अभी तक आपने पढ़ा ,ऋचा बस अड्डे से वापस अपने घर आती है। वहां पहुंचकर उसे पता चलता है -उसके पापा और पंडितजी आ गए हैं। पंडितजी उसके द्वारा पता लगाते हैं, कि वो आत्मा वहीं आस -पास है ,तब उन्हें पता चलता है -कि अन्य आत्माएं भी हैं जो दुखी और उसकी कैद में हैं। पंडितजी को लगता है ,शायद उन्हें हमारी सहायता की आवश्यकता है और उनकी सहायता के लिए, हमें कुछ न कुछ जोख़िम तो उठाना पड़ेगा ही, तभी हमें मालूम होगा कि परेशानी कहाँ है और उससे कैसे निपटना है ?तब वो ऋचा को उस जोख़िम को उठाने के लिए तैयार करते हैं किन्तु उसके पापा इससे इंकार करते हैं ,जिसका ड़र था वही हुआ ,ऋचा के ऊपर चौबे जी के साये के कुछ देर पश्चात ही ''नितिका ''उसके शरीर को अपने कब्ज़े में ले लेती है किन्तु पंडितजी के रहते ले जा नहीं सकी। अब आगे -
ऋचा के पापा उसको ,वहीं लिटा देते हैं और पंडितजी से पूछते हैं -अब क्या होगा ?वो तो इस तरह उन लोगों से हमें सम्पर्क नहीं करने देना चाहती ,ताकि हम उनकी कोई सहायता न कर सकें।
पंडित जी बोले -धैर्य रखिये ,अभी ऋचा को होश में आने दीजिये ,तब उससे मिलकर बातें करते हैं ,वो हमसे पहले से ही, इस स्थान पर रह रही थी ,कुछ जानकारी इसे भी होगी उसी के आधार पर हम आगे बढ़ेंगे।
ऋचा के पापा ने सबसे पहले, जो उसका'' रक्षा कवच '' था,उसे पहनाया।
पंडितजी कोई भी ऐसी क्रिया करना नहीं चाहते थे जिससे उस चौबे दम्पत्ति की आत्मा को भी कष्ट पहुंचे। जब तक ऋचा होश में नहीं आती ,तब तक उन्होंने सम्पूर्ण घर का निरीक्षण करने का निर्णय लिया।
कुछ समय पश्चात ही ,ऋचा उठ बैठी ,उसके समीप ही उसके पापा और पंडितजी थे। उसका शरीर दर्द से टूट रहा था , तब भी उसे अपनी फिक्र नहीं थी, तब भी उन लोगों की ही फिक्र थी।उसने पूछा -क्या उन लोगो ने कुछ बताया ?
वो बताते ,इससे पहले ही नितिका आ गयी और उसने सारी योजना निष्फ़ल कर दी।
ऋचा बोली -वो नितिका भी चेेन से बैठने वाली नहीं ,पापा को भी एक ''रक्षा कवच ''दे दीजिये और आप भी...... तभी पंडितजी बोले -तुम मेरी चिंता न करो ,मेरे गले में ये रुद्राक्षों की माला है जिसका एक -एक मोती अभिमंत्रित है। मैंने इस घर के कई ऐसे स्थान देखे हैं,जो सही नहीं हैं ,उस आत्मा का प्रभाव ,कुछ स्थानों पर अधिक है। तब ऋचा ने उन्हें उस घर के तहखाने के विषय में भी बताया और दीक्षित परिवार ने जो भी कहानी सुनाई थी, वो भी सुना दी।
रात्रि को उसके साथ क्या हुआ, कैसे वो बस में बैठी और कैसे उसे लगा कोई पीछे है और कैसे सुबह उसी अड्डे पर उसने अपने को बैठे पाया ?सब बतला दिया और ये भी कि उनका बेटा भी अभी लापता है।
पंडितजी को अंदेशा था कि वो इधर तहखाने की सीढ़ियों के माध्यम से और उस गोदाम पर भी उसका कब्जा है और उन्हीं जगहों से आने वाले रास्तों को उन्होंने अभिमंत्रित कर दिया है। वो उधर ही रहेगी। पंडितजी की बात सुनकर ,ऋचा और उसके पापा ने चैन की साँस ली।
आज शाम को ही पंडितजी ,एक विशेष पूजा करने वाले हैं ,ऋचा के पापा ,उसके लिए सामान लेने चले गए। ऋचा अपने ऊपर वाले कमरे में थी ,और पंडितजी भी अपनी क्रियाविधि की तैयारी में जुटे थे।
शाम का धुँधलका छाने लगा ,ऋचा के पापा शाम का खाना और पूजा का सामान लेकर आ गए , और ऋचा को आवाज लगाई। ऋचा अपने पापा की आवाज सुनकर ,नीचे आई।
ऋचा बेटा ,पंडित जी नहीं दिख रहे ,क्या तुमसे कुछ कहकर गए हैं ?
नहीं पापा ! जब मैं गयी थी ,तब तो यहीं बैठे थे ,तभी उसने स्टूल पर उनकी रुद्राक्ष की मालाएं रखी देखीं और बोली -मुझे लगता है ,शायद ''बाथरूम ''गए हैं ,तभी ये माला इस तरह ही रखकर जाते हैं ,उन्होंने उनकी प्रतीक्षा की किन्तु आधा घंटा बीत जाने पर भी नहीं आये तब ऋचा के पापा ने ,दरवाजा खटखटाया किन्तु तब भी कोई आवाज नहीं आई तब धीरे से दरवाज़ा खोला तो उनकी चीख़ निकल गयी।
ऋचा भी उनके समीप गयी ,वो बेहोश होते -होते रह गयी ,पापा ने उसे संभाला ,उन्होंने स्टूल पर रखी मालाएँ उठा लीं और आगे बढ़े ,ये देखने के लिए कि पंडितजी जिंदा हैं कि नहीं।
उन्होंने देखा ,सारे बाथरूम में खून ही खून फैला था ,उन्होंने पंडितजी को सीधा कर देखा तो उनको वमन होते -होते रह गयी ,पंडितजी के मुँह और नाक से खून बह रहा था और उस आत्मा ने उनकी गर्दन तोड़कर मोड़ दी थी। उन्होंने आस -पास देखा ,आवाज ऊपर छत से आ रही थी हूँ........ हूँ..... और वो वहीं की खिड़की से बाहर चली गयी।
ऋचा और उसके पापा के लिए ,बेहद वीभत्स्व दृश्य था ,पंडितजी की ऐसी हालत देखकर ,अब उनका साहस जबाब दे चुका था कि वो रात्रि इस घर में बितायें ,वो बाहर की ओर भागे ,कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें ?वो तो बस भागे जा रहे थे ,जैसे कोई भूत उनके पीछे लगा हो।
तभी ऋचा को वही मंदिर दिखा ,जिसमें से वो दीक्षित परिवार के घर का दरवाज़ा खोलने के लिए ,सिंदूर लाई थी। वो उसी दिशा में दौड़ी, मंदिर के प्रांगण में जाकर ही दम लिया। वहाँ शाम की आरती चल रही थी ,वे वहीं बैठ गए उनके मन को थोड़ा आराम मिला।
मंदिर के पंडित जी ने ,उन्हें आरती दी ,प्रसाद दिया। अब वो थोड़े शांत हो गए थे किन्तु जा नहीं सकते थे इसीलिए वहीं बैठे रहे ,उन्हें इस तरह बैठे देखकर ,पंडितजी ने पूछा -क्या कोई परेशानी है ?तब ऋचा ने उन्हें सम्पूर्ण बातो से अवगत कराया और पंडितजी की मौत के विषय में भी जानकारी दी।
उनकी बातें सुनकर ,पंडितजी ने अपने कानों में हाथ लगाया और बोले -यहाँ तो आप लोग रुक नहीं सकते ,क्योंकि मंदिर के बंद करने का समय हो गया है।
अब हम इतनी रात्रि को कहाँ जायेंगे ? हो सकता है ,वो हमारे पीछे ही हो ,रात्रि में उसकी शक्तियां दोगुनी हो जाती हैं।
पंडित जी कुछ सोचते हुए बोले -आप लोग मेरे संग ,मेरे घर चल सकते हैं ,पास में ही मेरा घर है।
दोनों बाप -बेटी किसी मासूम बच्चे की तरह उनके पीछे हो लिए।
ऋचा और उसके पापा की रात्रि कैसी बीती ? क्या मंदीर वाले पण्डित जी ने उनकी सहायता की ? उन पण्डित जी की लाश का क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ते रहिये -बेचारी