ऋचा किराये पर मकान लेती है और वो शास्त्रीनगर के ''प्रदीप चौबे ''के ,मकान नंबर ''अट्ठावन ''में आ जाती है। वो मकान कई वर्षों से ,यूँ ही वीरान पड़ा है , उसमे कोई नहीं रहता। कभी कोई भूले से आ भी जाता ,तो रातों -रात भाग खड़ा होता। किन्तु ऋचा उस मकान में तीन दिनों से रह रही है ,यहां उसे कोई जानता भी नहीं, सिर्फ देवीलाल जी के सिवा ,वो भी इसीलिए ,ये मकान उन्होंने ही तो उसे दिलवाया है। किन्तु इस मकान की दहशत इतनी है ,वो स्वयं भी ,इसमें कदम रखने से डरते हैं। ऋचा का इस मकान में तीन दिनों तक रहना ,आश्चर्य का कारण बन गया। आज भी ,ऋचा किसी उद्देश्य के तहत ही ,उस बगीचे में घूमने जाती है ,जहाँ उसे पहली बार दो बुजुर्ग मिले थे और वो उसे देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। अब आगे -
ऋचा वहां घूमने लगती है ,तभी वो बुज़ुर्ग भी ,उसे दिखते हैं ,आज उनके संग एक महिला भी थीं ,ऋचा ने बातचीत के उद्देश्य से ,उन्हें नमस्कार किया। वो उसे पहचानने का प्रयत्न करते हुए बोले -क्या तुम वही हो ,जो हमें परसों मिली थीं ?
जी..... ऋचा का छोटा सा जबाब था। अब कहाँ रह रही हो ?उनमें से एक ने पूछा।
जी ,उसी मकान नंबर ''अट्ठावन ''में ऋचा ने साधारण सा दो टूक जबाब दिया।
क्या..... वो चौंकते हुए ,आश्चर्य से बोले। तुम तीन दिनों से वहीँ हो !उनके आश्चर्य से उसे थोड़ी हंसी आ गयी किन्तु अपनी हंसी को छिपाते हुए ,मुस्कुराकर बोली -अंकल मैं ,आपसे एक बात पूछना चाहती हूँ।
पूछो !वो इस तरह बैठ गए ,जैसे कोई ''प्रतियोगी परीक्षा ''देने के लिए बैठे हैं।
ऋचा ने पूछना आरम्भ किया -मैं ये पूछना चाह रही थी - कि ये मकान किसका है ,और इस तरह खाली और वीरान क्यों है ?
तब उनमें जो महिला शांति से ,हम लोगों की बातें सुन रही थीं ,एकाएक बोलीं -ये किस मकान की बात कर रही है ? शायद उनमें से एक अंकल उनके पति थे ,बोले -अरे वो ही ,''चौबे जी ''का मकान।
क्या..... उनकी आश्चर्य से आँखें, इस बुढ़ापे में भी ,चौड़ी हो गयीं। वे ऋचा से बोलीं -अब उस घर में कोई नहीं रहता और न ही रह पाता है ,सुना है ,अब उस घर में भूतों का वास है ,तुम भी ,उस घर से दूर ही रहना।
उन अंकल ने अपनी पत्नी को ,बताया -अब ये उसी मकान में रह रही है। इतना सुनते ही वो अपने पति का हाथ पकड़कर खड़ी हो गयीं और बोलीं - ऐसा कैसे हो सकता है ? उन्हें लगा -शायद इस लड़की पर ही तो कोई भूत तो नहीं ,वे मन ही मन '' हनुमान चालीसा ''पढ़ने लगीं।
उनकी मनःस्थिति को समझकर ऋचा बोली -आंटीजी मैं ठीक हूँ मेरे अंदर कोई , भूत नही है, जो आप इस तरह " हनुमान चालीसा " पढ़ने लगीं ।मैं तोबस ये पूछना चाहती थी कि उस परिवार में कितने लोग थे और अब कहाँ हैं ? उस घर की कुछ तो कहानी होगी।
नहीं, अब ये समय उनकी कहानी सुनाने का नही है, हमें देरी हो रही है, कहकर वो लोग आगे बढ़ गए ऋचा निराश खड़ी उन्हें जाते देख रही थी , आंटी जी! अंकल जी ! आप लोगों को कुछ जानकारी तो होगी, कुछ तो उस परिवार के विषय में जानकारी होगी। तब चलते - चलते अचानक आंटी जी रुक गई और बोली- मैं तुम्हें बताती हूँ।
उन तीनों में से ,आंटीजी ने ही बोलना प्रारम्भ किया -पहले हम उसी मकान के ,बराबर में ही रहते थे। श्रीमान और श्रीमति चौबे ,बहुत ही अच्छे थे ,उनका एक बेटा नौकरी करता था। चौबेजी व्यापार करते थे ,उस व्यापार से बहुत पैसा कमाया। मकान बनाया और बच्चों को भी काबिल बनाया और उनका विवाह भी किया।
चौबेजी चाहते थे - कि बेटा उनका व्यापार संभाल ले ,और काम को आगे बढ़ाये किन्तु प्रदीप की व्यापार में कोई रूचि नहीं थी ,उसने व्यापार करने के लिए ,अपने पिता से इंकार कर दिया और बाहर जाकर नौकरी करने लगा। जब तक उनके बस में था ,उन्होंने अपना व्यापार सम्भाला ,उसके पश्चात उन्होंने अपना व्यापार धीरे- धीरे समेट लिया।दोनों पति -पत्नी आराम से अपनी ज़िंदगी बसर करने लगे। पड़ोसियों ने कहा भी ,कुछ दिन जाकर अपने बेटे के पास रहो।
वे गए भी ,किन्तु अपना घर तो अपना ही होता है ,उनका ज्यादा दिनों तक वहाँ मन नहीं लगा ,कहने लगे -उसकी सीमित आय है और एक -एक चीज़ मोल की आती है ,यहाँ तो हमने अपने घर में साग -सब्ज़ी भी लगाई है ,दूध वगैरहा भी ,सस्ता पड़ जाता है इसीलिए हम वापस आ गये ।
अब किसी के घर की, हम क्या जाने ?क्या सही है ,क्या ग़लत ?हमसे तो उन्होंने जो बताया ,वो मान लिया। इतना सब कहकर ,वो शांत हो गयीं।
बस इतनी सी ही उनकी कहानी थी ,कोई विशेष बात !अच्छा ये बताइये -वे लोग कितने वर्षों तक जिन्दा रहे ?इस बीच क्या उनका बेटा और उनकी बहु उनसे मिलने आते थे कि नहीं। लोगों से उनका व्यवहार कैसा था ? आंटी जी आप तो बता रही थीं कि हम उनके पड़ोसी थे, फिर आपने वो मकान क्यों छोड़ा ?
उन आंटीजी का जैसे , आगे कुछ भी,बताने का मन नहीं था ,बोलीं -तुम क्यों इतनी खोजबीन कर रही हो ?तुम्हें बचना है ,तो उस घर को शीघ्र ही छोड़कर चली जाओ !वरना पछताओगी। कहकर वो जाने लगीं।
आंटीजी कृपया करके ,मुझे उनके विषय में कुछ और जानकारी दीजिये ,जिससे मैं उस परेशानी का हल सोच सकूं। जब तक मुझे सम्पूर्ण जानकारी नहीं होगी, तब मैं कैसे उस समस्या से निपट सकूंगी ?
तुम क्या ?कोई भी उस समस्या से नहीं निपट सकता ,उनकी अपनी पाली समस्या है ,झेलेंगे भी वही ,उनकी अपनी समस्या कौन सी ?मैं कुछ समझी नहीं। उन्होंने कौन सी समस्या पाली ?
अब तुम कल आना , तभी तुम्हें मैं विस्तार से बताऊँगी अब तो काफी अँधेरा भी हो गया ,थोड़ी देर और रुक जाइये आंटीजी ! उन्हें जाते हुए देखकर, ऋचा रोककर बोली- मुझे उस घर में दो बुजुर्ग़ रोते हुए दीखते हैं ,क्या वे भी कोई आत्मा हैं ,क्या मैं उनकी कोई सहायता कर सकती हूँ ?
क्या..... ये तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताया ?इसका अर्थ है ,उन्हें मुक्ति नहीं मिली ,वे भी उसी घर में भटक रहे हैं। तुम इस घर में कैसे आ गयीं ?उनमें से उन आंटीजी के पति ने कहा।
उन लोगों के कहने के तरीक़े से ,अब मन ही मन अपने घर वापस जाते हुए ,ऋचा को भी डर लगने लगा। और मन ही मन बुदबुदाई -ये पापा ने मुझे कहाँ फ़सवा दिया ?
क्या वो बुजुर्ग दम्पति ऋचा की सहायता करेंगे ? उसके घर में जो दम्पत्ति रोते दिखते हैं, क्या वो आत्मा है ? या सच! क्या आंटीजी ऋचा को आगे की कहानी सुनायेगीं या नही, जानने के लिए पढ़िये -बेचारी