बेचारी में आपने अब तक पढ़ा -ऋचा को पता चल जाता है कि ''नितिका ''नाम की नर्स और कोई नहीं उसकी अपनी माँ है। वो इस बात से बेहद दुखी और परेशान होती है कि उसे अपनी माँ के विरुद्ध ही लड़ना होगा। वो बहुत देर तक रोती है। माँ मिली भी ,तो इस रूप में ,किन्तु उसके पापा उसे पहले ही सचेत करते हैं- कि अब वो तेरी माँ नहीं ,ऋचा अपने पिता से पूछती भी है, कि मेरी माँ का देहांत कैसे हुआ ?किन्तु उसके पिता के पास कोई जबाब नहीं था। अपना मन हल्का कर ,तब वो अपने घर जाती है ,घर पहुंचने से पहले ही उसे एक लड़की अपने घर के दरवाज़े पर दिखाई देती है। वो ऋचा को अपना परिचय देती है -मैं कणिका हूँ ,इस घर में एक कमरा किराये पर चाहिए। ऋचा तो पहले से ही ,घर में जाने से ड़र रही थी ,एक से भले दो सोचकर ,उसने कणिका को रहने की इजाज़त दे दी। उसके आने से ऋचा प्रसन्न है ,ऋचा अपने लिए खाना बनाती है और कणिका से भी पूछती है किन्तु कणिका उसे कोई जबाब नहीं देती ,तब ऋचा स्नानागार का जैसे ही दरवाज़ा खोलती है तुरंत ही बंद कर देती है। अब आगे -
कणिका..... कणिका....... ऋचा उसे आवाज लगाती है किन्तु वो कोई जबाब नहीं देती तब ऋचा उस स्नानागर का दरवाजा खोलती है तो देखती है ,उसके सामने जो ,कणिका है किन्तु शीशे में उसका असली चेहरा नजर आ रहा था। ऋचा को कुछ ,सूझा नहीं और बोली -माफ करना !तुम्हारी आवाज नहीं आई तो......... कहकर उसने दरवाजा पुनः बंद कर दिया। वो अंदर से काँप रही थी ,जो उसने अंदर देखा ,अविश्वनीय था। जो वो दिख रही थी ,असल में वो नहीं थी। शीशे में उसका डरावना चेहरा ,कुछ नई कहानी कह रहा था ,यानि कि ये उस नितिका की ही,रूप बदलकर उसके सामने आने की नई चाल थी।उसका ड़र के कारण ,गला सूख गया , उसने रसोईघर में जाकर पानी पिया फिर अपने को संयत किया। वो प्रतिदिन की तरह ही ,अपना खाना लेकर ऊपर वाले कमरे में जाना चाहती है।इससे पहले उसे मंदिर का दिया भी तो जलाना है। वो शीघ्र ही मंदिर का दिया जलाने जाती है किन्तु उसका पैर फिसल जाता है और धड़ाम से गिरती है।आज उसका पैर फिसला नहीं ,वरन उसे गिराया गया था।
वो खिसककर ,आगे बढ़ने लगती है ,आज उसे मंदिर तक पहुंचना कठिन लग रहा था। कणिका अंदर बैठे -बैठे आज उसे अपनी शक्तियां दिखला रही थी। उसके पैरों की शक्ति जैसे किसी ने निचोड़ ली हो ,वो आगे बढ़ने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। किन्तु असफलता ही हाथ लगी ,उसके नेत्रों से अश्रु जल बह निकले,घर के अंदर से बहुत ही तेज हंसने की आवाज आ रही थी ,तभी उसे स्मरण हुआ और उसने मन ही मन ''हनुमान चालीसा '' आरम्भ की। जैसे -जैसे वो हुनमान चालीसा पढ़ती गयी ,उसकी शक्ति बढ़ी और उसने खड़े होने का प्रयत्न किया और तेज कदमों से मंदिर के करीब पहुँच गयी। वहां तक पहुंच तो गयी किन्तु अब वो काफी थकावट महसूस कर रही थी।
ज्यों ही उसने ,मंदिर का दीपक जलाया उसका प्रकाश ऋचा के ऊपर पड़ा और वो पहले की तरह तरो -तजा हो गयी। हां, अब अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी। ऋचा को आज देवी माँ के सहयोग की बहुत आवश्यकता थी क्योकि वो जानती थी ,कि आज की रात पता नहीं क्या होगा ?जो लड़की उसके संग है ,वो असलियत में ,एक आत्मा है जिसने कणिका के रूप में ,अपने को बदला है। ऋचा ने ,अपने माथे तिलक लगाया और अपने उस अभिमंत्रित कलावे को भी।
पूरे विश्वास के साथ ,उसने घर के अंदर कदम रखा। दूर से ही उसने देखा ,उसके बाल खुले और वो जमीन किसी कुत्ते की तरह घिसटकर चल रही थी। जैसे -जैसे ऋचा आगे बढ़ रही थी वो तेज गति से पता नहीं किस दिशा में जा रही थी। इस समय उसका दूर जाना ही ,ऋचा के लिए लाभकारी था। ऋचा भी ,अपने कमरे में जा पहुंची। वो सो गयी ,आजकल उसे वे दोनों बुजुर्ग भी नहीं दिख रहे थे किन्तु आज मध्य रात्रि में ,दोनों जैसे उसे बुला रहे थे। ऋचा उनके समीप पहुंची ,तब उन्होंने हाथ के इशारे से उसे कुछ समझाना चाहा। ऋचा ने देखा- ये उस और ही इशारा कर रहे थे जिस ओर वो नकली कणिका खिसटते हुए गयी थी।
ऋचा उधर ही चल दी ,वो आगे बढ़ रही थी एक गलियारे को पार करके उसे एक सीढी दिखाई दी ,वो तो एक कमरे और रसोई के अलावा ,घर के अंदर कभी गयी ही नहीं। उस गलियारे में उसे ,कुछ तस्वीरें भी दिखीं ,जिन्हें देखकर ,वो पहचानने का प्रयत्न करने लगी। तभी उसे वे दोनों बुजुर्ग ही उसमें नजर आये ,पास ही एक तस्वीर और थी। कोई ह्रष्ट -पुष्ट व्यक्ति की थी ,ऋचा ने अंदाजा लगाया शायद ये उनका बेटा हो। ये कणिका भी कहीं नहीं दिख रही ,कहाँ चली गयी ?इसे होना तो यहीं चाहिए था।
ऋचा उन सीढ़ियों से होते हुए ,नीचे एक कमरे में आ गयी ,वो कमरा काफी बड़ा और गंदा था। उसने कमरे में देखा ,दो हंडिया रखी थीं और एक तरफ कुछ ढका रखा था ,जैसे कोई सो रहा हो। ऋचा वहां का वातावरण देख ,उसे उस स्थान को उघाड़ने की हिम्मत नहीं कर पाई। तभी उसे ,कहीं से कुछ मंत्रों की आवाज भी सुनाई दे रही थी किन्तु वो किधर से आ रही थी ये जान नहीं पाई। वो अपने मन को स्थिर कर उस आवाज को सुनने का प्रयत्न करने लगी। तभी उसे लगा जैसे ये आवाज दीवार के पीछे से आ रही थी। वो ध्यान से उन दीवारों में कान लगाकर सुनने लगी। तभी उसकी दृष्टि ,सामने दीवार पर गयी तो उसकी तेज चीख़ निकल गयी। उसके चीखते ही ,उसकी आँख खुल गयी।
वो डर के कारण ,पसीने से तरबतर थी ,उसे अब भी एहसास हो रहा हो जो उसने उस स्थान पर देखा ,उसने देखा -दीवार पर दो लाल और डरावनी आँखें उसे देख रही थीं ,जैसे ही उन पर दृष्टि पड़ी वे आँखें बढ़ने लगीं दो से तीन तीन से चार और धीरे -धीरे सम्पूर्ण दीवार पर चमकने लगीं ,तभी ऋचा की आँखें खुल गयीं किन्तु उसे अब भी लग रहा है जैसे वे आँखें उसे अब भी देख रही हैं ,उसका पीछा कर रही हैं। ऋचा ने अपनी आँखें बंद कर लीं। बंद आँखों में उसे वही दीवार नजर आ रही थी ,कुछ देर इसी तरह बैठे रहने के पश्चात ,उसने अपनी आँखें खोलीं। वो सोच रही थी -आज वे दोनों बुजुर्ग मेरे सपने में क्यों आये ?क्या वो मुझे कुछ बताना चाहते थे ?क्या इस घर में ,ऐसा भी कोई स्थान हो सकता है ?वो दो कलश किसके हो सकते हैं ?और वो चादर से क्या ढका था ?कहां से मंत्रोउच्चारण की आवाजें आ रही थीं।सुबह उठकर ,जाकर देखना होगा ,अब तो उसकी हिम्मत जबाब दे चुकी थी। सोचते -सोचते वो लेट गयी किन्तु फिर उसे नींद नहीं आई।
क्या ऋचा को उसके सवालों के जबाब मिलेंगे ? जानने के लिए पढ़ते रहिये - बेचारी