अभी तक आपने पढ़ा -कादम्बिनी ,अपने गांव के लोगों से नाराज है ,उन्हें सबक सिखाने के लिए ,अपने ही गांव की बच्चियों को अगवा करती है और एक तांत्रिक की सहायता से , अपनी शक्तियां बढ़ाने के लिए ,उन बच्चियों की बलि की योजना बनाती है। इस योजना को ,सार्थक करते हुए ,उसी गांव का एक व्यक्ति ,देख लेता है और वो कादम्बिनी का पीछा करते हुए ,उसी स्थान पर पहुंच भी जाता है, जिधर वो बच्चियां कैद थीं। वो सब कुछ अपनी आँखों से देख रहा था ,किन्तु कुछ समझ नहीं आ रहा था- कि कैसे इन बच्चियों को बचाये ?
अब तो रात्रि भी हो गयी थी और बच्चियों की संख्या भी पूर्ण हो गयी थी ,उसने अपनी तरफ से प्रयास तो किया किन्तु उसमें कहाँ तक सफल हो पाता है ?अब आगे -
उसने देखा कि उन बच्चियों को ,पहले दूध में नहलाया गया ,उसके पश्चात ,उनके मस्तक पर लाल सिंदूर लगाया गया। जब कादम्बिनी और वो तांत्रिक पूजा कर ,हवन सामग्री डाल रहे थे ,तभी बहुत सारा धुंआ ,उस गुफा में फैल गया ,तभी ऋचा ने एक तेज चाकू से कादम्बिनी पर प्रहार किया। इससे पहले की कोई समझ पाता।प्रहार इतना तीव्र था ,कि कादम्बिनी उसी स्थान से पीछे की तरफ लुढ़क गयी।अभी भी ,ऋचा उसे नफ़रत भरी निगाहों से घूर रही थी। कादम्बिनी ने ,उस तांत्रिक की तरफ देखा -वो खड़ा होकर हँस रहा था ,वो बोला -तुमने क्या मुझे मूर्ख समझा था ?तुम तो मेरी शक्तियों को बढ़ाने का माध्यम थीं ,तुम्हारी नफ़रत मेरे काम आई अब इन बच्चियों की बलि देकर ,असंख्य शक्तियों का मालिक बन जाऊंगा।
कादम्बिनी ने उसे घृणा भरी नजरों से देखा ,और टूटे हुए शब्दों में बोली -तू......म......ने मु......झे...... धो.....खा दि ..या......
उसके शब्दों को समझकर ,तांत्रिक बोला -तुम, क्या दूध की धूली हो ?तुमने तो अपने पति और गांववालों को भी नहीं छोड़ा।
छोडूंगी... तो.. तुम्हें भी.... नहीं.... ऐसी हालत में भी ,उसके चेहरे पर क्रोध था।
तभी ,उस तांत्रिक को किसी ने पीछे से आकर पकड़ लिया ,जिसे देखकर कादम्बिनी के चेहरे पर भी ,प्रसन्नता आ गयी और बोली -इसे... छो.. ड़... ना.... नहीं.......
उसने उस तांत्रिक को ,एक मजबूत सी रस्सी से बांध दिया और उस' हवन कुंड ' में वहीं रखा जल उड़ेल दिया। उस हवन कुंड की अग्नि के बुझते ही ,सभी बच्चियां सामान्य व्यवहार करने लगीं ,कुछ रोने भी लगीं। उसने उन सभी को शांत होने के लिए कहा और उन्हें उसी रास्ते से वापस भेजने का प्रयत्न करने लगा।
वो तांत्रिक उसे भद्दी -भद्दी गालियाँ दे रहा था ,किन्तु उसने उस ओर ध्यान न देकर ,कादम्बिनी की तरफ गया और उसके ऊपर झुका और बोला -तुम सजा मिलने पर भी नहीं सुधरीं। मैंने सोचा था -दण्ड मिलने पर तुम सुधर जाओगी ,तब हम फिर से अपनी ज़िंदगी आरम्भ करेंगे , किन्तु तुमने ज़िंदगी को नहीं मौत को ही चुना। अब सबसे पहले इन बच्चियों को ,मैं उनके माता -पिता के हवाले करूंगा। तुमने जो भी अपराध किये ,शायद उनका बोझ कुछ कम हो जाये।
बच्चियां छोटी भी थीं किसी को गोद में उठाकर किसी को कंधे पर बिठा लिया ,ऋचा को समझाया और वो भी बच्चियों का हाथ पकड़कर चल दी। हालाँकि उन्हें बड़ी परेशानी हो रही थी किन्तु वो जल्दी से जल्दी यहाँ से निकलना चाह रहा था। जैसे ही ,वो सुरंग के मुहाने पर पहुंचा ,उसने पत्थर को नीचे लाने तरीका ढूंढा और जब वो ऊपर पहुंचा तब उसने देखा -बहुत सारे लोग वहां ,पहले से ही उपस्थित थे।उसे देखते ही एक साथ बोले -भुवन... !
पहले तो उन लोगों ने समझा -ये ही बच्चियां चुराता होगा और बिना सोचे समझे उसे मारने दौड़े ,हम न कहते थे ,ये अपनी पत्नी से मिला हुआ है।तब भुवन ने अपनी सच्चाई को ,बतलाने के लिए ,बच्चियों की तरफ इशारा किया और बताया -कि वो इन्हें उस तांत्रिक के चंगुल से छुड़ाकर लाया है। उन लोगों में ,कुछ प्रधान जी के लठैत भी थे जो उनकी पोती के खो जाने पर ,उसकी खोज कर रहे थे।तब एक व्यक्ति ,उन सभी बच्चियों को लेकर जाता है।
भुवन ने पूछा -तुम लोग यहाँ कैसे ?
तब उस भीड़ में से ,एक ने बताया ,जंगल के दूसरे छोर से ,बहुत धुंआ उठ रहा था। हम लोग परेशान थे कहीं जंगल में आग तो नहीं लग गयी। तभी हमें कादम्बिनी की झोपड़ी दिखी ,हमने सोचा -उसे भी बतला देते हैं , कि जंगल में आग लग गयी है ,अपना ख़्याल रखे तो देखा -झोपडी ख़ाली थी। हम लोग उसे ही ढूँढ रहे थे ,तभी तुम आ गए।
भुवन बोला -वो आग मैंने ही लगाई थी ,वो जंगल में नहीं ,पत्तों के ढेर में लगी थी ,तुम लोगों को अपना संदेश देने के लिए ,क्योंकि मैं समझ नहीं पा रहा था कि बच्चियों को कैसे बचा पाउँगा ?आओ ,चलो !तुम्हें जंगल के दूसरे छोर तक पहुंचने का रास्ता दिखाता हूँ। सभी लोग भुवन के संग उस सुरंग में उतर गए और शीघ्र ही उसके अंतिम छोर पर जा पहुंचे। वहां तांत्रिक एक शिला से बंधा था। पूजन सामग्री भी रखी थी और उसी स्थान पर ,कादम्बिनी की लाश भी पड़ी थी। भुवन तो उसी के लिए यहां दोबारा आया था ताकि उसे बचा सके ,शायद उसके आने में देरी हो गयी।
कुछ लोग देखते ही बोले -ओह... !तो ये भी इसी तांत्रिक से मिली हुई थी ,हम न कहते थे ,कि ये ही लड़कियों को गायब कर रही थी। उन्हें आश्चर्य हो रहा था - कि इतनी लम्बी सुरंग बनी है और हमें 'कानों -कान भी खबर नहीं हुई। ''गांववालों ने उस तांत्रिक को बहुत पीटा और कादम्बिनी की लाश को उठाकर, उसी अग्नि के हवाले कर दिया जिसे भुवन ने गांववालों को संदेश देने के लिए जलाया था।
अब तक तो दिन भी निकल आया था ,गांववालों को इतना क्रोध था ,उन्होंने कादम्बिनी की झोपड़ी को भी अग्नि के हवाले कर दिया। प्रधान जी के सामने जब उस तांत्रिक को लाया गया तब उसे जिन्दा ही अग्नि के हवाले कर दिया। उसकी चीखों ने ,सम्पूर्ण गांव को हिलाकर रख दिया। किन्तु आज गांव वालों के मन में शांति थी ,कुछ समय पश्चात गांव में भी शांति हो गयी।
अब ऋचा को अपने सभी सवालों के जबाब मिल चुके थे।ऋचा बोली -उस समय तो मुझे कुछ भी स्मरण नहीं रहा होगा।
'हाँ 'क्योंकि तुम उस समय ,उस तांत्रिक के सम्मोहन में थीं ,वरना इतनी छोटी बच्ची ,एक व्यस्क महिला को मारने का साहस नहीं कर सकती। न ही उसमें इतनी शक्ति होती है। ''भैरों बाबा ''ने बतलाया। तुम्हारा वो पंडित भी ,वो ही तांत्रिक था जिससे कादम्बिनी ने अपना बदला ले लिया।
उनकी बात सुनकर दोनों बाप -बेटी एक -दूसरे की तरफ देखने लगे।
क्या ऐसा हो सकता है, पिछले जन्म के दुश्मन, इस जन्म में भी किसी न किसी रूप में मिले और अपना बदला भी ले लें। ऋचा यही सब सोच रही थी, आप क्या सोचते हैं ? बटाइयेगा जरूर और पढ़ते रहिये - बेचारी