अभी तक'' बेचारी '' में आपने पढ़ा -ऋचा किसी दूसरे शहर में ,नौकरी करने आती है और ''देवीलाल जी ''जो एक ''प्रॉपर्टी डीलर ''हैं ,उनसे ऋचा सम्पर्क करती है और वो उसे वही मकान दिलवा देते हैं , जिसमें कोई रहना नहीं चाहता ,जो रहा भी है ,तो रातों -रात भाग जाता है। किन्तु ऋचा , रातभर उस मकान में रहती है और भागती भी नहीं ,उसके पिता का प्रातः काल ही ,फोन आता है ,जिससे लगता है - कि उसे इस घर के विषय में पहले ही मालूम था। उसी समय पर ''देवीलाल जी देखने आते हैं -कि लड़की यहीं है या भाग गयी। ऋचा को वहीं देखकर ,उन्हें आश्चर्य होता है कि ये लड़की अभी तक यहीं है ,शरारत में ऋचा ,उनसे कहती भी है -अंदर आ जाइये किन्तु देवीलाल जी बाहर से ही ,चले जाते हैं ,उनकी हिम्मत नहीं होती कि उस घर में जाएँ। इस सबके पश्चात वो ,अपने दफ्तर चली जाती है। अब आगे -
उस घर में जो आत्मा थी ,वो परेशान और क्रोधित होती है, कि ये लड़की मुझसे क्यों नहीं डरी ? आज तक ऐसा नहीं हुआ ,मेरे सामने कोई भी टिक पाया हो और उसे कैसे पता चला ? कि मैं उस कमरे में नहीं जा सकती। आज तो मैं उसको छोडूंगी नहीं। आज उसे मैं ,अपना नया रूप दिखाकर ही रहूँगी। उसने'' नितिका ''का असली रूप नहीं देखा।आज तक मैंने ,जो भी चाहा ,वही पाया है।वो अपनी शक्तियाँ बढ़ाने अपने स्थान पर चली जाती है।तमतमाई वो नितिका रूपी आत्मा वहाँ से प्रस्थान करती है।
सुबह से गयी ऋचा, अपने दफ्तर के कार्यों में व्यस्त हो जाती है, उसे स्मरण ही नहीं रहता कि सम्पूर्ण रात्रि, उसकी कैसी बीती ? या आगे भी बाधाएँ पैदा हो सकती हैं, इन सबसे बेखबर वो, मन लगाकर अपना कार्य करती है। शाम को ही उसे एहसास होता है कि अब उसे घर भी जाना है ।दिनभर की थकान के पश्चात् वो आराम करने का सोच रही थी। अब घर जैसा भी अस्तव्यस्त है किंतु अपने लेटने के लिए, तो उसने जगह बना ही ली है। अब उसके कदम तेजी से अपने घर की ओर बढ़ रहे थे।
शाम को जब ऋचा ,घर का दरवाजा खोलती है ,तो आश्चर्य चकित रह जाती है ।घर में पैर रखने की भी जगह नहीं थी। सम्पूर्ण फ़र्श छोटे -छोटे कीड़ों से अटा पड़ा था। उन कीडों के ऊपर एक खोल सा बना था और उनके चलने पर ,पीछे से एक लसलसा सा पदार्थ छोड़ रहे थे। ऋचा नहीं जानती थी ,कि ये कीड़े काटते हैं या इनके काटने से क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं ?वो ये भी समझ रही थी कि ये सब उसे भगाने और डराने के लिए ,उस आत्मा का ही काम है। इसी तरह बाहर खड़ी होकर ,सोचती रही ,तभी कुछ सोचकर बाहर के सूखे पौधों से एक लम्बी सी टहनी तोड़ी उसे तोड़ते ही वो ड़र के कारण पीछे हट गयी। जैसे ही ,उसने उस पेड़ की टहनी को तोडा ,बड़ी तेज चीख़ निकली। जैसे किसी व्यक्ति का कोई अंग विक्षिप्त हुआ हो ,वो डरकर पीछे हट गयी। वो सोचने लगी ,इन सूखे पेड़ पौधों में भी कुछ रहस्य है। वो उस टहनी को लेकर अंदर गयी और उसके पत्तों से उन कीड़ों को हटाकर , अपने चलने के लिए स्थान बनाया।
वो स्थान तो बन गया किन्तु उस जगह पर ,वो लिसलिसा पदार्थ उसके जूतों में चिपक गया, उससे उसे बड़ी ही घिन्न आ रही थी ,एक अजीब सी दुर्गन्ध उस घर में भर गयी थी। जिसके कारण सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था।उस समय कोई और होता तो देखकर ही बेहोश हो जाता किन्तु ऋचा ने रसोईघर तक पहुंचने के लिए स्थान बनाया। वहां पहुंचकर उसने ,एक सफेद पदार्थ निकाला और पानी में घोला और उन कीड़ों के ऊपर फेंका , फेंकते ही वे कीड़े बिलबिलाने लगे और मरने लगे ,अब उसने बहुत सारा पानी बनाया और जहाँ तक वो जा सकती थी उसी स्थान को धो डाला।
जब वो स्नानागार में गयी ,तो एकाएक पानी बंद हो गया। ऋचा के मुँह पर साबुन लगा था ,अब क्या करे ?मन ही मन बुदबुदाई -आज इस चुड़ैल ने मुझे परेशान करने का मन बना ही लिया है। वो लगभग चीख़ते हुए ,बोली -तुम कौन हो ,क्या चाहती हो ? छुपकर इस तरह वार करने से क्या होगा ?उसकी आँखों में साबुन जलन कर रही थी। तभी बड़ी तेज हंसी की आवाज आई और पानी भी बहुत तेजी से बहने लगा। ऋचा ने जल्दी से मुँह धोया ,और अभी वो मुँह पोँछ ही रही थी, तभी एक भयावनी शक्ल शीशे में उभरी ,उसके स्थान पर किसी और का चेहरा उसे नजर आया। उसके बाल बिखरे हुए और उसकी आँखों के कंचे चमक रहे थे और गंदे बड़े -बड़े दाँत थे। अचानक इतना डरावना चेहरा देखकर ,ऋचा भी ड़र गयी और बाहर की तरफ भागी।
आज उसने पहली बार ,ऐसा कोई डरावना चेहरा देखा था। वो अंदर तक काँप गयी ,उसके डरने के कारण, उस भूतनी के मन को सुकून मिला ,अट्टाहस करके हंस रही थी । उसके उस स्वर से सारा घर गूँज रहा था। जैसा उसने सोचा था -ऐसा कुछ नहीं था ,जहाँ -जहाँ वो चलकर जा रही थी ,वहीं -वहीं छत पर ,किसी के खिसटने की आवाज आ रही थी। ऋचा की तो जैसे भूख ही समाप्त हो गयी ,अब वो रसोई घर से पानी लेकर ,उसी कमरे में जाना चाहती थी क्योंकि दहशत के कारण ,उसका गला सूख़ गया था। पहली बार उसने इतनी भयानक शक्ल जै देखी थी। जैसे -जैसे वह आगे बढ़ रही थी , कोई लग रहा था, कोई उसके साथ था। किन्तु जैसे ही ,रसोई में कदम रखे ,वो आहट सुनाई देनी और महसूस होनी बंद हो गयी। वहां उसने अपने को सुरक्षित महसूस किया ,आज तो वो मंदिर की ज्योत भी नहीं जला सकी। थोड़ा सुकून मिलते ही, उसे भूख का भी एहसास होने लगा ,उसने जल्दी से अपने लिए पोहा बनाया और छत के उस कमरे में जाने की तैयारी करने लगी। तभी एकदम से उसका फोन बज उठा ,वो आज इतनी डरी हुई थी कि फ़ोन की आवाज़ से ही ड़र गयी। इस सुनसान घर में ,अचानक फोन इतनी तेजी से बजा ,वो ही क्या ?कोई और भी होता तो ड़र ही जाता। न जाने किसका फोन आ गया? यह देखने का समय नहीं है पहले अपने कमरे में जाती हूँ तब इत्मिनान से बातें करूँगी कल तो जैसे - तेसै रात्रि व्यतीत हुई किंतु आज शायद मुश्किल हो सकती है। लोग सही कहते हैं, ऐसे हालातों में तो हर कोई भाग जायेगा।
इतनी रात्रि को अचानक किसका फोन आ गया? पिछली रात्रि को इस घर में, कौन बुजुर्ग दम्पत्ति आये थे और क्यो रो रहे थे और सुबह होते ही कहाँ गये? क्या उनका इस घर से कोई नाता है ? जानने के लिए पढ़िये - बेचारी भाग ८