अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा और बाबा को पता चल जाता है ,हाइवे पर जो हाद्से हो रहे हैं ,उनका ज़िम्मेदार कौन है ? बाबा अब ऋचा को कोई निर्णय लेने के लिए कहते हैं ,किन्तु जब ऋचा को पता चलता है -इन हादसों में उसके अपने ही ज़िम्मेदार हैं ,तब वो बहुत परेशान हो जाती है ,जिनका हल उनकी मौत से होकर गुजरता है। ऋचा जब उस स्थान पर ,जाती है तब उसका साहस ,जबाब दे जाता है और वो बाबा से ,मना कर देती है। तब बाबा कहते हैं -आगे जो भी मौतें होंगी ,उनकी ज़िम्मेदार सिर्फ तुम होंगी और उसे समझाते हैं। और वो मान भी जाती है। अब आगे -
ऋचा बाबा के संग ,रात्रि में निकलती है। दिन के समय वो दृश्य देखकर वो पहले ही आतंकित थी किन्तु इस समय बहुत अँधेरा था। चारों ओर ,घनघोर सन्नाटा था ,वो सन्नाटा भी बहुत ही ख़ौफ़नाक लग रहा था।जब सारी दुनिया नींद की आगोश में सिमट रही थी ,तब ये लोग ,उस अँधेरे को चीरते हुए ,अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। बस छोटी सी रौशनी के सहारे वो आगे बढ़ रहे थे। जब उस स्थान के करीब पहुंचे ,तभी ऋचा की चीख़ निकल गयी -ई.... ई......
बाबा ने उसकी तरफ देखा ,तब उसने नीचे की तरफ इशारा किया। बाबा ने उस रौशनी को नीचे किया और मुस्कुरा दिए क्योंकि उसका पैर किसी नर की कंकाल की अंतड़ियों में जा फंसा था। बाबा ने उसके पैर से ,उसे अलग किया और मन ही मन बुदबुदाए -बेचारी... बच्ची.... इस उम्र में भी न जाने इसे क्या -क्या देखना पड़ गया है ?
जब वो लोग उस स्थान पर पहुंचे ,वहां पर पहले से ही ,वो आत्मा आ चुकी थी। बाबा ने उससे एक निश्चित स्थान पूछा और वहीं पर कुछ मंत्रोच्चारण करने लगे। बाबा ने जो यंत्र बनाया था ,वो ऋचा को दिया ,उस यंत्र को देखकर ,वो आत्मा बोली -मैं इस यंत्र के साथ ,इसके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकूंगा।
बाबा ने समझाया -वो जिम्मेदारी मेरी है ,किन्तु उस यंत्र के साथ, तुम्हें कुछ कष्ट तो अवश्य होगा ,वो पवित्र यंत्र है। उसके छूने मात्र से तुम भस्म हो सकते हो ,इसीलिए मैंने उसे अनेक आवरणों में लपेटा है ,ताकि तुम्हें उसका स्पर्श न हो। किन्तु उसकी शक्ति ,का तेज़ फिर भी तुम्हें कुछ कष्ट दे सकता है।
एक अच्छे कार्य के लिए ,मैं कष्ट सहने को तैयार हूँ।
अपनी मौत को सामने देखकर ,वो तुम्हें प्रलोभन भी दे सकता है ,सकती है किन्तु तुम्हें किसी भी प्रलोभन में नहीं आना है बाबा ने समझाया।
ऋचा बोली -बस एक बार मुझे उनके समीप पहुँचा दो उसके पश्चात मैं स्वयं देख लूँगी।
वो जोश में ,कह तो गयी किन्तु बाबा को तब भी ,उस पर थोड़ा अविश्वास था। जब अपने पिता का मुख देखेगी तब कमज़ोर पड़ सकती है।
बाबा ने मन ही मन निश्चय किया ,मैं भी अपने सूक्ष्म रूप में इनके साथ ही ,उस स्थान पर प्रवेश कर जाऊंगा। अब वो भी ,वहीं आसन जमाकर बैठ गए। इस समय ऋचा भी अपने में नहीं थी ,क्योंकि उस पर उस आत्मा का कब्ज़ा था। वो आगे बढ़ा जा रहा था। उस स्थान पर अज़ीब गंध फैली थी ,चारों ओर नर कंकाल घूम रहे थे। जिनकी आत्मायें ,'नितिका' के नियंत्रण में थीं। वो आत्मा भी ऋचा के शरीर के साथ वहां प्रवेश कर गयी। सामने ही ,उसके पिता किसी तांत्रिक क्रिया में ,तल्लीन दिखलाई दिये।
उस आत्मा से बाबा ने सम्पर्क साधा और बोले -उसके समीप जाकर देखो ! जैसे ही वो उसके समीप गया ,उसे एक ज़ोरदार झटका लगा।
''नितिका ''तेज़ी से हंसी ,तू क्या समझता है ? मैंने अपनी सुरक्षा के लिए ,कोई उपाय न किया होगा। मेरे समीप कोई आत्मा नहीं आ सकती। ये सभी मेरे वश में हैं और एक दूरी बनाकर रहते हैं। तू मेरे वश में नहीं ,यदि होता तो यहाँ मेरे क़रीब आने का प्रयत्न न करता। बता ! तू किसके साथ है ?किसका कहा मान रहा है ?और इस शरीर के साथ तो ,तेरा उद्देश्य तो सही नहीं हो सकता।
उसकी बातें और फटकार सुनकर ,वो आत्मा घबरा उठी।
अब देख, मैं तेरी क्या हालत करती हूँ ?
बाबा ने तुरंत सम्पर्क साधा और बोले -इसके तन को छोड़ दो ! तुरंत छोड़ दो !अपना बचाव करो।
वो तुरंत ही ऋचा के शरीर से बाहर आ गया ,एकाएक इस झटके से ,ऋचा वहीं गिर पड़ी और अचेत हो गयी। वो आत्मा ,अपने बचाव के लिए ,उस स्थान से बाहर जाने लगी। नंदिनी उस पर ,अपनी शक्तियों से प्रहार कर रही थी और वो बचने का प्रयास।
बाबा ने ऋचा को कई बार चेताया -उठो !!!!ऋचा ,उठो!!!!!होश में आओ !उसके मष्तिष्क में ,बाबा की आवाज़ गूंज रही थी ,जब ऋचा थोड़ा होश में आई ,तब बाबा का आदेश आया जाओ! उस स्थान पर चली जाओ ! तुम कोई आत्मा नहीं ,तुम उस स्थान पर जा सकती हो। अपना यंत्र निकालो ,शीघ्रता करों !अभी उसका ध्यान उस आत्मा को दंड देने में है। अगर तुम अभी चूक गयीं ,तो तुम्हारी मौत भी हो सकती है और ये मौत के सिलसिले कभी रुकेंगे नहीं।
एकदम से ऋचा को साहस आया और वो उसी स्थान पर जा बैठी ,बोली -माँ ,अब ये तांडव रोक दो ,आपने बहुत अपनी मनमर्ज़ी चला ली। अब तो अपनी इन शैतानी बातों से तंग आ जाओ !
नितिका तेजी से हंसने लगी ,और बोली -ये तेरा बाप है ,मैं नहीं..... कहकर ,उसके तन से बाहर आ गयी। उसके निकलते ही ,उसका पिता ,बेबस ,लाचार नजर आ रहा था और एक तरफ को उसका शरीर लुढ़क गया ।
उधर बाबा ने ,अपना माथा -पीट लिया ,ये तो इसके तन से बाहर आ गयी और ऋचा को भी चेताया।
ऋचा बोली -ये मेरा बाप है ,किन्तु तुम्हारे बिना ये कुछ भी नहीं कर सकता। तुम्हारा भी कोई अस्तित्व नहीं है। इनके बिना तो तुम भी कुछ नहीं कर पाओगी।
नहीं ,मुझे अब इसके तन की भी आवश्यकता नहीं। तब ऋचा को लगा ,इससे तो बेहतर है , मैं इसे अभी मार डालूँ ,उसने वो यंत्र उसकी ओर फेंका और वो यंत्र,सीधा उसके पिता के सीने में जाकर लगा। यह देखकर ऋचा ,चौंक गयी और हतप्रभ सी हो, उन्हें देखने लगी , क्योकि जो यन्त्र उसने नीतिका की तरफ फेंका वो सीधा उसके पिता के सीने में प्रवेश कर गया। यानी नीतिका उसे अभी भी भृमित कर रही थी।कि वो उसके पिता के तन से बाहर है। उस यन्त्र के लगते ही, नीतिका के साथ- साथ उसके पिता भी अचेत हो गए ऋचा को, कुछ भी समझ नहीं आया और वो रोने लगी।
उसके मरते ही ,वहां की सभी नकारात्मक शक्तियां स्वतः ही नष्ट हो गयीं। अब तो बाबा ऋचा के करीब आ गए ,उन्होंने रोती हुई ,ऋचा को शांत किया और बोले -अब दिन भी निकलनेवाला है ,इनके अंतिम संस्कार की तैयारी करते हैं।
अंतिम संस्कार के पश्चात ,ऋचा दुखी तो थी ही ,किन्तु उसके मन में अभी भी ,कई प्रश्न कौंध रहे थे और उसने बाबा से पूछा -ये कैसे हो सकता है ?मैंने तो उस ''नितिका '' पर वो यंत्र फेंका था फिर पापा को जाकर कैसे लगा ?
बाबा बोले -जब मृत्यु सामने होती है ,तब कुछ नहीं सूझता ,जब तुमने नितिका के नाम से वो यंत्र उस पर फेंका ,तब वो पुनः अपने बचाव के लिए ,तुम्हार पिता के तन में प्रवेश कर गयी क्योंकि अब तक वो ,उसके तन द्वारा ही बची हुई थी। प्रवेश करते ही ,उस यंत्र का रुख भी मुड़ गया। मैंने इसी तरह से इसे तैयार किया था जिसके नाम से इसे छोड़ा जायेगा ,वो कहीं भी हो ,उसे ढूँढ ही लेगा।
ऋचा बोली -चलो ,अब ''नितिका की कहानी तो अब समाप्त हुई ,प्रदीप और उसके माता -पिता का क्या होगा ?
उसके बच्चे तो कल ही आ जायेंगे और कल ही सम्पूर्ण क्रिया पूर्ण कर देंगे बाबा ने बताया।
अगले दिन प्रदीप का बेटा और उसकी बहन आते हैं ,बाबा उन्हें उनके दादी -बाबा के अस्थि -कलश ,उन्हें सौंपते हैं। उनके पिता का तो कोई भी संस्कार नहीं हुआ था ,उसे तो ऐसे ही जमीन में गाढ़ दिया था। बाबा ने वहीं की थोड़ी मिटटी लेकर ,उसे एक पोटली में बांध दिया। उसने साथ ही गंगा जी में जाकर ,सभी विधियां पूर्ण कीं। अब तो ऋचा का कार्य भी पूर्ण हुआ ,अब वो भी अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ चली गयी। उन बच्चों को उनके घर की चाबी देकर ,बाबा भी चले गए। बच्चों ने सोचा -अभी हम लोग वहीँ रहते हैं ,और अब इस घर में कोई बुरी आत्मा भी नहीं। तब उन्होंने उस घर पर एक तख्ती लगा दी -''यह घर ख़ाली है। ''किन्तु आज भी इसमें कुछ चीख़ें सुनने को मिल जाती हैं।
दोस्तों! मेरी यह कहानी आपको कैसी लगी? अपनी समीक्षाओं द्वारा अवश्य ब्ताइयेगा और मेरी अगली कहानी "ऐसी भी ज़िंदगी" को अपना प्यार दीजियेगा। धन्यवाद🙏