ऋचा दीक्षित परिवार से मिलने जाती है ,आज उसकी नींद भी पूरी नहीं हुई क्योंकि रात जो उसने भयानक सपना देखा ,उसके कारण वो बेहद डरी हुई थी। उसने अपने पिता को फोन पर ,कणिका के विषय में बताया जिसे सुनकर उसके पिता ,एक दम शांत हो गए और बोले -मैं आज ही पंडित जी से मिलकर ,बात करता हूँ। तब ऋचा दीक्षित परिवार से मिलने जाती है। वहां जाकर देखती है ,तो हालत खराब हो जाती है। उस घर का दरवाजा ही नहीं खुल रहा। किसी तरह मंदिर के पंडितजी से मिलकर उस घर के दरवाजे को खोलती है किन्तु अब श्रीमती दीक्षित उससे नाराज़ होती हैं कि तुम्हारे कारण ,आज हमारी ये दुर्दशा हुई है ,अब हम तुम्हारा और साथ नहीं देंगे। उनका साथ पाने के लिए ,वो बता देती है कि आप लोगों के कारण ही मुझे अपनी माँ के विषय में मालूम हुआ ,अब तो दोनों ,उसे शक़ की नजर से देखते हैं और उससे पूछते हैं -तुम कौन हो ?अब आगे -
दोनों पति -पत्नी उसके जबाब की प्रतीक्षा कर रहे थे ,उसने सोचा -अब तो उसके मुँह से निकल ही गया तो सच्चाई बताने में ही भलाई है ,यही सोचकर ऋचा उन्हें बताती है -वो और कोई नहीं ,उस नर्स 'नितिका '' की लड़की ही है ,इस बात का उसे यहीं आकर पता चला ,जब उन लोगों ने उसे बताया कि उसकी बेटी का नाम ''मालिनी ''था।
किन्तु तुम तो ऋचा हो !वे आश्चर्य से बोलीं।
हाँ ,सिर्फ यहां के लिए ,मैं वही मालिनी हूँ जिसके पिता अपनी पत्नी से लड़कर ,उस बच्ची को अपने साथ ले गए थे।
अब तुम यहाँ किसलिए आई हो ?
अपने माँ की मौत का राज पता करने ,और उस परिवार पर जो अत्याचार हुआ ,अब भी हो रहा है ,उससे उन्हें मुक्त करने। ऋचा की बात सुनकर दोनों पति -पत्नी सकते में आ गए। सोच रहे थे -अब इस बच्ची से क्या कहें ?
ऋचा बोली -अब आंटीजी ,कुछ मत सोचिये ,बस आगे क्या हुआ ?बता दीजिये !
वो बोलीं -तुम्हें लेकर तो तुम्हारे पिता चले गए ,और अब'' नितिका '' की सच्चाई भी सबके सामने आ चुकी थी। इस तरह सबके ,सामने बेइज्जत होने के कारण वो शांत रही। इस बीच ,चौबे परिवार का भी उसके प्रति थोड़ा सख़्त रवैया हो गया और उन्होंने उससे घर ख़ाली करने के लिए भी कह दिया।
अब तो चौबे जी भी पहले से थोड़े ,दुरुस्त लग रहे थे। नितिका अब शांति पूर्वक अपना कार्य करती और अपने कमरे में रहती। चौबे जी की दवाई और उनके खान -पान का अब भी ख़्याल रखती। अब उनका भी मन बदलने लगा और सोचने लगे -जीवन में गलती किससे नहीं होती ?इससे भी हो गयी। अब उन्होंने उसे क्षमा करने का मन बना लिया था।
कुछ दिनों पश्चात ही ,चौबे जी की तबियत फिर से बिगड़ने लगी और वे धीरे -धीरे बिस्तर पर आ गए। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें दुबारा क्या हो गया ?डॉक्टर आया ,उसने देखा ,उसने कुछ जाँच करने के लिए ,उनका ख़ून और पेशाब के नमूने लिए। किन्तु कुछ पता नहीं चल पा रहा था ,नितिका ही उनके सभी कार्य कर रही थी। किन्तु अब उसके व्यवहार से ,वो एक ज़िम्मेदार नर्स नजर आ रही थी।
एक दिन,हम लोग भी वहीं बैठे थे , डॉक्टर आये और बोले -जो इनके ख़ून और पेशाब के नमूने लिए थे ,अभी तक उनकी जाँच का परिणाम नहीं आया। मैं इतने दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था। नितिका हम सभी के सामने झेंपकर बोली -मैं ले तो आई थी किन्तु समय न मिलने के कारण ,आपको दिखला नहीं पाई। डॉक्टर ने उसे डांटा- कितनी लापरवाह नर्स हो तुम.......
उसने हमारे सामने ही ,जाँच का परिणाम लेकर ,डॉक्टर के सामने रख दिया कुछ पता नहीं चल पाया। तब तक देर भी बहुत हो चुकी थी और एक दिन चौबे जी इस दुनिया से अलविदा कह गए।
ऋचा ने एक लम्बी गहरी साँस ली ,चलो अच्छा हुआ ,इसमें मेरी माँ का कोई हाथ नहीं था।
उनका बेटा ''प्रदीप चौबे ''आया और अपने पिता का दाह संस्कार करके चला गया।
क्या उसने ,अपनी अकेली माँ को , अपने साथ ले जाने के लिए नहीं कहा ?
कहा था ! किन्तु वो तो पहले ही ,अपने पति के जाने से दुखी थीं ,अब उन्हें ''नितिका ''पर भी विश्वास हो चला था। अब तक तो ,नितिका ही जैसे घर के सम्पूर्ण कार्य ,संभाल रही थी ,श्रीमती चौबे बोलीं -पति की तेहरवीं से पहले कहीं नहीं जाएँगी। बेटे को शीघ्र ही जाना था ,उसने पंडित जी से मिलकर ,तेहरवें दिन से पहले ही ''सब कार्य निबटा दिए। जब वो जाने लगा तो अचानक ही , उनकी भी तबियत बिगड़ गयी।
उसे शीघ्र ही जाकर ,अपना कार्यभार संभालना था ,उनकी ऐसी हालत देखकर ,वो झल्ला गया। उसकी झल्लाहट देखकर ,नितिका ने कहा। इन्हें मैं संभाल लूँगी ,शायद अंकल जी के जाने के ग़म में ,इनकी तबियत बिगड़ी है। जब ये स्वस्थ हो जाएँगी ,तब मैं इन्हें बस में बैठा दूँगी।
प्रदीप नितिका पर विश्वास कर चला गया ,हम लोग भी बीच -बीच में ,उन्हें देखने चले जाते। अब तक तो वो काफी कमज़ोर हो गयीं थीं ,सबको यही लगता था ,कि पति के जाने पर अकेलापन महसूस कर रही हैं ,उनके बिना दिल नहीं लग रहा। डॉक्टर आता और चला जाता हम पूछते भी ,तो कहता -कुछ समझ नहीं आ रहा। एक दिन उनकी कुछ ज्यादा ही हालत ख़राब थी ,नितिका ने तो नहीं ,हमने ही ,एक दिन उनके बेटे को फोन किया -एक बार आकर तनिक अपनी माँ को तो देख ले ,नर्स के सहारे छोड़कर चला गया। कम से कम उसके पास , उसका अपना तो कोई होना चाहिए।
हमारे फोन का ये असर हुआ ,एक दिन अचानक वो घर आ गया। इस बात का नितिका को भी नहीं मालूम था। उसने देखा -नर्स तो डॉक्टर के साथ बैठी ,शराब पी रही थी और कह रही थी -यदि आप साथ न देते तो मेरी योजना कभी सफल न हो पाती। वो सअअअ ा लाआआ बूढ़ाअअअअअा ,कुछ ज्यादा ही हेकड़ी दिखाने लगा था। मैंने भी उसे बिस्तर दिखा दिया अब पड़ा रह यहीं ,सड़ता रह......
उसकी बातें सुनकर ,प्रदीप से और रुका नहीं गया और बोला -तूने मेरे पापा के साथ क्या किया ?इसका अर्थ है , वो बीमार नहीं थे ,उन्हें बीमार किया गया था और तेरी इस योजना में ,ये डॉक्टर भी शामिल था , और मैं बेवकूफ़ तुझ पर भरोसा कर ,अपनी माँ को तेरे हवाले कर गया।
तभी उसे अपनी माँ का स्मरण हुआ और सोचा -कहीं इसने माँ को भी तो....... सोचकर उसकी रूह काँप गयी और वो अपनी माँ से मिलने उनके कमरे की तरफ दौड़ा किन्तु वहाँ माँ कहाँ थी ?बस उनका निर्जीव तन पड़ा था। उसके घर में कोलाहल मचने पर ,तभी हमें पता चला कि श्रीमती चौबे जी भी नहीं रहीं। तब वो बहुत रोया ,रो -रोकर , उनसे क्षमा याचना करता रहा और बोल रहा था -माँ मैं धोखा खा गया ,तभी लोग उनके अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे किन्तु उसने कहा -मेरी माँ का अंतिम संस्कार नहीं होगा।
ऐसा उनके बेटे प्रदीप ने क्यों कहा कि मेरी माँ का अंतिम संस्कार नही होगा, आखिर अपनी माँ के अंतिम संस्कार को न कराने का क्या रहस्य है, एक बेटा अपनी माँ के साथ ऐसा क्यों करेगा जानने के लिए पढ़िये - बेचारी