"अब जरा बादशाह सलामत की बात सुनिए। वह जनाब दीवान खास में तशरीफ रख रहे थे। उनके सामने सैकड़ों, बल्कि हजारों मुसाहब बैठे थे। बादशाह सलामत हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे -सामने एक साहब जो शायद शायर थे, कुछ गा-गा कर पढ़ रहे थे और कुछ मुसाहब गला फाड़-फाड़ कर ''वाह-वाह' चिल्ला रहे थे। कुछ लोग तीतर और बटेर लड़ा रहे थे। हरकारा जो पहुँचा तो यह सब बंद हो गया। बादशाह सलामत ने पूछा - "म्याँ हरकारे, क्या हुआ - इतने घबराए हुए क्यों हो?" हाँफते हुए हरकारे ने कहा - "जहाँपनाह, इन बदजात फिरंगियों ने अंधेर मचा रखा है। वह अपना तंबू बक्सर खींच लाए।" बादशाह सलामत को बड़ा ताज्जुब हुआ। उन्होंने अपने मुसाहबों से पूछा - "म्याँ, हरकारा कहता है कि फिरंगी अपना तंबू कलकत्ते से बक्सर तक खींच लाए। यह कैसे मुमकिन है?" इस पर एक मुसाहब ने कहा - "जहाँपनाह, ये फिरंगी जादू जानते हैं, जादू !" दूसरे ने कहा - "जहाँपनाह, इन फिरंगियों ने जिन्नात पाल रखे हैं - जिन्नात सब कुछ कर सकते हैं।" बादशाह सलामत की समझ में कुछ नहीं आया। उन्होंने हरकारे से कहा - "म्याँ हरकारे, तुम बतलाओ यह तंबू किस तरह बढ़ आया।" हरकारे ने समझाया कि तंबू रबड़ का है। इस पर बादशाह सलामत बड़े खुश हुए। उन्होने कहा - "ये फिरंगी भी बड़े चालाक हैं, पूरे अकल के पुतले हैं।" इस पर सब मुसाहबों ने एक स्वर में कहा - "इसमें क्या शक है, जहाँपनाह बजा फरमाते हैं।" बादशाह सलामत मुस्कुराए - "अरे भाई, किसी चोबदार को भेजो, जो इन फिरंगियों के सरदार को बुला लावे। मैं उसे खिलअत दूँगा।" सब मुसाहब कह उठे - ''वल्लाह! जहाँपनाह एक ही दरियादिल हैं - इस फिरंगी सरदार को जरूर खिलअत देनी चाहिए।" हरकारा घबराया। वह आया था शिकायत करने, यहाँ बादशाह सलामत फिरंगी सरदार को खिलअत देने पर आमादा थे। वह चिल्ला उठा - "जहाँपनाह! इन फिरंगियों ने जहाँपनाह की सल्तनत का एक बहुत बड़ा हिस्सा अपने तंबू के नीचे करके उस पर कब्जा कर लिया है। जहाँपनाह, ये फिरंगी जहाँपनाह की सल्तनत छीनने पर आमादा दिखाई देते हैं।" मुसाहब चिल्ला उठे - "ऐ, ऐसा गजब।" बादशाह सलामत की मुस्कुराहट गायब हो गई। थोड़ी देर तक सोच कर उन्होंने कहा - "मैं क्या कर सकता हूँ? हमारे बुजुर्ग इन फिरंगियों को उतनी जगह दे गए हैं, जितनी तंबू के नीचे आ सके। भला मैं उसमें कर ही क्या सकता हूँ। हाँ, फिरंगी सरदार को खिलअत न दूँगा।" इतना कह कर बादशाह सलामत फिरंगियों की चालाकी अपनी बेगमात से बतलाने के लिए हरम में अंदर चले गए। हरकारा बेचारा चुपचाप लौट आया।
"जनाब! उस तंबू ने बढ़ना जारी रखा। एक दिन क्या देखते हैं कि विश्वनाथपुरी काशी के ऊपर वह तंबू तन गया। अब तो लोगों में भगदड़ मच गई। उन दिनों राजा चेतसिंह बनारस की देखभाल करते थे। उन्होंने उसी वक्त बादशाह सलामत के पास हरकारा दौड़ाया। वह दीवान खास में हाजिर किया गया। हरकारे ने बादशाह सलामत से अर्ज की कि वह तंबू बनारस पहुँच गया है और तेजी के साथ दिल्ली की तरफ आ रहा है। बादशाह सलामत चौंक उठे। उन्होंने हरकारे से कहा - "तो म्याँ हरकारे, तुम्हीं बतलाओ, क्या किया जाय?" वहाँ बैठे हुए दो-एक उमराओं ने कहा - "जहाँपनाह, एक बड़ी फौज भेज कर इन फिरंगियों का तंबू छोटा करवा दिया जाय और कलकत्ते भेज दिया जाय। हम लोग जा कर लड़ने को तैयार हैं। जहाँपनाह का हुक्म भर हो जाय। इस तंबू की क्या हकीकत है, एक मर्तबा आसमान को भी छोटा कर दें।" बादशाह सलामत ने कुछ सोचा, फिर उन्होंने कहा - "क्या बतलाऊँ, हमारे बुजुर्ग शाहंशाह शाहजहाँ इन फिरंगियों को तंबू के नीचे जितनी जगह आ जाय, वह बख्श गए हैं। बख्शीशनामा की रूह से हम लोग कुछ नहीं कर सकते। आप जानते हैं, हम लोग अमीर तैमूर की औलाद हैं। एक दफा जो जबान दे दी वह दे दी। तंबू का छोटा कराना तो गैरमुमकिन है। हाँ, कोई ऐसी हिकमत निकाली जाय, जिससे फिरंगी अपना तंबू आगे न बढ़ा सकें। इसके लिए दरबार आम किया जाय और यह मसला वहाँ पेश हो।"
"इधर दिल्ली में तो यह बातचीत हो रही थी और उधर इन फिरंगियों का तंबू इलाहाबाद, इटावा ढकता हुआ आगरे पहुँचा। दूसरा हरकारा दौड़ा। उसने कहा - "जहाँपनाह, वह तंबू आगरे तक बढ़ आया है। अगर अब भी कुछ नहीं किया जाता, तो ये फिरंगी दिल्ली पर भी अपना तंबू तान कर कब्जा कर लेंगे।" बादशाह सलामत घबराए - दरबार आम किया गया। सब अमीर-उमरा इक्ट्ठा हो गए तो बादशाह सलामत ने कहा - "आज हमारे सामने एक अहम मसला पेश है। आप लोग जानते हैं कि हमारे बुजुर्ग शाहंशाह शाहजहाँ ने फिरंगियों को इतनी जमीन बख्श दी थी, जितनी उनके तंबू के नीचे आ सके। इन्होंने अपना तंबू कलकत्ते में लगवाया था; लेकिन वह तंबू है रबड़ का, और धीरे-धीरे ये लोग तंबू आगरे तक खींच लाए। हमारे बुजुर्गों से जब यह कहा गया, तब उन्होंने कुछ करना मुनासिब न समझा; क्योंकि शाहंशाह शाहजहाँ अपना कौल हार चुके हैं। हम लोग अमीर तैमूर की औलाद हैं और अपने कौल के पक्के हैं। अब आप लोग बतलाइए, क्या किया जाए।" अमीरों और मंसबदारों ने कहा - "हमें इन फिरंगियों से लड़ना चाहिए और इनको सजा देनी चाहिए। इनका तंबू छोटा करवा कर कलकत्ते भिजवा देना चाहिए।" बादशाह सलामत ने कहा - "लेकिन हम अमीर तैमूर की औलाद हैं। हमारा कौल टूटता है।" इसी समय तीसरा हरकारा हाँफता हुआ बिना इत्तला कराए ही दरबार में घुस आया। उसने कहा - "जहाँपनाह, वह तंबू दिल्ली पहुँच गया। वह देखिए, किले तक आ पहुँचा।" सब लोगों ने देखा। वास्तव में हजारों गोरे खाकी वर्दी पहने और हथियारों से लैस, बाजा बजाते हुए तंबू को किले की तरफ खींचते हुए आ रहे थे। उस वक्त बादशाह सलामत उठ खड़े हुए। उन्होंने कहा - "हमने तय कर लिया। हम अमीर तैमूर की औलाद हैं। हमारे बुजुर्गों ने जो कुछ कह दिया, वही होगा। उन्होंने तंबू के नीचे की जगह फिरंगियों को बख्श दी थी। अब अगर दिल्ली भी उस तंबू के नीचे आ रही है, तो आवे! मुगल सल्तनत जाती है, तो जाय, लेकिन दुनिया यह देख ले कि अमीर तैमूर की औलाद हमेशा अपने कौल की पक्की रही है," - इतना कह कर बादशाह सलामत मय अपने अमीर-उमरावों के दिल्ली के बाहर हो गए और दिल्ली पर अँगरेजों का कब्जा हो गया। अब आप लोग देख सकते हैं, इस कलियुग में भी मुगलों ने अपनी सल्तनत बख्श दी।"
हम सब लोग थोड़ी देर तक चुप रहे। इसके बाद मैंने कहा - "हीरोजी, एक प्याला चाय और पियो।"
हीरोजी बोल उठे - "इतनी अच्छी कहानी सुनाने के बाद भी एक प्याला चाय? अरे, महुवे के ठर्रे का एक अद्धा तो हो जाता।"