अभी तक आपने पढ़ा ,ऋचा को पता चल जाता है ,इस घर में जो'' नितिका ''नाम की आत्मा निवास करती है वो और कोई नहीं ,उसकी अपनी माँ ही है। पिता से पूछने पर कि माँ की मौत कैसे हुई ?जिसका वो जबाब नहीं दे पाते। अपनी घबराहट को दूर कर ,जैसे ही वो अपने घर के नजदीक पहुंचती है ,उसे एक कणिका नाम की लड़की मिलती है। वो उसे बताती है -मुझे इस घर में किराये पर रहना है ,किन्तु ऋचा को शीघ्र ही उसकी असलियत का पता चल जाता है और वो सतर्क हो जाती है। आज रात्रि को उसे उस घर में जो दो बुजुर्गों की आत्मा दिखती थी ,वो भी दिखी और उन्होंने कुछ इशारे से उसे समझना चाहा किन्तु ऋचा बुरी तरह ड़र चुकी थी। अब तो उसे अपने कमरे से बाहर निकलते हुए भी ड़र लग रहा था। अब आगे -
सम्पूर्ण रात्रि ऋचा ने जागते काटी ,उस स्वप्न के पश्चात उसे नीद ही नहीं आई। सुबह उसे अपने कमरे से बाहर निकलते हुए ,ड़र लग रहा था। वो जानती थी ,उसके पास गुरूजी का दिया 'रक्षा कवच 'है फिर भी एक अनजाना सा भय उसके अंदर समा गया था। बाहर तो आना ही था वो बाहर आई और ये देखने के लिए कि अब कणिका क्या कर रही है ?उसने सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए आवाज़ लगाई -कणिका...... कणिका...
उसे कोई उत्तर नहीं मिला ,तभी उसे स्मरण हुआ ,वो कणिका नहीं एक छलावा थी जो अपना रूप बदलकर मुझे छलने आई थी। अब दिन निकला है ,अब वो नहीं दिखेगी। अब साहस करके ,वो अपने कार्य करती है क्योंकि उसे विश्वास है कि अब कोई हरकत नहीं होगी। तभी उसे उस कमरे का स्मरण होता है फिर भी वो वहां नहीं जाती ,उसकी अकेली की हिम्मत नहीं हो रही थी। प्रतिदिन की तरह उसके पापा का फोन आता है।
कैसी हो मालिनी बेटा ?
पापा !ये आपने मुझे कहाँ फंसा दिया ?अब मुझे यहाँ रहते हुए बहुत ड़र लग रहा है। यह कहकर उसने रात्रि की सम्पूर्ण घटनाएं उन्हें बता दीं।ऋचा की बातें सुनकर भी वो चुप रहे और बोले -
आज मैं गुरूजी से मिलता हूँ और उनसे बात करता हूँ ,मुझे लगता है -वे दोनों आत्माएँ तुम्हारी सहायता करना चाहती हैं किन्तु ये छल भी हो सकता है ,अभी तुम कुछ भी कदम मत उठाना।
पापा से बात करके ,वो दीक्षित परिवार से मिलने जाती है ,वहां जाकर देखती है जो उसने सिंदूर से उनके लिए रक्षा कवच बनाया था वो तो वहां नहीं था। किसी अनिष्ट की आशंका से ,वो घर की ओर दौड़ती है। किन्तु दरवाजे बंद थे। अब वो क्या करे ?उसने एक पड़ोसी से पूछा भी वो कुछ नहीं बता सके। ऋचा दौड़ती हुई पास के मंदिर में पहुंची और पंडित जी को दरवाजा न खुलने की बात बताई और कुछ ऊपरी हवा का भी ,उन्हें संकेत दिया।
उसकी बात सुनकर पंडितजी ने ,उसे हनुमान जी का सिंदूर देते हुए कहा -ये सिंदूर उस दरवाज़े पर लगा देना और ये देवी माँ की चुनरी अपने मस्तक पर बांध लो ताकि वो तुम्हें भी कोई हानि न पहुंचा सके। वो सिंदूर लेकर उस घर के दरवाजे पर लगा देती है और दरवाज़ा खुल जाता है। वे दोनों पति -पत्नी उसे नहीं दिखे। तब उसने उन्हें अन्य कमरों में ढूंढा ,तब मंदिर वाले कमरे में उसने उन्हें डरे सहमे सुरक्षित पाया।
ऋचा ने उन्हें उठाया ,और उनकी इस हालत का कारण जानना चाहा जबकि वो तो सिंदूर रेखा बनाकर गयी थी। तब उन्होंने बताया -जब सफाई वाली आई थी ,तब हमने उसे उस रेखा को छेड़ने से मना किया था। पहले तो वो चुपचाप काम करती रही ,उससे थोड़ा हल्का सा वो सिंदूर हट गया और पता नहीं उसे अचानक क्या हुआ ?वो तो बड़ी तेजी से कार्य करने लगी और सम्पूर्ण रेखा मिटा दी। हमने उससे पूछा -ये तूने क्या किया ?उसकी तो आँखें जैसे अंगारे उगलने लगीं और बोली -तू मुझसे पूछेगी ,मैंने क्या किया ?मैं अपनी मर्जी की मालिक हूँ ,मेरा जो मन करेगा वही करूंगी। तुम्हारा काम करती हूँ ,तो क्या तुम्हारी गुलाम हो गयी ?
ऋचा ने पूछा -फिर क्या हुआ ?
हम समझ गए ,ये सब उस रेखा के हट जाने के कारण हुआ है ,तब हम दोनों इस कमरे में आ गए ,उसके पश्चात उसने क्या किया और कहाँ गयी ?हमें कुछ नहीं मालूम !
अब आप चिंतित न होइए ,अब मैं आ गयी हूँ।
तुमसे ही तो मिले हैं ,तभी से ये परेशानी हमें उठानी पड़ रही है ,इससे पहले तो कुछ नहीं हुआ था। अब तुम जाओ ! और अब यहां कभी मत आना !वे क्रोधित होते हुए बोलीं। तुम्हारे अंकल की क्या हालत हो गयी ?अब वो हमारे पीछे पड़ी है ,मैंने पहले ही इंकार किया था किन्तु तुमने हमारा पीछा नहीं छोड़ा।
उन्हें इस तरह क्रोधित देखकर ,ऋचा बोली -आंटी ,मैं आपकी परेशानी समझ सकती हूँ किन्तु मैं भी क्या करूँ ?मुझे भी उस परिवार और उस घर की परेशानियों को दूर करने के लिए ,उस घर की असलियत तो किसी न किसी से पूछनी ही थी। आप तो बस ये समझिये ,ये नेक कार्य आप लोगों के हाथों होना था तभी आप लोग मुझे मिले।
इसमें क्या नेक कार्य है ?जब हम ही नहीं रहेंगे ,तो क्या ख़ाक नेक कार्य कर पायेंगे ? अब तुम ऐसा करो अब यहाँ से चली जाओ !अब हम तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर पाएंगे। उन्होंने उसे बाहर का रास्ता दिखाया।
ऋचा को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे ,क्या न करे ?तभी बोली -आंटी...... यहां तो मैं आप लोगों के सिवा किसी को नहीं जानती ,अब आप लोग ही ऐसा करेंगे ,तब मैं कैसे किसी से ,सहायता की उम्मीद कर सकती हूँ।
जितना हम जानते थे ,हमने बता दिया अब और नहीं।
ऋचा मायूस सी बैठी रही ,सोच रही थी -इन लोगों से जो भी जानकारी मिली ,मुझे तो आज तक मालूम ही नहीं था ,कि मेरी माँ का नाम क्या था ?पिता को तो परेशान देखकर कभी पूछा ही नहीं किन्तु जब दोस्तों की मम्मी देखीं तब अपनी माँ के विषय में पूछा ,तब उन्होंने बताया कि अब वो इस दुनिया में नहीं है। किन्तु मेरी माँ केेसी थी ?इसकी जानकारी तो इन लोगों, से ही मिली और अब उनकी मृत्यु कैसे हुई ?वो भी तो पता लगाना होगा। उस घर के वे बुजुर्ग अभी तो ,उनके विषय में भी कुछ नहीं मालूम। इतना सब सोचते ही उसने निर्णय लिया वो यहाँ से सम्पूर्ण जानकारी लिए बगैर कहीं नहीं जाएगी।
आंटी जी ,इस तरह नाराज न होइए ,मैं मानती हूँ कि मेरे कारण आपको परेशानियों का सामना करना पड़ा किन्तु आप लोगो के ही कारण ही ,मुझे मेरी माँ मिली ,उनका पता चल पाया। इस तरह क्या मालूम आपके ही कारण ,मैं इन उलझी हुई पहेलियों को सुलझाने में क़ामयाब हो सकूं।
वो बोलते जा रही थी अब वो दोनों उसका चेहरा देखने लगे ,उन्हें इस तरह देखते ,देखकर ऋचा बोली -कृपया आंटी जी ,आप मुझे और भी जानकारी देंगी तो आपकी मेहरबानी होगी। वे लोग फिर भी उसे उसी तरह देखे जा रहे थे। उन्हें इस तरह देखते, देखकर ऋचा बोली -आप मुझे इस तरह क्यों देख रहे हैं ?
वे बोलीं -कौन हो तुम ?
मैं........ मैं ऋचा !
नहीं ,तुम अभी कुछ कह रही थीं ,मुझे तुम लोगों के कारण ही, मेरी माँ मुझे मिली ,तुम्हारी माँ कौन है ?उन्होंने संदेह से पूछा।
तब ऋचा को एहसास हुआ कि जोश में ,उसने न जाने क्या कह दिया ?कह दिया सो कह दिया ,अब तो बताना ही होगा।
क्या ऋचा उन्हें सच्चाई बता पायेगी, उसकी सच्चाई जानकर दीक्षित परिवार क्या करेगा? आगे उसकी सहायता करेंगे या नही या उस आत्मा के डर से उसे भगा देंगे जानना है तो पढ़ते रहिये - बेचारी