अभी तक आपने पढ़ा -देवीलाल जी ,शास्त्रीनगर के मकान नंबर 'अट्ठावन ' में रात्रि में अपने नौकर नंदू के साथ ठहर जाते हैं किन्तु उस मकान में उनकी ,इतनी बुरी गत हो जाती है कि अस्पताल में जाने की नौबत आ जाती है। नंदू तो,अपनी जान बचाने के लिए , उस घर के मंदिर में घुस जाता है किन्तु रात्रि की घटनाएँ ,उसे स्मरण होते ही वो हिल जाता। उसने सेठजी से कितना कहा था -घर चलें किन्तु वो तो नशे में ,वहीं सो गए और जब बाहर कुछ सरकने की आवाजें उसने सुनी और देखने के लिए बाहर गया तो उसकी हालत खराब हो गयी क्योंकि जो पेड़ -पौधे सेठजी ने सफाई के दौरान बाहर फिंकवा दिए ,वे स्वतः ही अपने स्थान पर आ रहे थे। यही सूचना देने के लिए , वो सेठजी के पास जाता है तो सेठजी वहां नहीं थे। वो तो सोफे सहित ,छत पर लटके थे और उनके सिर से खून बह रहा था। यही सब जब ,सेठजी की पत्नी को उसने बताया तो उनकी पत्नी ,भगवान का धन्यवाद कहती है और अपने पति की नजर उतारती है। उसके जाने के पश्चात सेठजी ,सपना देखते हैं और डर जाते हैं ,अब आगे -
नंदू और सेठजी अस्पताल से आते हैं ,निर्मला देवी उन्हें दरवाजे पर ही रोक देती है और बोली -तुम लोग अभी वहीं रुको ,अभी आती हूँ,कहकर अंदर गयी और वो पहले लाल मिर्ची और नमक से नजर उतारती है ,उसके पश्चात गुरूजी का दिया लॉकेट पहनाती है ,तब उन्हें अंदर आने देती है। नंदू का भी उस घर में आना -जाना लगा ही रहता है उसे भी एक लॉकेट देती है। उसने बताया -गुरूजी ने कहा है ,इस लॉकेट को मत उतारना और उस घर के अंदर आत्माएं तो कई हैं किन्तु एक आत्मा बहुत ही ख़तरनाक है जो अपने उद्देश्य को पूर्ण करना चाहती है ,इसीलिए वो आक्रामक हो रही है ताकि कोई उसके कार्य में बाधक न बने। सेठजी ने पूछा -वो आत्मा क्या चाहती है ?उसका क्या उद्देश्य है ?ये तो गुरूजी ने नहीं बताया ,न ही मैंने पूछा ,बस अब तुम उस घर के अंदर मत जाना। ये गुरूजी की चेतावनी है।
सेठजी बोले -मुझे तो उसे घर को किराये पर उठाने की ज़िम्मेदारी मिली है। निर्मला देवी बोली -नहीं ,तुम उस जिम्मेदारी को लेने से इंकार कर दो। और भी मकान ,घर होंगे ,क्या इसी से हमारा घर चलेगा ?इन्हीं बातों को सोचते हुए ,सेठजी ने भी ,इस मकान को किराये पर चढ़वाने का निर्णय त्याग दिया।'' जान है तो जहान है ''यही सोचकर अब उन्होंने उस मकान के विषय में सोचना छोड़ दिया। लगभग एक सप्ताह पश्चात फिर वही फोन आया ,क्या अभी तक कोई किरायेदार नहीं मिला ?जी ,अब मैं उस मकान को किराये पर नहीं उठाऊंगा। लोग घबरा जाते हैं ,उनमें भूतों का वास है। तभी उधर से रोने की आवाज सुनाई दी और फोन कट गया।
सेठजी परेशान ,ये कौन व्यक्ति है ?जो मुझे बार - बार फोन करता है और आज मेरे इंकार करने पर रो भी रहा है। इसका उस घर से क्या नाता है ?कुछ समझ नहीं आया। पंद्रह दिन हो गए ,कोई भी ग्राहक नहीं आया। समझ नहीं आ रहा क्या किया जाये ?इस दफ्तर का किराया ,घर के ख़र्चे ,नंदू का वेतन ,सब कहाँ से निकलेगा ?अभी सेठजी इन्हीं बातों से परेशान थे ,तभी ऋचा उनके दफ्तर में प्रवेश करती है ,''डूबती नैया को जैसे किनारा मिल गया। ''इस समय कोई मकान उनकी नजर में था भी नहीं ,इसीलिए वो ऋचा को लेकर ,शास्त्री नगर के उसी मकान नंबर अट्ठावन में जाते हैं किन्तु ताला खोलकर बाहर ही खड़े रहते हैं ,स्वयं अंदर नहीं जाते। इतनी मासूम सी बच्ची को बिना बताये कमरा लेने के लिए तैयार करते हैं किन्तु उनका मन अंदर से गवाही नहीं दे रहा था। जब ऋचा थोड़ी साफ -सफाई की परेशानी बताती है और अंदर जाकर उसे कुछ भी अनुभव नहीं होता तो वे चैन की साँस लेते है। फिर तो भी सोचते हैं ,मेरे साथ भी घटना शायद अनजाने ही हुई हो किन्तु नंदू का वो बयान और उसके सिर का फटना ,ये सब झुठलाया तो नहीं जा सकता।
अगले दिन ,देवीलाल जी दो मजदूरों को उस घर की सफाई के लिए भेजते हैं ,पहले तो कोई भी जाने के लिए तैयार नहीं हुआ किन्तु वक़्त के मारे दो मजदूर मिल ही जाते हैं। एक घर के सफाई करता है तो दूसरा मंदिर और पौधों की। उसने मंदिर की सफाई करते हुए ,थोड़ा सा सिंदूर अपने माथे पर लगा लिया। दूसरा जो अंदर था ,वो सफाई कर आगे बढ़ता किन्तु पीछे -पीछे सम्पूर्ण गंदगी फैल जाती। उसे घर की सफाई करते दो घंटे हो गए किन्तु घर साफ नहीं हो रहा था। तभी उसने पानी चला दिया और बाल्टी भरने तक बाहर आ गया किन्तु जब वापस आकर देखा तो बाल्टी अब भी भर रही थी। अभी दिन ही था इसीलिए उन्हें कोई एहसास नहीं हुआ किन्तु उसे लगा ये अवश्य ही दूसरे की कारस्तानी है। बाहर आकर देखा तो वो तो बड़ी तल्लीनता से अपने कार्य में व्यस्त है। वो पुनः बाल्टी का पानी देखने आया तो वहां बहुत सारा पानी फैला हुआ था। उस पानी से किसी तरह वहां का फर्श धोया तो पानी फिर से आ जाता। तभी उसने देखा ,कुछ बारीक़ -बारीक़ कीड़े सारे फर्श पर फैले हैं और बढ़ते ही जा रहे हैं जितना भी वो उन्हें हटाता और फैल जाते ,वो उनसे अपना बचाव कर रहा था किन्तु वो बारीक़ लाल -काले कीड़े उसकी तरफ बढ़ते जा रहे थे ,उसकी अचानक से चीख़ निकल गयी।
तभी बाहर से दोेड़ता हुआ ,दूसरा मजदूर आता है ,क्या हुआ ?उसने देखा ,सारे घर में पानी भरा है और वो डर के कारण ,आँखें मीचे चिल्ला रहा है ,बचाओ....... बचाओ......
क्या हुआ ,तुम क्यों चिल्ला रहे हो ?न ही खुद काम करते हो ,न ही करने देते हो और अभी तक कुछ भी काम नहीं हुआ। पहला मजदूर,आँखें मीचे बोला -ये कीड़े मेरे ऊपर चढ़े जा रहे हैं ,मुझे बचाओ !
कौन से कीड़े ?यहाँ तो कहीं भी कीड़े नहीं हैं ,पहले ने आँखें खोलकर देखा तो सब ठीक था ,बस थोड़ा पानी फैला था। वो बोला -अभी यहाँ लाल -काले कीड़े भी थे और पानी भी बढ़ता जा रहा था।
अब तो कुछ नहीं है ,चलो !मेरा बाहर का कार्य लगभग समाप्त होने ही वाला है ,मैं तुम्हारी सहायता करता हूँ। तभी पहले मजदूर ने पूछा -तुम्हारे माथे पर ये तिलक कहाँ से आया ?
ओह !ये तो मैं मंदिर की सफाई कर रहा था ,तभी देवी माँ का ये सिंदूर लगा लिया।
क्या दोनों मजदूर उस घर की सफाई कर सके, उस घर में वो लाल कीड़े कहाँ से आ गए? क्या ऋचा उस घर में रहने आई? जानने के लिए पढ़िये- अगला भाग - बेचारी