जानकारी। ''ही.... ही.... ही... वो आवाज और हँसी इतनी ह्रदय विदारक थी, ऋचा अंदर तक काँप गयी। उसका मन नहीं हुआ ,कि वो अंदर जाये किन्तु जाना तो है ही। अपने अभिमंत्रित कलावे पर उसने हाथ रखा ,शायद !ये विश्वास करना चाह रही थी कि उसके हाथ में है भी, कि नहीं।
तभी उसे स्मरण हुआ ,पूजा का सभी सामान तो ,उसने मंदिर में ही रख छोड़ा है वो अंदर न जाकर ,फुर्ती के साथ ,मंदिर की तरफ भागी। तभी वहां फैले पानी से ,उसका पैर फ़िसल गया। वो बहुत तेजी से गिरती उससे पहले ही जैसे किसी ने उसे खड़ा कर दिया हो। बिना देरी किये , वो मंदिर तक पहुंच गयी और मंदिर का दिया जलाया। जिसके प्रकाश में ,उसने देखा वो पानी अपने आप ही ग़ायब होने लगा।
अब ऋचा समझी -हो न हो ,ये कार्य भी उसी आत्मा का हो सकता है। वो अंदर से इतनी डरी हुई थी ,आज उसे देवी माँ के सिंदूर की आवश्यकता महसूस हो रही थी और उसने वो सिंदूर अपने माथे पर लगा लिया।
सिंदूर को माथे पर लगाते ही ,उसके सामने कुछ दृश्य दिखाई पड़ने लगे ,जैसे कोई तड़प रहा हो ?कोई रो रहा है। और एक औरत भी दिखी ,जो कुछ तंत्र विद्या कर रही हो। सब कुछ अस्पष्ट था किन्तु इतना तो वो अवश्य ही समझ रही थी कि जो घटनाएं उसे दिख रही हैं ,हो न हो ,इनका संबंध इस घर से ही है।
अब उसके साथ ,ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब ऋचा मन ही मन मुस्कुराई और बुदबुदाई -भय का नाम ही भूत है। उसका ड़र अब थोड़ा कम हो गया था। उसी कमरे में उसने अपनी रात्रि बिताई ,मन ही मन उसने कुछ निश्चय किया और वो आज अपने दफ्तर भी नहीं गयी। मौहल्ले के लोगों से पूछती -पाछती ,वो दीक्षित परिवार में जा पहुंची।
वहाँ जाकर देखा ,तो उनके पति को अचानक तेज़ बुख़ार आ गया था। श्रीमती दीक्षित उसे देखते ही बोलीं -तुम यहां कैसे आ गयीं ? तुमसे मिलने का नतीज़ा आज ये भुगत रहे हैं। मैंने पहले ही कहा था -तुम यहाँ से शीघ्र अति शीघ्र चली जाओ !तुमने हमें भी संकट में डाल दिया।
ऋचा बोली -आंटीजी ,ये बुखार मेरे से बात करने से कैसे हो सकता है ?हो सकता है ,ये आपका वहम हो। नहीं ,ये वहम नहीं है। रात्रि में ये अचानक ड़र गए और इन्हे लगा -जैसे कोई इनका गला दबा रहा हो। उनकी बातें सुनकर ,ऋचा एकाएक शांत हो गयी और उठकर उनके मंदिर से लाकर ,सिंदूर का तिलक उन्हें लगा दिया।
सिंदूर के लगते ही ,श्रीमान दीक्षित एकाएक बिस्तर से उछले और फिर शांत हो गये। तब तक ऋचा उनके समीप बैठी रही जब तक की उनका बुखार पूरी तरह नहीं उतर गया।
ऋचा श्रीमती दीक्षित से बोली -आज उसकी हद ,आपके घर तक है ,आगे और भी बढ़ेगी। बुरे लोग कभी शांत नहीं रह सकते ,वो अवश्य ही अपनी शक्तियां बढ़ा रही होगी। इस तरह तो किसी को भी नुकसान पहुंचा सकती है ,कब तक बचे रहोगे ?उसका सर्वनाश होना आवश्यक है तभी ये घर ,पुनः बसेगा और आप लोग सुरक्षित होंगे। आप विश्वास कीजिये -मुझसे आप लोगों को कोई हानि नहीं होगी ,इसीलिए आप जो भी उसके विषय में ,या उस परिवार के विषय में जानती हैं ,मुझे बता दीजिये।
श्रीमती दीक्षित बोलीं -तुम तो अपने घर चली जाओगी ,बाद में तो हमें ही भुगतना होगा।
आप न भुगतें इसीलिए तो मैं यहां आई हूँ ,किन्तु जब तक मुझे सम्पूर्ण जानकारी नहीं होगी तब तक मैं कैसे आगे बढ़ पाऊँगी ?आपने देखा न ,जिस घर में ,एक रात्रि भी कोई नहीं टिक पाया मैं वहां चार दिनों से रह रही हूँ। अवश्य ही कुछ तो बात होगी।
श्रीमती दीक्षित को ,उस पर थोड़ा विश्वास जगा फिर भी बोलीं -उसकी नजर हम पर पड़ चुकी है ,वो अब शायद ही हमें छोड़े।
ऋचा बोली -आप उसकी चिंता मत कीजिये ,अभी दिन भी है और मैं अभी आप लोगों के साथ हूँ और जब मैं जाऊँगी तब आप लोगों की सुरक्षा का प्रबंध करके जाऊँगी। अब मुझे आप ये बता दीजिये -ये कौन है किसकी आत्मा है ?इस घर की कहानी क्या है ?
तब श्रीमती दीक्षित बताने के लिए तैयार हो गयीं ,ये बात बीस बरस पुरानी है ,हम लोग भी ,उसी घर के बराबर में ,किराये पर रहते थे। चौबे जी और उनकी पत्नी अपने घर में अकेले ही रहते थे। बेटा नौकरी पर बाहर चला गया। वैसे उनके बेटा -बहु अच्छे थे या यूँ भी कह सकते हैं - दूर रहते थे ,कभी -कभी मिलने या किसी त्यौहार पर आ जाते इसीलिए दो -चार दिनों में ,किसी के व्यवहार का क्या पता चलता है ?प्रत्यक्ष में तो सब सही ही दिख रहा था।
एक बार चौबे जी की अचानक तबियत बहुत बिगड़ गयी ,कहते हुए ,अचानक वो चुप हो गयीं। उन्हें चुप देखकर ,ऋचा बोली -फिर क्या हुआ ?आंटी जी !
आखिर चौबे जी के साथ क्या हुआ? क्या ऋचा दीक्षित परिवार की सहायता कर पाई? पढ़ते रहिये - बेचारी