"लेकिन असल बात यह है कि शाहजादी रौशनआरा - वही शाहंशाह शाहजहाँ की लड़की -हाँ, वही शाहजादी रौशनआरा एक दफे जल गई। अधिक नहीं जली थी। अरे, हाथ में थोड़ा-सा जल गई थी, लेकिन जल तो गई थी और थी शाहजादी। बड़े-बड़े हकीम और वैद्य बुलाए गए। इलाज किया गया; लेकिन शाहजादी को कोई अच्छा न कर सका - न कर सका। और शाहजादी को भला अच्छा कौन कर सकता था? वह शाहजादी थी न! सब लोग लगाते थे लेप, और लेप लगाने से होती थी जलन। और तुरन्त शाहजादी ने धुलवा डाला उस लेप को। भला शाहजादी को रोकनेवाला कौन था। अब शाहंशाह सलामत को फिक्र हुई! लेकिन शाहजादी अच्छी हो तो कैसे? वहाँ तो दवा असर करने ही न पाती थी।
"उन्हीं दिनों एक अँगरेज घूमता-घामता दिल्ली आया। दुनिया देखे हुए, घाट-घाट का पानी पिए हुए पूरा चालाक और मक्कार! उसको शाहजादी की बीमारी की खबर लग गई। नौकरों को घूस देकर उसने पूरा हाल दरियाफ्त किया। उसे मालूम हो गया कि शाहजादी जलन की वजह से दवा धुलवा डाला करती है। सीधे शाहंशाह सलामत के पास पहुँचा। कहा कि डॉक्टर हूँ। शाहजादी का इलाज उसने अपने हाथ में ले लिया। उसने शाहजादी के हाथ में एक दवा लगाई। उस दवा से जलन होना तो दूर रहा, उलटे जले हुए हाथ में ठंडक पहुँची। अब भला शाहजादी उस दवा को क्यों धुलवाती। हाथ अच्छा हो गया। जानते हो वह दवा क्या थी?" हम लोगों की ओर भेद भरी दृष्टि डालते हुए हीरोजी ने पूछा।
"भाई, हम दवा क्या जानें?" कृष्णानन्द ने कहा।
"तभी तो कहते हैं कि इतना पढ़-लिख कर भी तुम्हें तमीज न आई। अरे वह दवा थी वेसलीन - वही वेसलीन, जिसका आज घर-घर में प्रचार है।"
"वेसलीन! लेकिन वेसलीन तो दवा नहीं होती," मनोहर ने कहा।
हीरोजी सँभल कर बैठ गए। फिर बोले - "कौन कहता है कि वेसलीन दवा होती है? अरे, उसने हाथ में लगा दी वेसलीन और घाव आप-ही-आप अच्छा हो गया। वह अँगरेज बन बैठा डॉक्टर - और उसका नाम हो गया। शाहंशाह शाहजहाँ बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने उस फिरंगी डॉक्टर से कहा - ''माँगो।" उस फिरंगी ने कहा - ''हुजूर, मैं इस दवा को हिन्दुस्तान में रायज करना चाहता हूँ, इसलिए हुजूर, मुझे हिन्दुस्तान में तिजारत करने की इजाजत दे दें।" बादशाह सलामत ने जब यह सुना कि डॉक्टर हिंदुस्तान में इस दवा का प्रचार करना चाहता है, तो बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा - ''मंजूर! और कुछ माँगो।" तब उस चालाक डॉक्टर ने जानते हो क्या माँगा? उसने कहा - ''हुजूर, मैं एक तंबू तानना चाहता हूँ, जिसके नीचे इस दवा के पीपे इकट्ठे किए जावेंगे। जहाँपनाह यह फरमा दें कि उस तंबू के नीचे जितनी जमीन आवेगी, वह जहाँपनाह ने फिरंगियों को बख्श दी।" शाहंशाह शाहजहाँ थे सीधे-सादे आदमी, उन्होंने सोचा, तंबू के नीचे भला कितनी जगह आवेगी। उन्होंने कह दिया - ''मंजूर।"
"हाँ तो शाहंशाह शाहजहाँ थे सीधे-सादे आदमी, छल-कपट उन्हें आता न था। और वह अँगरेज था दुनिया देखे हुए। सात समुद्र पार करके हिंदुस्तान आया था! पहुँचा विलायत, वहाँ उसने बनवाया रबड़ का एक बहुत बड़ा तंबू और जहाज पर तंबू लदवा कर चल दिया हिंदुस्तान। कलकत्ते में, उसने वह तंबू लगवा दिया। वह तंबू कितना ऊँचा था, इसका अंदाज आप नहीं लगा सकते। उस तंबू का रंग नीला था। तो जनाब, वह तंबू लगा कलकत्ते में, और विलायत से पीपे-पर-पीपे लद-लदकर आने लगे। उन पीपों में वेसलीन की जगह भरा था एक-एक अँगरेज जवान, मय बंदूक और तलवार के। सब पीपे तंबू के नीचे रखवा दिए गए। जैसे-जैसे पीपे जमीन घेरने लगे, वैसे-वैसे तंबू को बढ़ा-बढ़ा कर जमीन घेर दी गई। तंबू तो रबड़ का था न, जितना बढ़ाया, बढ़ गया। अब जनाब, तंबू पहुँचा प्लासी। तुम लोगों ने पढ़ा होगा कि प्लासी का युद्ध हुआ था। अरे सब झूठ है। असल में तंबू बढ़ते-बढ़ते प्लासी पहुँचा था, और उस वक्त मुगल बादशाह का हरकारा दौड़ा था दिल्ली। बस यह कह दिया गया कि प्लासी की लड़ाई हुई। जी हाँ, उस वक्त दिल्ली में शाहंशाह शाहजहाँ की तीसरी या चौथी पीढ़ी सल्तनत कर रही थी। हरकारा जब दिल्ली पहुँचा, उस वक्त बादशाह सलामत की सवारी निकल रही थी। हरकारा घबराया हुआ था। वह इन फिरंगियों की चालों से हैरान था। उसने मौका देखा न महल, वहीं सड़क पर खड़े होकर उसने चिल्ला कर कहा - ''जहाँपनाह, गजब हो गया। ये बदतमीज फिरंगी अपना तंबू प्लासी तक खींच लाए हैं, और चूँकि कलकत्ते से प्लासी तक की जमीन तंबू के नीचे आ गई है, इसलिए इन फिरंगियों ने उस जमीन पर कब्जा कर लिया है। जो इनको मना किया तो इन बदतमीजों ने शाही फरमान दिखा दिया।'' बादशाह सलामत की सवारी रुक गई थी। उन्हें बुरा लगा। उन्होंने हरकारे से कहा - "म्याँ हरकारे, मैं कर ही क्या सकता हूँ। जहाँ तक फिरंगियों का तंबू घिर जाय, वहाँ तक की जगह उनकी हो गई, हमारे बुजुर्ग यह कह गए हैं।'' बेचारा हरकारा अपना-सा मुँह ले कर वापस आ गया।
"हरकारा लौटा और इन फिरंगियों का तंबू बढ़ा। अभी तक तो आते थे पीपों में आदमी, अब आने लगा तरह-तरह का सामान। हिंदुस्तान का व्यापार फिरंगियों ने अपने हाथ में ले लिया। तंबू बढ़ता ही रहा और पहुँच गया बक्सर। इधर तंबू बढ़ा और उधर लोगों की घबराहट बढ़ी। यह जो किताबों में लिखा है कि बक्सर की लड़ाई हुई, यह गलत है भाई। जब तंबू बक्सर पहुँचा, तो फिर हरकारा दौड़ा।