अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा और उसके पापा ,उस आत्मा से बचते हुए ,एक मंदिर में शरण लेते हैं ,तब वहाँ के पंडित जी से बताते हैं - कि उस आत्मा ने पता नहीं कैसे ,हमारे साथ आये पंडितजी को मारा ? तब पंडितजी उन्हें मंदिर में तो नहीं ,अपने घर में शरण देते हैं ,एक बार को तो ,वो उन पंडित जी पर भी अपना प्रभाव दिखा देती है किन्तु वे शीघ्र ही ,उसके छल से बाहर आ जाते हैं ,और प्रातः काल की पूजा में उन्हें बताते हैं कि किस तरह जल मार्ग से आकर उस आत्मा ने पंडितजी को मारा और वायु मार्ग से बाहर आ गयी।तब पंडितजी बताते हैं कि वो अपनी मौत का बदला लेना चाहती है ,जब तक वो चौबे दम्पत्ति उसकी कैद में है ,तब तक उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी और वे उन्हें ये भी बता देते हैं कि ''प्रदीप चौबे ''भी अब इस दुनिया में नहीं है। अब आगे -
''प्रदीप चौबे ''इस दुनिया में नहीं ..... कब ,कैसे ?उनकी मौत हुई ,ऋचा के मुँह से निकला।
पंडित जी ,बोले -वो तो एक रहस्य है ,पहले इस परेशानी से तो ,बाहर निकलो !
वो भी आप ही हमारी सहायता कर सकते हैं ,अब आप ही बताइये ,हमें क्या करना होगा ?
देखिये !उसकी शक्तियों के सामने ,मेरी शक्ति अभी इतनी नहीं है ,अभी मैं तुम लोगों को ,एक स्थान पर भेजूंगा। वो व्यक्ति आत्माओं से ही खेलता है। रात -दिन उसका यही कार्य है ,आत्माएं उसके इशारे पर चलती हैं ,चलती ,क्या..... नाचती हैं ,वो ही इससे लड़ सकते और जीत सकते हैं।
वो हमें कहाँ मिलेंगे ?क्या वो हमारी सहायता के लिए ,तैयार होंगे ?उसके पापा ने पूछा।
जी.... मैंने उन्हें संदेश भेज दिया है ,वो यहाँ नहीं रहते ,वो जमीन के अंदर रहते हैं ,वो भी जंगलों के बीच ,उनसे यदि मिलना हो तो ,एक निश्चित स्थान है ,उस स्थान पर ,एक निशान बनाना पड़ता है ,तब वो उसे देखकर ,अपनी शक्तियों से ध्यान लगाते हैं और तब वो निश्चित करते हैं -कि मुझे उस व्यक्ति से मिलना है या नहीं।
क्या वो हमारी सहायता करना चाहेंगे ? उन्होंने इंकार कर दिया तो !उन्होंने शंका जताई ,तब तक हम दोनों बाप -बेटी क्या करेंगे ?
तब तक आप लोग ,यहीं रहिये ,उनका संदेश आते ही ,मैं आपको सूचित कर दूंगा।
अगले दिन दोपहर तक एक व्यक्ति आया और बोला -बाबा ने कहा है -इन लोगों को तुम्हें साथ लाना चाहिए था। जो लोग स्वयं की मदद नहीं करते और न ही स्वयं मेहनत करना चाहते हैं ,मैं उनकी कोई सहायता नहीं करूंगा ,उन्हें अपने संग लेकर आओ !
ख़ैर अब जो हुआ ,सो हुआ , अब तुम लोग इसके साथ ही चले जाओ !और अपना ख्याल रखना।
ऋचा और उसके पापा ,उस व्यक्ति के साथ ,बाहर आते हैं ,वे दोनों ,उसके पीछे -पीछे चलते हुए एक बस में बैठ जाते हैं। लगभग एक घंटे पश्चात ,वो बस से उतरकर पैदल चलते हैं ,पैदल चलते हुए ,वे लोग एक गांव में पहुंचे ,उस गांव में किसी के घर में उन्होंने खाना खाया। खाना खाकर ,वो फिर से चलने लगते हैं ,लगभग आधा घंटे पश्चात ,उन्हें एक जंगल दिखने लगता है। तब तक उन लोगों ने ,उस व्यक्ति से एक भी शब्द नहीं बोला था ,न ही वो बोला। उस जंगल के नजदीक पहुंचने तक, सूरज पश्चिम दिशा में जा चुका था और अपने छिपने की तैयारी कर रहा था। तभी वे लोग ,उस जंगल के अंदर घुसे ,अंदर से वो जंगल और अधिक घना होता गया ,जो थोड़ी बहुत रौशनी थी, यहां तो वो भी नहीं दिख रही थी।
तभी ऋचा के पापा को थोड़ा ड़र भी लगा और बोले -हम सही दिशा में तो जा रहे हैं ,उस व्यक्ति ने ,हाँ में गर्दन हिलाई और एक चट्टान पर कुछ आकृतियां सी बनाई ,तभी उस चट्टान के एक तरफ से ,एक बड़ी सी शिला अपने आप खिसकने लगी। वो लोग उस सुरंग के अंदर प्रवेश कर गए और आगे बढ़ने लगे किन्तु वहां तो कुछ नहीं नजर नहीं आ रहा था।
ऋचा बोली -यहां तो कुछ भी नजर नहीं आ रहा ,अब आगे कैसे और किस दिशा में जाना है ?कैसे जाएँ ?
उसके इतना कहते ही ,वहां दीवार पर लगी मशालें ,एकाएक अपने आप जल उठीं ,उनकी रौशनी में रास्ता अपने आप ही दिखने लगा, बड़ी ही साफ -सुथरी जगह थी किन्तु उस चट्टान के कुछ नुकीले पत्थर अंदर की और थे। ऋचा को ये सब देखकर ,बड़ा अजीब लगा किन्तु शांत रही। वो तीनों नीचे बढ़ते जा रहे थे ,देखने में तो लग रहा था - कि वो आगे बढ़ रहे हैं किन्तु वो तो गहराई की ओर बढ़ते जा रहे थे। एक स्थान पर जाकर वो रुक गए ,तभी एक स्वर गूंजा -बाईं तरफ से अंदर आ जाओ !तभी बाईं तरफ अपने आप दरवाजा बन गया।
अब वो ,उस व्यक्ति के सामने थे ,जो गेरुए कपड़ों में बैठा था ,उसके गले में रुद्राक्षों की माला थी ,उसकी भवें मोटी और आँखें लाल थीं। माथे पर भभूत लगा था ,बालों की जटाएं बनी थीं। त्रिशूल और कमंडल बराबर में ,रखे थे ,सामने हवन कुंड में मध्यम सी अग्नि प्रज्वलित हो रही थी।तभी वो व्यक्ति बोला - भैरों बाबा ! उन्होंने अपनी आँखें खोलीं -और बोले -मैं 'कालभैरव ' का भक्त भैरों बाबा ,अब तुम जा सकते हो।
ऋचा के पापा ने ,जो व्यक्ति साथ आया था ,उसे धन्यवाद कहने के लिए ,जैसे ही अपने बराबर में देखा ,वो व्यक्ति तो वहाँ था ही नहीं। कुछ समझ नहीं आया ,पास में खड़ा व्यक्ति एकाएक कहाँ ग़ायब हो गया ?
भैरों बाबा ,बोले -वो गया , तुम उसकी चिंता न करो ,तुम दोनों सामने बैठ जाओ !उनके बैठते ही भैरो बाबा ने आँखें मूँद लीं और मुस्कुराकर बोले -तुम तो बहादुर बेटी हो ,समझदार भी हो।
एकाएक क्रोधित हो गए ,उनके चेहरे के भाव एकाएक बदल गए ,बोले -माना कि तुमने परेशानी और धोखा देखा है किन्तु तुम भी कम नहीं ,तुम..... हत्यारे..... हो..... कहकर उन्होंने अपने नेत्र खोले और जलती हुई नज़रों से उसे देखने लगे।
उनकी दृष्टि से वो हिल गया और काँपने लगा ,बाबा ,इसमें मेरी गलती नहीं वो तो अचानक हो गया। मेरा उद्देश्य वो नहीं था।
जो भी हुआ ,अपराध तो तुझसे हुआ ही है।
ऋचा आँखें फाड़कर ,उन दोनों की बातें सुन रही थी ,पापा.... और हत्यारे .... ये कैसे हो सकता है ?किसका खून किया होगा ?
वे उनके क़दमों में थे ,और कह रहे थे -अब आप ही ,हमारा सहारा हो ,इस आत्मा से , उन बेचारों को भी मुक्ति दिलाइये।
बाबा ने बताया -वो तंत्र क्रिया करती थी, जब तक शरीर में थी सीमित थी ,अब तो वो असीमित हो गयी है ,अब शरीर का भी कोई बंधन नहीं रहा ,अब तो वो कहीं भी आ जा सकती है। जिन गुरु को आप उसे संभालने के लिए ,लाये थे ,उन्होंने उसे क्रोध ही दिलाया उसकी शक्तियाँ बांधकर ,जिसकी सजा उन्होंने भुगती ,बड़ी दुष्टा है ,वो ,बड़ी ही बुरी मौत दी है उसने।
ऐसा ऋचा के पापा ने क्या कर दिया? जो बाबा इतने क्रोधित हो गये , क्या वो उनकी सहायता करेंगे ? जानना है, तो पढ़ते रहिये -बेचारी