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भाग 7

10 अगस्त 2022

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"खैर, कोई बात नहीं। तो अगर आप बुरा न मानें तो एक बात पूछूँ।" "हाँ, हाँ!" "सुशीला ने क्यों बुलाया था? क्या किसी मुसीबत में है?" छबीलदास ने कहा, "हाँ, बहुत बड़ी मुसीबत में हैं। इस सेठ ने उसे छोड़ दिया है। घर में खाने तक के लिए पैसा नहीं है।" यह कहकर उसने सुशीला की अँगूठी निकाली, "उसने यह अँगूठी बेचने को दी है, लेकिन मैं अँगूठी बेचना नहीं चाहता।"

"अँगूठी बेचना तो बुरा होगा।" "लेकिन मैं क्या करूँ - मेरे पास रुपए नही हैं।" छबीलदास ने जरा रूककर कहा, "अगर तुम मुझे पच्चीस रुपए उधार दे सको तो मेरी इज्जत बच जाए।"

रामगोपाल ने पच्चीस रुपए निकालकर छबीलदास को देकर कहा, "लेकिन इस पच्चीस रुपए से तो सुशीला का काम न चलेगा। आगे चलकर क्या करना होगा - तुमने यह भी सोचा?" छबीलदास ने देखा कि उसके सामने एक देवता पुरुष बैठा है। चंद मिनटों की मुलाकात में उसने छबीलदास को पच्चीस रुपए दे दिए। उसने कहा, "यह तो नहीं सोचा! तुम इसमें कुछ मदद कर सकते हो?"

रामगोपाल ने जरा हिचकिचाहट के साथ कहा, "आप मेरी सलाह मानो तो सुशीला को किसी फिल्म कंपनी में नौकर रखवा दो। मैं कई डायरेक्टरों को जानता हूँ - अगर तुम चाहो तो मैं दौड़ - धूप कर दूँगा। हजार - पाँच सौ रुपए की नौकरी आसानी से मिल जाएगी।"

बात छबीलदास की समझ में आ गई। उन्होंने रामगोपाल से हाथ मिलाया, "बात तुमने लाख रुपए की कही। मैं एक दिन तुम्हें सुशीला से मिलवा दूँगा। इस बीच में तुम अपने डायरेक्टर दोस्तों से बात कर लो।"

छबीलदास ने रामगोपाल का सुशीला से परिचय करा दिया। रामगोपाल सुशीला को लेकर सेवा फिल्म कंपनी को डायरेक्टर मिस्टर व्रती के यहाँ पहुँचा।

मिस्टर व्रती फिल्म लाइन में मशहूर आदमी थे। ना जाने कितनी फिल्में उन्होंने बनाई, न जाने कितनी फिल्में उन्होंने अधबनी छोड़ दी। बड़े ठाठ से रहते थे। उनके मकान में ही उनका दफ्तर था।

मिस्टर व्रती को एक नई हीरोइन की जरूरत थी क्योंकि उनके नए सेठ ने उनसे कह दिया था कि फर्स्ट क्लास नई-हीरोइन चाहिए, जिस तनख्वाह पर भी हो। मिस्टर व्रती के मकान पर हीरोइनों का ताँता लगा रहता था जिनमें कुछ व्रती साहब नामंजूर कर देते थे और कुछ को उनके नए सेठ। सुशीला को देखते ही व्रती साहब प्रसन्न हो गए; उनके दिल ने साफ कह दिया कि सेठ जी इस हीरोइन को पसंद कर लेंगे।

उन्होंने बजाय रामगोपाल के सुशीला से कहा, "मैंने आज से ही आपको हजार रुपए पर रख लिया - एक पिक्चर बनाने पर मैं आपकी तनख्वाह डेढ़ हजार रुपये महीने कर दूँगा।"

रामगोपाल ने उसी समय कहा, "वह तो ठीक है, लेकिन जब तक आप मुझे अपनी पिक्चर में रोल नहीं देंगे तब तक यह काम न करेंगी।" सुशीला ने आश्चर्य से रामगोपाल को देखा। रामगोपाल ने सुशीला से कह रखा था कि वह लखपती आदमी है, उसने सुशीला को बताया कि वे पच्चीस रुपए जो छबीलदास ने उसे दिए थे, रामगोपाल से लेकर दिए थे। और अब उसने देखा कि रामगोपाल उसकी नौकरी के कमीशन में खुद नौकरी माँग रहा है। लेकिन उसने उससे कुछ कहा नहीं, मिस्टर व्रती की ओर से आँखें हटा लीं।

"अच्छी बात है - आपको भी मैं एक पार्ट दे दूँगा; लेकिन तन्ख्वाह ज्यादा न दे सकूँगा।" और उसी समय रामगोपाल को सेवा फिल्म कंपनी में ढाई सौ रुपए महीने की जगह मिल गई। सेवा फिल्म कंपनी से निकलकर रामगोपाल ने सुशीला से कहा, "बहुत बड़ा काम हो गया - इसकी खुशी में आज ताजमहल होटल में खाना खाया जाए।" पिछले कुछ दिनों से सुशीला बहुत अधिक परेशान रही थी, आज उसकी परेशानियाँ दूर हो गई थीं। उसका जी हल्का था, और वह हँसना चाहती थी, घूमना चाहती थी। सेठ हीरालाल के साथ वह एकाध दफा ताजमहल होटल गई थी और वहाँ की चहल-पहल, वहाँ के वैभव से वह प्रभावित हुई थी। उसने कहा, "अच्छी बात है।"

सुशीला को लेकर रामगोपाल ताजमहल होटल पहुँचा। वहाँ उसने सुशीला से प्रेमालाप प्रारंभ किया। सुशीला उस दिन प्रसन्न थी। यह प्रेमालाप उसे बुरा नहीं लगा। वह रामगोपाल को प्रेमालाप में बढ़ावा दे रही थी। लेकिन उन दोनों को यह पता न था कि होटल के एक कोने में एक आदमी बैठा हुआ इन दोनों की गतिविधि को बड़े ध्यान से देख रहा था।

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रचनाएँ
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यह कहानी हमारे उस सामाजिक मानसिकता पर प्रकाश डालती है, जहाँ सारे रिश्ते बंधन केवल स्वार्थ और धन की डोर से बंधे हैं ।धन-संपत्ति केंद्र-बिंदु में आने पर वही रिश्ते प्रिय लगने लगते हैं और धन-संपत्ति की वजह से ही रिश्तो में दरार भी आ जाती है। यह कहानी उस सामाजिक विडंबना को भी प्रदर्शित करती है ।भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखी गई एक अच्छी कहानी है। इस कहानी के अपने परिवार के सदस्यों के व्यवहार एवं आदतों से सर्वथा परिचित थे। वह उन पर विश्वास नहीं करते थे। यहाँ तक कि अपनी पत्नी जसोदा देवी पर भी उन्हें विश्वास नहीं था। उन्हें वसीयत सौंपने या अपना उत्तराधिकारी बनाने के योग्य भी उन्होंने उसे नहीं समझा और अपने परम शिष्य जनार्दन जोशी को वह वसीयत सौंप देते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद वही उसे परिवारवालों के सामने पढ़कर सुनाये।.
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