मोल-तोल शुरू हुआ और मामला ग्यारह तोले की बिल्ली पर ठीक हो गया।
इसके बाद पूजा-पाठ की बात आई। पंडित परमसुख ने कहा - "उसमें क्या मुश्किल है, हम लोग किस दिन के लिए हैं, रामू की माँ, मैं पाठ कर दिया करुँगा, पूजा की सामग्री आप हमारे घर भिजवा देना।"
"पूजा का सामान कितना लगेगा?"
"अरे, कम-से-कम में हम पूजा कर देंगे, दान के लिए करीब दस मन गेहूँ, एक मन चावल, एक मन दाल, मन-भर तिल, पाँच मन जौ और पाँच मन चना, चार पसेरी घी और मन-भर नमक भी लगेगा। बस, इतने से काम चल जाएगा।"
"अरे बाप रे, इतना सामान! पंडितजी इसमें तो सौ-डेढ़ सौ रुपया खर्च हो जाएगा" - रामू की माँ ने रुआँसी होकर कहा।
"फिर इससे कम में तो काम न चलेगा। बिल्ली की हत्या कितना बड़ा पाप है, रामू की माँ! खर्च को देखते वक्त पहले बहू के पाप को तो देख लो! यह तो प्रायश्चित है, कोई हँसी-खेल थोड़े ही है - और जैसी जिसकी मरजादा! प्रायश्चित में उसे वैसा खर्च भी करना पड़ता है। आप लोग कोई ऐसे-वैसे थोड़े हैं, अरे सौ-डेढ़ सौ रुपया आप लोगों के हाथ का मैल है।"
पंडि़त परमसुख की बात से पंच प्रभावित हुए, किसनू की माँ ने कहा - "पंडितजी ठीक तो कहते हैं, बिल्ली की हत्या कोई ऐसा-वैसा पाप तो है नहीं - बड़े पाप के लिए बड़ा खर्च भी चाहिए।"
छन्नू की दादी ने कहा - "और नहीं तो क्या, दान-पुन्न से ही पाप कटते हैं - दान-पुन्न में किफायत ठीक नहीं।"
मिसरानी ने कहा - "और फिर माँजी आप लोग बड़े आदमी ठहरे। इतना खर्च कौन आप लोगों को अखरेगा।"
रामू की माँ ने अपने चारों ओर देखा - सभी पंच पंडितजी के साथ। पंडित परमसुख मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने कहा - "रामू की माँ! एक तरफ तो बहू के लिए कुंभीपाक नरक है और दूसरी तरफ तुम्हारे जिम्मे थोड़ा-सा खर्चा है। सो उससे मुँह न मोड़ो।"
एक ठंडी साँस लेते हुए रामू की माँ ने कहा - "अब तो जो नाच नचाओगे नाचना ही पड़ेगा।"
पंडित परमसुख जरा कुछ बिगड़कर बोले - "रामू की माँ! यह तो खुशी की बात है - अगर तुम्हें यह अखरता है तो न करो, मैं चला" - इतना कहकर पंडितजी ने पोथी-पत्रा बटोरा।
"अरे पंडितजी - रामू की माँ को कुछ नहीं अखरता - बेचारी को कितना दुख है -बिगड़ो न!" - मिसरानी, छन्नू की दादी और किसनू की माँ ने एक स्वर में कहा।
रामू की माँ ने पंडितजी के पैर पकड़े - और पंडितजी ने अब जमकर आसन जमाया।
"और क्या हो?"
"इक्कीस दिन के पाठ के इक्कीस रुपए और इक्कीस दिन तक दोनों बखत पाँच-पाँच ब्राह्मणों को भोजन करवाना पड़ेगा," कुछ रुककर पंडित परमसुख ने कहा - "सो इसकी चिंता न करो, मैं अकेले दोनों समय भोजन कर लूँगा और मेरे अकेले भोजन करने से पाँच ब्राह्मण के भोजन का फल मिल जाएगा।"
यह तो पंडितजी ठीक कहते हैं, पंडितजी की तोंद तो देखो!" मिसरानी ने मुस्कुराते हुए पंडितजी पर व्यंग्य किया।
"अच्छा तो फिर प्रायश्चित का प्रबंध करवाओ, रामू की माँ ग्यारह तोला सोना निकालो, मैं उसकी बिल्ली बनवा लाऊँ - दो घंटे में मैं बनवाकर लौटूँगा, तब तक सब पूजा का प्रबंध कर रखो - और देखो पूजा के लिए…"
पंडितजी की बात खतम भी न हुई थी कि महरी हाँफती हुई कमरे में घुस आई और सब लोग चौंक उठे। रामू की माँ ने घबराकर कहा - "अरी क्या हुआ री?"
महरी ने लड़खड़ाते स्वर में कहा - "माँजी, बिल्ली तो उठकर भाग गई!"