प्रदीप चौबे '' अपने पिता का अंतिम संस्कार करके ,अपने काम पर लोेट जाता है ,अपनी माँ को अपने संग ले जाना चाहता है किन्तु माँ पहले तो उसके संग जाने से इंकार कर देती है और जब जाने के लिए तैयार होती हैं तब एन वक़्त पर उनकी तबियत बिगड़ जाती है ,जिस कारण उसे अकेले ही लौटना पड़ता है और वो अपनी माँ की ज़िम्मेदारी उस नर्स को ही सौंप जाता है। प्रदीप चौबे '' को उसके माता -पिता ने नितिका की सच्चाई के विषय में ,उसे कुछ नहीं बताया था। इसीलिए वो उस नर्स को एक सज्जन महिला जानकर ,उसके ऊपर घर और माँ को छोड़कर चला जाता है। नितिका भी उसे आश्वासन देती है ,जब उसकी माँ स्वस्थ हो जाएगी तब उसे उसके पास भेज देगी किन्तु उनकी तो तबियत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी।
तब दीक्षित परिवार ने ,एक अच्छे पड़ोसी होने के नाते प्रदीप को फोन कर दिया। उनके फोन के कारण जब वो अपनी माँ से मिलने आता है। तब उसे एक सच्चाई का पता चलता है -डॉक्टर और नितिका दोनों ही मिले हुए हैं और दोनों ही उसके घर में बैठकर शराब पी रहे थे। तभी उसे पता चलता है कि उसके पिता को ,मारा गया है। जब उसे सच्चाई का पता चलता है ,तब उसे माँ की चिंता भी होती है किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। अब आगे -
प्रदीप के घर में ,कुछ हलचल सी देखकर ,हम लोग बाहर आते हैं ,तब हमें पता चलता है कि प्रदीप अपने घर आ गया। साथ ही उसकी मम्मी के न रहने की सूचना भी मिलती है। वो बहुत रोता है और बार -बार उनसे क्षमा याचना करता है।
लोग इकट्ठा होते हैं ,और कहते हैं -रात से पहले ,इनका दाह -संस्कार होना आवश्यक है। और तैयारी में जुट जाते हैं। तभी प्रदीप अपनी माँ के दाह -संस्कार से इंकार कर देता है।सभी उसका चेहरा देखने लगते हैं और सोचते हैं -छह माह पहले ही तो पिता की मृत्यु हुई थी और अब अपनी माँ की मौत के ग़म में ऐसा कह रहा है।
वो उसे समझाने का प्रयत्न करते हैं ,तभी पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज सुनाई देती है। तब वो बताता है -मुझे अपनी माँ का ''पोस्टमार्टम ''करवाना है। उसकी बात सुनकर सभी अचम्भित रह जाते हैं। वो बताता है - कि उसे शक़ है ,उसकी माँ की मृत्यु नहीं हत्या हुई है और पिता की हत्या का संदेह भी जतलाता है।
जब पुलिस द्वारा पूछा जाता है कि किस पर संदेह है ?तब वो नितिका का नाम लेता है और जो भी कल शाम को उसने देखा और सुना सभी बातें पुलिस को बता देता है। उसकी माँ के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया जाता है और सभी सिपाही उस घर की तलाशी लेते हैं किन्तु उन्हें ''नितिका ''नहीं मिलती वो तो पुलिस की गाड़ी की आवाज़ सुनकर ही ,वहां से कब की ''नौ -दो ग्यारह ''हो चुकी थी।
अब तो पुलिस को भी,उसके इस तरह भाग जाने से शक हो जाता है और उसके नाम पर वारंट जारी हो जाता है। उधर वो डॉक्टर भी ,गायब हो जाता है। पुलिस के पास उन दोनों के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं था। बस प्रदीप की रिपोर्ट के आधार पर उनकी तलाश थी। अभी उसकी माँ की जाँच का परिणाम भी आना बाक़ी था। वही एक सबूत हो सकती थी।तुम और तुम्हारे पिता भी न जाने कहाँ रहते थे ?जो उनसे ही उसके विषय कुछ जानकारी हासिल हो सके।
ऋचा को ,अपनी माँ के व्यवहार पर बड़ी ही शर्मिंदगी महसूस हो रही थी किन्तु वो भी क्या कर सकती थी ?फिर क्या हुआ ?आंटी........
होना क्या था ?प्रदीप की माँ का शरीर उसे सौंपा गया और उसने उनका अंतिम संस्कार कर दिया। बस अब तो सारा मौहल्ला और प्रदीप ,माँ की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रहे थे।
क्या रिपोर्ट मिली ?
हाँ ,उसमें उन्हें ''धीमा जहर'' दिया गया था जिससे किसी को भी शक़ न हो ,वो तो प्रदीप हमारे फ़ोन करने पर आ गया और उसने उन दोनों की बातें सुन ली ,वरना किसी को भी न पता चलता कि वो नर्स क्या गुल खिला रही थी और उसकी क्या योजना थी ?घर -घर में उसके कांड के चर्चे थे।
क्या वो पकड़ी गयी ?
जब तक हम लोग वहां रहे ,तब तक तो नहीं। एक बात अवश्य हुई ,उनका बेटा भी न जाने कब वापिस चला गया ?हमें भी बड़ा ताज़्जुब हुआ ,जो लड़का अपने माता -पिता के गुनहगारों को सजा दिलवाना चाहता था वो इतनी जल्दी कैसे वापस चला गया ?
इसके बाद क्या हुआ ?ऋचा ने जिज्ञासावश पूछा।
बस उस घर की इतनी कहानी ही हमें पता है क्योंकि उसके अगले माह ही ,हमने घर बदल दिया और अब वहां भी कोई नहीं रहता था जिसके सम्पर्क में हम लोग रहते। धीरे -धीरे ,सारा मामला भी शांत हो गया और लोग भी घटना को भूलने लगे। हाँ ,कुछ लोगों ने जब भी ये मकान किराये पर लिया ,तभी वो भागे और कुछ ऊपरी हवा बताई। हमने भी सोचा -शायद खाली मकान पड़ा इसीलिए ये हादसे हो रहे हैं और एक तरह से देखा जाये तो दो हत्यायें भी हुई हैं। तुम बता रही थीं कि दो बुजुर्ग़ तुम्हें रोते दीखते हैं ,तब हमें लगता है ,उनकी आत्मा को भी शांति नहीं मिली और शायद उस घर के दोषी को अब तक सजा नहीं मिली इसीलिए उनकी आत्मा भटक रही है।
तभी ऋचा ने अपने पास से निकालकर ,एक फोटो उन्हें दिखाया और बोली -क्या ये ही ,चौबे दम्पत्ति हैं ?
हां यही तो हैं ,तुम्हें ये फोटो कहाँ मिली ?
ऋचा बोली -उनके घर में जो तहखाना है ,उसी की सीढ़ियों की दीवार पर टंगी थी।
क्या वहां कोई तहखाना भी है ?हमें तो स्णरण नहीं ,हमने तो कभी नहीं देखा।
ऋचा मन ही मन सोच रही थी ,अब ये क्या नई मुसीबत है ? मैं तो नीचे गयी भी थी और वो कमरा भी देखा था। तब उसने उन दोनों को अपना रात्रि का स्वप्न और उस कमरे के विषय में बताया। दोनों उसकी बातें ऐसे सुन रहे थे ,जैसे कोई नया अजूबा उन्हें बता रही हो।
अब दीक्षित परिवार से उसे बहुत जानकारी मिल चुकी थी ,इससे ज़्यादा अब यहां से उसे कुछ नहीं मिलेगा ,यही सोचकर वो उनसे जाने की इजाज़त मांगती है किन्तु उससे पहले वो उनको सुरक्षित कर देना चाहती है। वो मंदिर से लाई, हनुमान जी का सिंदूर दरवाज़े पर तो लगा ही देती है। दरवाजे की दहलीज़ पर उससे स्वास्तिक बना देती है। वो सिंदूर सूखा भी नहीं था ,उसमें गाय का देशी घी लगा था जिस कारण वो चिपक गया। इसके पश्चात पूजा की भभूत उसने सम्पूर्ण घर में उड़ा दी ताकि कोइ भी नकारात्मक ऊर्जा न रहने पाए। तब उसने ,उन्हें विश्वास दिलाया -भगवान पर विश्वास रखिये कोई भी शक्ति उससे बड़ी नहीं है। अब वो अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ती है।
अब ऋचा आगे क्या करेगी, उसका अगला कदम क्या होगा? क्या उसकी माँ सच में ही इस दुनिया में नही है या और भी कई रहस्य अभी खुलने बाकी हैं, तो पढ़ते रहिये - बेचारी