अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा और उसके पापा ,बाबा के संग हवन में ही बैठते हैं ,उससे पहले ही बाबा ,ऋचा को समझा देते हैं ,कि उसे क्या करना है ?जब बाबा उसे ,उस कार्य के लिए भेजते हैं तब उसे पता चलता है -पापा ने ही माँ को मारा, किन्तु अपना कार्य पूर्ण करके ही आती है और तब अपने पापा से ,पूछती है -कि आपने माँ को क्यों मारा ?तब वे बताते हैं -कि इसने ही मुझे ,मजबूर कर दिया था। वो कदम उठाने के लिए ,उनका इसे मारने का कोई उद्देश्य नहीं था। अब आगे -
वो बताते हैं -जब मैं इसका पीछा कर रहा था ,तब इसने मुझे देख लिया ,किन्तु ये अनजान बनी रही और मौक़ा देखते ही इसने मुझे ,अपने 'तंत्र जाल ''में फंसा दिया। मैं वहां से चाहकर भी ,निकल नहीं पा रहा था। ये मेरे साथ किसी खिलौने की तरह खेल रही थी। मैं विवश होकर ,इसी के साथ कार्य करता रहा। एक बार तो मैंने अपने स्वतंत्र होने की उम्मीद ही छोड़ दी। पता नहीं ,ईश्वर को क्या मंजूर था ?एक दिन मुझे मौका मिल ही गया। ये अपनी ''सिद्धि क्रिया ''में तल्लीन थी और मैं इसके पीछे किसी बुत की तरह खड़ा था।
पता नहीं ,कहाँ से ,मेरे ऊपर कुछ आकर गिरा। मेरे सिर पर उसका प्रहार इतना तीव्र था ,वैसे तो मुझे अचेत हो जाना चाहिए था किन्तु इसका उल्टा ही हुआ। उस प्रहार से ,जैसे मैं सोते से जागा ,मैंने अपने आपको इसके दास के रूप में पाया। बस उसी पल ,पास में रखे दंड से मैंने ,इसके कपाल पर प्रहार किया और ये वहीं ढेर हो गयी।
मैं पहले ही ,न जाने कितने दिनों से इसकी कैद में था ?इसके इशारों पर ही कार्य कर रहा था। मैं घबराकर वहां से भाग आया। उसके पश्चात ,क्या हुआ ? मुझे नहीं मालूम !
पास खड़ी ,ऋचा बोली -तूने तो मुझे मार दिया और मेरा'' अंतिम संस्कार ''भी नहीं किया। कायर.... वहां से भाग गया। मेरी ''आत्मा तो सिद्धि ''में लीन थी। शरीर से बाहर आ गयी ,जब तक शरीर था उसका दायरा सीमित था, अब तो वो असीमित हो गयी थी। मैं कहीं भी आ जा सकती थी ,आत्मा तो मरती ही नहीं ,कहकर वो तेजी से ठहाके लगाकर हंसने लगी।
बाबा ऋचा की ये हालत ,देखकर घबरा गए ,उन्हें तो इसका भान भी नहीं था, कि ये ऋचा के शरीर पर कब्ज़ा कर लेगी। उन्होंने तो कुछ सोचकर ही ,उसके पापा के शरीर से अलग किया था। किन्तु इसका ये परिणाम भी हो सकता है। तब बाबा बोले -तूने तो अपनी बेटी के शरीर को कब्ज़ा लिया क्या तू ..... अपनी मौत का बदला लेना नहीं चाहती।
बदला ही तो लेना है...... ,अब इसे नहीं छोडूंगी ,कहकर वो अपने पिता की ओर झपटी।
बाबा ने उसे अपनी बातों के जाल में फंसाना चाहा ,बोले - तुझे बदला लेना ही है तो अपने दम पर ले ,क्यों इस बेचारी बच्ची को फंसा रही है ?कहकर उन्होंने उस पर ,भभूत फेंकी।
भभूत के असर से वो तड़पने लगी और बोली -तू क्या समझता है ?मेरी शक्तियाँ कमजोर करके तू जीत जायेगा।
बाबा तो उसे मुक्ति दिलवाना चाहते थे ,किन्तु ये तो इसके पिता के पीछे पड़ी है। इसके पिता के शरीर से भी इसीलिए अलग किया था ताकि इसकी मुक्ति में ऋचा के हाथ न काँपें ,यदि इसने अपने पिता को मार दिया यानि ''नितिका'' ने अपने पति को मार दिया तब ये किसी भी तरह ऋचा का शरीर नहीं छोड़ेगी और इसी के शरीर के माध्यम से ,अपने सभी कार्य पूर्ण करेगी। ऋचा के शरीर में ही, इसको मारने का अर्थ है -ऋचा की जान से हाथ धोना।
उधर इसके पापा ,उसके सामने गिड़गिड़ा रहे थे ,तू मुझे मारना चाहती है तो मार डाल ,किन्तु हमारी बेटी को छोड़ दे।
ये हमारी बेटी है ,तब अपनी माँ के काम आएगी ,कहकर वो कहकहे लगाने लगी।
किसी भी तरह वो, मानने के लिए तैयार नहीं थी। तब बाबा ने इशारा किया और ऋचा को बांध दिया गया ,वो चीख़ती रही।
बाबा बोले -तुम बहुत ही चालाक हो ,तुम्हारी मौत इसी के हाथों लिखी है ,इसीलिए तूने अपने पति का शरीर छोड़कर ,इसके शरीर को कब्ज़ा लिया।
उसने बड़ी जोर से अटटहास किया ,बोली -बाबा तुम भी कम नहीं ,मुझे बातों में लगाकर ,मेरे उस स्थान को मेरी बेटी द्वारा ही नष्ट करवा दिया।
बाबा ने ऋचा के पिता से कहा -अब इसे थोड़ा कष्ट तो होगा किन्तु इसकी जान बचाने के लिए ,थोड़ा सख़्त तो होना होगा ,कहकर उन्होंने ,बंधे -बंधे ही ऋचा को अपने हवन के आसन पर खींच लिया ,इतनी आसानी से नितिका उनके उस आसन पर नहीं आने वाली थी।
आसन पर बैठने पर ,भी वो बाहर जाने का प्रयत्न कर रही थी ,उसके पिता ने उसे पकड़ा ,तभी तेज शक्ति के साथ ,उसने अपने पिता को धकेला। वो किसी भी तरह नियंत्रण में नहीं आना चाहती थी। नियंत्रण में आने का अर्थ है ,अपनी मौत को दावत देना। बाबा ने अपने मंत्रों का उच्चारण आरम्भ किया ,तभी वे दोनों पुलिस वालों ने ,घर के अंदर प्रवेश किया और बोले -तुम ये ,इस लड़की के संग क्या कर रहे हो ?इस तरह यातना क्यों दे रहे हो ?इस तरह तो ये मर जाएगी।
बाबा बोले -इसके करीब मत आना ,यदि कुछ हुआ तो..... इसके ज़िम्मेदार तुम लोग होंगे।
तभी ऋचा के अंदर की नितिका उन लोगों को देखकर रोने लगी और बोली -मुझे ये लोग मार डालेंगे ,मुझे इन लोगों से बचाओ... !
उनमें से जैसे ही, एक उसके करीब आने लगा ,बाबा ने ,फिर से उसके ऊपर भभूत फेंकी -वो एकदम से तड़फड़ा गयी और बोली -बाबा तुझे तो मैं नहीं छोडूंगी ,तभी वो हवा में उछली और ज़ोर -ज़ोर से हंसने लगी। वो ऋचा के शरीर का भरपूर लाभ ले रही थी ,उसे वे लोग मार नहीं सकते थे।
ऋचा की ऐसी हालत और उसी बातें सुनकर ,वे दोनों सिपाही तो भाग खड़े हुए ,ऋचा के पापा बोले -तुझे मुझसे ही तो बदला लेना है ,मुझे मार डाल।
वो हवा में तैरती ,जोर -जोर से हंसने लगी ,और बोली -जब तेरी बेटी ,तिल -तिलकर मरेगी ,तू तो वैसे ही मरेगा ,तुझे मार दिया तो तू मुक्त हो जायेगा ,किन्तु अपनी बेटी को देखकर ,तू रोज़ रोज़ मरेगा। उनकी बातों से ये लाभ हुआ ,तभी बाबा ने अपना दंड़ छत की ओर उछाल दिया। वो दंड़ वहीं छत पर स्थिर हो गया। उसकी शक्ति से ,ऋचा के अंदर की नितिका भी ऋचा के साथ ,नीचे आ गयी। वो यदि वायु मार्ग से ऋचा को ले जाती तो पता नहीं ,कहाँ ले जाती और क्या करती ?
वो भी जैसे ज़िद पर अड़ी थी ,ऋचा को किसी भी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। अब बाबा ने उसके चारों ओर एक वृत्ताकार रेखा खींच दी। ताकि वो उससे बाहर न निकल सके और उसके ऊपर दंड़ स्थिर था। काफी देर तक इसी तरह स्थिर रही ,कोई भी अपनी जिद छोड़ने के लिए ,तैयार नहीं था। तब बाबा ने ,नीम् की पत्तियों ,से बनी एक झाड़ू ,जैसी कोई चीज निकाली और उससे ऋचा की पीठ और सिर पर प्रहार करते हुए ,कहने लगे -इस बच्ची के शरीर से बाहर आ जा ,ऋचा उस चोट को सहन नहीं कर पा रही थी और चिल्ला रही थी।कुछ समय पश्चात ,उस प्रहार को सहन करना उसके लिए असहनीय हो गया और वो ऋचा के शरीर से बाहर आकर खड़ी हो गयी।
आगे क्या हुआ, क्या वो अपने पति से अपनी मौत का बदला ले पायेगी? या ऋचा के तन का लाभ उठायेगी क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़िये - बेचारी