shabd-logo

भाग 2

10 अगस्त 2022

26 बार देखा गया 26

शशिबाला की और मेरी दोस्ती आशा से अधिक बढ़ गई। मैं विवाहित हूँ, यह तो आप लोग जानते ही हैं; और साथ ही मेरी पत्नी सुन्दरी भी है। इसलिए यह भी कह सकता हूँ कि मेरी दोस्ती आवश्यकता से भी अधिक बढ़ गई। शशिबाला में एक विचित्र प्रकार का आकर्षण था, जो गृहिणी में नहीं मिल सकता। शशिबाला की शिक्षा और उसकी संस्कृति ! मैं नित्य ही उसके यहाँ आने लगा । कभी-कभी रात-रात-भर मैं घर नहीं लौटा ।

एक दिन जब सुबह मेरी आँख खुली तो सर में कुछ हल्का-हल्का दर्द हो रहा था। मैं उठकर पलंग पर बैठ गया। वह कमरा शशिबाला का था। पर शशिबाला उस समय कमरे में न थीं, वह बाथरूम में स्नान कर रही थीं। घड़ी देखी, आठ बज रहे थे। अँगड़ाई लेकर उठा, खिड़की खोली। सूर्य का प्रकाश कमरे में आया। रात को जरा अधिक देर तक जगा था-सर में शायद उसी से दर्द हो रहा था। ड्रेसिंग-टेबल में लगे हुए आईने में मैंने अपना मुख देखा, सिर्फ आँखें लाल थीं और चेहरा कुछ उतरा हुआ | एकाएक मेरी दृष्टि ड्रेसिंग-टेबल के कोने में चिपके हुए कागज के टुकड़े पर पड़ गई। उसमें कुछ लिखा हुआ था। उसे पढ़ा, अँगरेजी में लिखा था, 'प्रकाशचन्द्र' यह प्रकाशचन्द्र कौन है ? मैं इसी पर कुछ सोच रहा था कि मैंने शशिवाला देवी का वेनिटी-बाक्स देखा। वैसे तो वेनिटी-बाक्स कई बार ऊपर से देखा है, उस दिन उसे अन्दर से देखने की इच्छा हुई। पाउडर, क्रीम लिपस्टिक, ब्राउ-पेंसिसल आदि कई चीजें सजी हुई रखी थीं। सबको उलटा-पुलटा। एकाएक वेनिटी-बाक्स की तह में एक कागज चिपका हुआ दिखलाई दिया जिसमें लिखा था, 'सत्यनारायण' । वेनिटी-बाक्स बन्द किया लेकिन प्रकाशचन्द्र और सत्यनारायण-इन दोनों ने मुझे एक अजीब चक्कर में डाल रखा था। एकाएक मेरी दृष्टि कोने में रखे हुए ग्रामोफोन पर पड़ी। सोचा, एक-आध रिकॉर्ड बजाऊँ तो समय कटे। ग्रामोफोन खोला और खोलने के साथ ही चौंककर पीछे हटा।

अन्दर, ऊपरवाले ढकने के कोने में एक कागज चिपका हुआ था जिस पर लिखा था, 'ख्यालीराम' । वहाँ से हटा, हारमोनियम बजाने की इच्छा हुई। धौंकनी में एक कागज था, जिस पर लिखा था-'भूटासिंह ।' चुपके से लौटा, कपड़े पहने; लेकिन जूता पलंग के नीचे चला गया था। उसे उठाने के लिए नीचे झुका-उफ् ! पाए में पीछे की ओर एक कागज चिपका हुआ था, “मुहम्मद सिद्दीक ।'

अब तो मैंने कमरे की चीजों को गौर से देखना आरम्भ किया। सबमें एक-एक कागज चिपका हुआ और उस कागज पर एक-एक नाम-जैसे, 'विलियम डर्बी, 'पेस्टनजी सोराबजी बागलीवाला,' 'रामेन्द्रनाथ चक्रवर्ती', 'श्रीकृष्ण रामकृष्ण मेहता', 'रामायण टंडन', 'रामेश्वर सिंह' आदि-आदि।

उस निरीक्षण से थककर मैं बैठा ही था कि शशिबाला देवी बाथरूम से निकलीं। मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा-“परमेश्वरी बाबू ! आज बड़ी देर से सोकर उठे।”

मैंने सर झुकाए उत्तर दिया-“सोकर उठे हुए तो बड़ी देर हो गई। इस बीच में मैंने एक अनुचित काम कर डाला, मुझे क्षमा करोगी ?”

मेरे पास आकर और मेरा हाथ पकड़ते हुए उन्होंने कहा-“मैं तुम्हारी हूँ, मुझसे क्यों क्षमा माँगते हो।”

“फिर भी क्षमा माँगना मैं आवश्यक समझता हूँ। एक बात पूछूँ, सच-सच बतलाओगी ?”

“तुमसे झूठ बोलने की मैंने कल्पना तक नहीं की है !”

“नहीं, वचन दो कि सच-सच बतलाओगी !”

मेरे गले में हाथ डालते हुए शशिबाला ने कहा-“मैं वचन देती हूँ।”

मैंने कहा-“मैंने तुम्हारे कमरे को प्रथम बार, आज पूरी तरह से देखा है, और वह भी तुम्हारी अनुपस्थिति में। मैं जानता हूँ कि मुझे ऐसा न करना चाहिए था, पर उत्सुकता ने मुझ पर विजय पाई। उसने मुझे नीचे गिराया। हाँ, मैंने तुम्हारे कमरे की सब चीजों को देखा, बड़े ध्यान से। पर एक विचित्र बात है, हरएक चीज पर एक कागज चिपका हुआ है जिस पर एक पुरुष का नाम लिखा है। अलग-अलग चीजों पर अलग-अलग पुरुषों के नाम लगे हैं। इस रहस्य को लाख प्रयत्न करने पर भी मैं नहीं समझ सका। अब मैं तुमसे ही इस रहस्य को समझना चाहता हूँ।”

शशिबाला देवी मुस्कुरा रही थीं, उन्होंने धीरे से कोमल स्वर में कहा-“परमेश्वरी बाबू, यह रहस्य जैसा है वैसा ही रहने दो-उस रहस्य का चुप मुझसे न समझो। तुम इस रहस्य को समझकर दुखी हो जाओगे और बहुत सम्भव है इसे जानकर तुम नाराज भी हो जाओ।”

“नहीं, मैं दुखी न होऊँगा और न नाराज ही होऊँगा।”

“अच्छा, तुम मुझे वचन दो ।”

“मैं वचन देता हूँ।"

भगवती चरण वर्मा की अन्य किताबें

29
रचनाएँ
भगवतीचरण वर्मा की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
यह कहानी हमारे उस सामाजिक मानसिकता पर प्रकाश डालती है, जहाँ सारे रिश्ते बंधन केवल स्वार्थ और धन की डोर से बंधे हैं ।धन-संपत्ति केंद्र-बिंदु में आने पर वही रिश्ते प्रिय लगने लगते हैं और धन-संपत्ति की वजह से ही रिश्तो में दरार भी आ जाती है। यह कहानी उस सामाजिक विडंबना को भी प्रदर्शित करती है ।भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखी गई एक अच्छी कहानी है। इस कहानी के अपने परिवार के सदस्यों के व्यवहार एवं आदतों से सर्वथा परिचित थे। वह उन पर विश्वास नहीं करते थे। यहाँ तक कि अपनी पत्नी जसोदा देवी पर भी उन्हें विश्वास नहीं था। उन्हें वसीयत सौंपने या अपना उत्तराधिकारी बनाने के योग्य भी उन्होंने उसे नहीं समझा और अपने परम शिष्य जनार्दन जोशी को वह वसीयत सौंप देते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद वही उसे परिवारवालों के सामने पढ़कर सुनाये।.
1

प्रायश्चित भाग 1

10 अगस्त 2022
4
0
0

अगर कबरी बिल्‍ली घर-भर में किसी से प्रेम करती थी, तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी, तो कबरी बिल्‍ली से। रामू की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, प

2

भाग 2

10 अगस्त 2022
3
0
0

आवाज जो हुई तो महरी झाड़ू छोड़कर, मिसरानी रसोई छोड़कर और सास पूजा छोड़कर घटनास्‍थल पर उपस्थित हो गईं। रामू की बहू सर झुकाए हुए अपराधिनी की भाँति बातें सुन रही है। महरी बोली - "अरे राम! बिल्‍ली तो मर

3

भाग 3

10 अगस्त 2022
0
0
0

मोल-तोल शुरू हुआ और मामला ग्‍यारह तोले की बिल्‍ली पर ठीक हो गया। इसके बाद पूजा-पाठ की बात आई। पंडित परमसुख ने कहा - "उसमें क्‍या मुश्किल है, हम लोग किस दिन के लिए हैं, रामू की माँ, मैं पाठ कर दिया कर

4

दो बाँके भाग 1

10 अगस्त 2022
0
0
0

शायद ही कोई ऐसा अभागा हो जिसने लखनऊ का नाम न सुना हो; और युक्‍तप्रांत में ही नहीं, बल्कि सारे हिंदुस्‍तान में, और मैं तो यहाँ तक कहने को तैयार हूँ कि सारी दुनिया में लखनऊ की शोहरत है। लखनऊ के सफेदा आम

5

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

इस सवाल का पूछा जाना था कि नवाब साहब के उद्गारों के बाँध का टूट पड़ना था। बड़े करुण स्‍वर में बोले - "क्‍या बतलाऊँ हुजूर, अपनी क्‍या हालत है, कह नहीं सकता! खुदा जो कुछ दिखलाएगा, देखूँगा! एक दिन थे जब

6

भाग 3

10 अगस्त 2022
0
0
0

पुल के बीचोंबीच, एक-दूसरे से दो कदम की दूरी पर दोनों बाँके रुके। दोनों ने एक-दूसरे को थोड़ी देर गौर से देखा। फिर दोनों बाँकों की लाठियाँ उठीं, और दाहिने हाथ से बाएँ हाथ में चली गईं। इस पारवाले बाँके

7

मुगलों ने सल्तनत बख्श दी भाग 1

10 अगस्त 2022
2
0
0

हीरोजी को आप नहीं जानते, और यह दुर्भाग्‍य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्‍य है, दुर्भाग्‍य हीरोजी का भी है। कारण, वह बड़ा सीधा-सादा है। यदि आपका हीरोजी से परिचय हो जाए, तो आप निश्‍च

8

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

"लेकिन असल बात यह है कि शाहजादी रौशनआरा - वही शाहंशाह शाहजहाँ की लड़की -हाँ, वही शाहजादी रौशनआरा एक दफे जल गई। अधिक नहीं जली थी। अरे, हाथ में थोड़ा-सा जल गई थी, लेकिन जल तो गई थी और थी शाहजादी। बड़े-ब

9

भाग 3

10 अगस्त 2022
0
0
0

"अब जरा बादशाह सलामत की बात सुनिए। वह जनाब दीवान खास में तशरीफ रख रहे थे। उनके सामने सैकड़ों, बल्कि हजारों मुसाहब बैठे थे। बादशाह सलामत हुक्‍का गुड़गुड़ा रहे थे -सामने एक साहब जो शायद शायर थे, कुछ गा-

10

प्रेजेंट्स भाग 1

10 अगस्त 2022
0
0
0

हम लोगों का ध्यान अपनी सोने की अँगूठी की ओर, जिस पर मीने के काम में 'श्याम' लिखा था, आकर्षित करते हुए देवेन्द्र ने कहा-“मेरे मित्र श्यामनाथ ने यह आँगूठी मुझे प्रेजेंट की। जिस समय उसने यह अँगूठी प्रेजे

11

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

शशिबाला की और मेरी दोस्ती आशा से अधिक बढ़ गई। मैं विवाहित हूँ, यह तो आप लोग जानते ही हैं; और साथ ही मेरी पत्नी सुन्दरी भी है। इसलिए यह भी कह सकता हूँ कि मेरी दोस्ती आवश्यकता से भी अधिक बढ़ गई। शशिबाला

12

भाग 3

10 अगस्त 2022
0
0
0

शशिबाला कुर्सी पर बैठ गई। “परमेश्वरी बाबू ! इस रहस्य में मेरी कमजोरी है और साथ ही मेरा हृदय है। ये सब चीजें मुझे अपने प्रेमियों से प्रेजेंट में मिली हैं। याद रखिएगा कि मैंने प्रत्येक प्रेमी से केवल एक

13

आवारे भाग 1

10 अगस्त 2022
0
0
0

कुछ लोग दार्शनिक होते हैं, कुछ लोग दार्शनिक दिखते हैं। यह जरूरी नहीं कि जो दार्शनिक हो वह दार्शनिक न दिखे, या जो दार्शनिक दिखे वह दार्शनिक न हो, लेकिन आमतौर से होता यही है कि जो दार्शनिक होता है वह दा

14

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

पांडे हँस पड़ा, "तुम्हें विलेन और मुझे हीरो। मुझसे भी वादा किया था!" रामगोपाल चौंक पड़ा। उसे बड़ी आसानी से विलेन का पार्ट मिल सकता है, यही नहीं अगर कोई समझदार डायरेक्टर हो तो वह हीरो भी बना सकता है- इ

15

भाग 3

10 अगस्त 2022
0
0
0

रामगोपाल को साथ लेकर जब पांडे और सिंह कमरे में पहुँचे, उस समय मिस्टर परमेश्वरीदयाल वर्मा अपनी हजामत बना रहे थे। एक ट्रंक और एक बिस्तर के साथ एक नए आदमी का कमरे में प्रवेश देखकर मिस्टर वर्मा चौंके, घूर

16

भाग 4

10 अगस्त 2022
0
0
0

छबीलदास ने टाई गले से उतारकर वर्मा को दे दी और मिस्टर वर्मा सज-धजकर तैयार हो गए। अपने ट्रंक से उन्होंने स्टेट एक्सप्रेस का एक टिन निकाला और दस सिगरेटें जो वास्तव में स्टेट एक्सप्रेस की थीं, उन्होंने ए

17

भाग 5

10 अगस्त 2022
0
0
0

"कहो भाई मुलाकात हुई?" पांडे ने पूछा। "हुई भी और नहीं भी हुई।" छबीलदास ने सिगरेट का एक गहरा कश खींचकर उत्तर दिया। "यह तो पहेली बुझा रहे हो।" सिंह हँस पड़ा। "बात यह है कि जब मैंने उसके मकान में घंटी ब

18

भाग 6

10 अगस्त 2022
0
0
0

वर्मा ने उसी प्रकार गंभीरता से उत्तर दिया, "जीवन-मरण का प्रश्न है - तब तो तुम्हें किसी - न - किसी प्रकार रूपयों का इंतजाम करना ही होगा। मेरे पास तो इस समय एक पैसा नहीं है और अगर एक हफ्ता ठहर सकते तो प

19

भाग 7

10 अगस्त 2022
0
0
0

"खैर, कोई बात नहीं। तो अगर आप बुरा न मानें तो एक बात पूछूँ।" "हाँ, हाँ!" "सुशीला ने क्यों बुलाया था? क्या किसी मुसीबत में है?" छबीलदास ने कहा, "हाँ, बहुत बड़ी मुसीबत में हैं। इस सेठ ने उसे छोड़ दिया ह

20

भाग 8

10 अगस्त 2022
0
0
0

उस दिन मिस्टर वर्मा ने पंजाब के एक बहुत बड़े व्यापारी को फाँसा था और उसे वे ताजमहल होटल में डिनर खिलाने को ले गए थे। रामगोपाल को एक स्त्री के साथ ताजमहल होटल में बैठा देखकर स्वाभाविक रूप से मिस्टर वर्

21

भाग 9

10 अगस्त 2022
0
0
0

रामगोपाल को एक दिन नौकरी मिली, दूसरे दिन उसकी नौकरी छूट गई। कल एक हीरोइन मिली जिसके साथ में रहकर उसने लखपती होने के सपने बनाए थे, आज वह हीरोइन हाथ से निकल गई। उसने जेब से अपना पर्स निकाला - अब उसमें क

22

इंस्टालमेंट भाग 1

10 अगस्त 2022
0
0
0

चाय का प्याला मैंने होंठों से लगाया ही था कि मुझे मोटर का हार्न सुनाई पड़ा। बरामदे में निकल कर मैंने देखा, चौधरी विश्वम्भरसहाय अपनी नई शेवरले सिक्स पर बैठे हुए बड़ी निर्दयता से एलेक्ट्रिक हार्न बजा रह

23

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

"क्या कहीं से कुछ फरमाइश तो नहीं हुई है... ?" मैंने भेदभरी दृष्टि डालते हुए पूछा। "नहीं, फरमाइश नहीं हुई है, इसका मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ।" सकपकाते हुए चौधरी साहब ने कहा। मैं ताड़ गया कि दाल में

24

वसीयत भाग 1

10 अगस्त 2022
0
0
0

जिस समय मैंने कमरे में प्रवेश किया, आचार्य चूड़ामणि मिश्र आंखें बंद किए हुए लेटे थे और उनके मुख पर एक तरह की ऐंठन थी, जो मेरे लिए नितांत परिचित-सी थी, क्‍योंकि क्रोध और पीड़ा के मिश्रण से वैसी ऐंठन उन

25

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

अब मुझे आचार्य चूड़ामणि मिश्र की वसीयत में दिलचस्‍पी आने लगी थी, लेकिन आचार्य की आज्ञा मुझे शिरोधार्य करनी थी, इसलिए वसीयत को तहकर मैंने अपनी जेब के हवाले किया। आचार्य प्रवर का भौतिक शरीर अगले चौबीस घ

26

भाग 3

10 अगस्त 2022
0
0
0

ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक की ओर सब लोगों की निगाहें उठ गईं और सहसा ज्ञानेन्‍द्रनाथ पाठक उठ खड़े हुए, 'यह बूढ़ा हमेशा का बदमिजाज और बदजबान रहा है, मरने के पहले पागल भी हो गया था!' और उन्‍होंने अपनी पत्‍नी स

27

भाग 4

10 अगस्त 2022
1
0
0

मैंने संजीवन पांडे को डांटा - 'तुमको शर्म नहीं आती, जो अपने पिता-तुल्‍य पूज्य आचार्य को खबीस बूढ़ा कह रहे हो! अच्‍छा, मैं आठवां अनुच्‍छेद पढ़ता हूं - 'मैं चूड़ामणि मिश्र अपने भतीजे जगत्‍पति मिश्र राज-

28

वरना हम भी आदमी थे काम के भाग 1

10 अगस्त 2022
0
0
0

लोग मुझे कवि कहते हैं, और गलती करते हैं; मैं अपने को कवि समझता था और गलती करता था। मुझे अपनी गलती मालूम हुई मियाँ राहत से मिलकर, और लोगों को उनकी गलती बतलाने के लिए मैंने मियाँ राहत को अपने यहाँ रख छो

29

भाग 2

10 अगस्त 2022
0
0
0

युवती ने पाँच रुपए का नोट मियाँ राहत को देते हुए कहा-“हाँ, अभी हाल में ही मोटर चलानी सीखी है। लो, अपने बचने की खैरात बॉँट देना।” अपने हाथ हटाकर जेब में डालते हुए मियाँ राहत ने अपना मुँह फेर लिया--“मि

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए