अभी तक आपने पढ़ा ,''प्रदीप की आत्मा ''अपनी पत्नी सुलेखा से मिलने आती है और सुलेखा से अपने प्रश्नों के जबाब चाहती है। किन्तु सुलेखा भी, सच्चाई को ,आसानी से स्वीकार नहीं ,करती है। बहुत दिनों ,बाद बच्चों को भी पता चलता है -कि उनके पिता नहीं रहे और ये खुलासा भी शीघ्र ही हो जाता है कि उनकी माँ ने राकेश से विवाह कर लिया है। रात्रि में ,उन दोनों को साथ देखकर ,प्रदीप को क्रोध तो बहुत आता है और अँधेरे में पहले तो सुलेखा को ,राकेश का मृत शरीर दिखता है ,कुछ ही देर पश्चात ,उसे प्रदीप की मृत देह अपने नजदीक मिलती है ,वो डरकर बाहर भागती है ,तभी किसी चीज में उलझ जाती है और ड़र के कारण अचेत हो जाती है।
सुबह बच्चे अपनी माँ को इस तरह ,अचेत अवस्था में देखते हैं उसे उठाते हैं ,बिस्तर पर लिटाते हैं। मुँह पर पानी के छींटों से ,उसे होश में लाते हैं। राकेश भी घर में कहीं नहीं था।
मम्मी ,ये आपको क्या हुआ ?आपने अपनी क्या हालत बना रखी है ,और वो अंकल कहाँ गए ?बेटे ने प्रश्न किया।
क्या ?वो यहाँ नहीं है ,शायद तुम्हारे'' पापा की आत्मा ''ने उसे मार तो नहीं दिया।
ये आप क्या बेतुकी बातें कर रहीं हैं ?भला वो क्यों ऐसा करने लगे ?इतने वर्षों से तो आये नहीं ,अब अचानक कैसे आ गए ,और वो हमसे क्यों नहीं मिलते ?आपको ही क्यों दीखते हैं ?
बेटे के इस प्रश्न ,पर सुलेखा ने चुप्पी साध ली ,वो कैसे कहे ,कि या तो वो बदला लेने आया है या फिर मुझे डराना चाहता है। बेटे के इन प्रश्नों ने उसे, कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया और वो मन ही मन कुछ निश्चय लेती है। उसके पश्चात वो सोचती है -ये राकेश ...... किधर गया ? मुसीबत में ,छोड़ भाग गया। तभी मन में प्रश्न कौंधा ,कहीं प्रदीप ने ही तो कुछ...... सोचकर वो सिहर उठी। इतना दुःख तो उसे ,प्रदीप के मरने का भी नहीं हुआ था, जितना उसे राकेश के खो जाने या फिर प्रदीप द्वारा हानि पहुंचाने की सोचकर हो रहा था। किसी तरह दिन बीता।
रात्रि में ,कुछ देर तक तो ,वो आज स्वयं ही ,प्रदीप की प्रतीक्षा करती रही। न जाने कब उसे नींद आ गयी ?तभी उसे आवाज़ आई ,सुलेखा.... सुलेखा.... तुमने मेरे साथ ,ऐसा क्यों किया ?
आज वो डरी नहीं ,और बोली -मैंने क्या किया ?
क्या बात है ?तुमने मुझे मार दिया और कहती हो - मैंने क्या किया ?
मैंने तुम्हें नहीं मारा ,मैंने तो तुम्हें मुक्ति दी ,मारा तो तुम्हें उस नर्स ने था।
उसने मारा था..... फिर भी, मैं ज़िंदा था ,तुमसे मुझे उंम्मीद थी कि तुम मुझे ,ठीक कराओगी ,मेरी चिकित्सा कराओगी किन्तु तुमने ऐसा कुछ भी नहीं किया। मैंने सोचा था -तुम मेरे लिए ही आई हो ,किन्तु तुमको तो मुझसे छुटकारा ,पाने का बहाना मिल गया। तुमने मुझे ,मारकर मेरे घर में ही मेरी ,कब्र खोद दी। और यहाँ राकेश के संग मेरे ही घर में मेरे बच्चों से झूठ बोलकर ,रह रही हो। ''नितिका ''ने हमें धोखा दिया ,वो बाहर वाली कोई अनजान थीं, किन्तु तुम तो इसी घर की थीं ,हमारी अपनी थीं। तेजी से हंसने लगा। अपनी माँ के कमरे से अज़ीब सी आवाजें सुनकर ,तब तक बच्चे भी आ गए थे।
उनकी माँ किसी से कह रही थी -हाँ ,मैने तुझे मारा ,जब राकेश मेरे लिए कुछ करता तो तुम्हें बर्दाश्त नहीं हुआ ,मैंने तुम्हारे लिए अपना काम भी छोड़ दिया।
काम छोड़ दिया !!!!!झूठी किन्तु उससे मिलना नहीं छोड़ा ,जिसकी वो कीमत चुकाता था। ह्म्म्मम्म ह्म्म्मम्म करके उसने अपना क्रोध दिखाया।
तब तुमने भी तो , मुझे वेश्या कहकर गाली दी।
और क्या कहता ?सारे मौहल्ले के लोग ,मुझ पर हँसते थे ,व्यंग्य करते थे ,तुम्हारा पति मैं था कि वो....... जीते जी तो तुम्हें लज्जा नहीं आई ,मरने के पश्चात भी ,वो ही कर्म मेरे बच्चों के सामने कर रही है।
तभी कमरा रौशनी से भर गया ,उस रौशनी में ,सब कुछ साफ हो गया। दोनों बच्चे ,खड़े अपनी माँ का असली चेहरा देख रहे थे। जिससे उनकी माँ बात कर रही थी- वो राकेश के अंदर ,उनके पिता 'प्रदीप की आत्मा 'थी जो अपने ही दुश्मन द्वारा ,अपने प्रश्नों के जबाब सुनकर ,शायद चला गया था।इस समय ,राकेश निढाल बेसुध पड़ा था। वो यहाँ ,कैसे ?ये सब अचम्भित करने वाली बात थी। कल अचानक कहाँ गया ?ये भी किसी को पता नहीं था -किन्तु बच्चों को अपने पिता के क़ातिल का अवश्य पता चल गया था।दोनों बच्चों का मन अपनी माँ के प्रति घृणा से भर गया। तुमने हमारे पिता को ही मार डाला ,बेटे ने प्रश्न किया।
कुछ समय पश्चात ,बेटे ने पुलिस को फोन कर दिया। सुलेखा अपने ,जुर्म को क़बूल करने के पश्चात ,अपने बच्चों से नजरें नहीं मिला सकी। कुछ देर बाद पुलिस आ गयी और दोनों पति -पत्नी को लेकर गयी। आज प्रदीप की आत्मा शांत थी। इस औरत ने जीते जी,तो मुझे धोखा दिया और मेरे मरने के बाद भी ,बच्चों को भी धोखा दे रही थी।
प्रदीप ने अपने बच्चों को देखा ,अब बच्चे इतने छोटे भी नहीं रहे ,अनाथ तो हो गए ,किन्तु शीघ्र ही सम्भल भी जायेंगे। यही सोचकर ,उसने अपने बच्चों को आशीर्वाद दिया ,और वो अपना वचन पूर्ण करने बाबा के पास आ गया। किन्तु वो यहाँ क्या देखता है ?बाबा और वो लड़की ऋचा तो बहुत ही परेशान हैं। उनकी बातों से उसे समझ आया -कि कोई हाइवे है ,जहाँ पर लोग मर रहे हैं। कभी कोई दुर्घटना हो जाती है ,कभी कोई आत्महत्या कर लेता है। उनके शव देखकर लगता है -जैसे कोई लोगों की ज़िंदगियों से खेल रहा है।
पुलिस भी ,कारण ढूंढ़ -ढूंढकर ,परेशान हो रही है ,किन्तु कुछ पता नहीं चल रहा ,ये दुर्घटनाएँ क्यों हो रही हैं ?हो भी रहीं हैं तब इनके शवों की ऐसी हालत कौन कर रहा है ?किसी ने ,जानने का प्रयत्न भी किया तो बताने के लिए ,वही जिन्दा नहीं बचा।
उस हाइवे पर ,ये हादसे ,क्यों और कैसे हो रहे हैं ? कौन उन शवों की दुर्दशा कर रहा है ?क्या बाबा इस बात का पता लगाएंगे या कोई पुलिसवाला ,इन अपराधों का दोषी कौन है ?जानने के लिए पढ़ते रहिये -बेचारी के चालीस भाग पूर्ण हो गए क्या ये कहानी आप लोगों को पसंद नहीं आ रही ,यदि आ रही है तो अपना समर्थन दीजिये ,मुझे फॉलो करके अथवा सब्सक्राइब भी कर सकते हैं।