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भाग 6

10 अगस्त 2022

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वर्मा ने उसी प्रकार गंभीरता से उत्तर दिया, "जीवन-मरण का प्रश्न है - तब तो तुम्हें किसी - न - किसी प्रकार रूपयों का इंतजाम करना ही होगा। मेरे पास तो इस समय एक पैसा नहीं है और अगर एक हफ्ता ठहर सकते तो पच्चीस-पचास-सौ जितना माँगते दे सकता था।" छबीलदास को ऐसा लगा मानो उसका हृदय बैठा जा रहा है; वह अपने दिल को सम्हालने में व्यस्त हो गया और वर्मा कह रहे थे, "देखो, मुझे कल पंद्रह रुपए की सख्त जरूरत है। एक सेठ को मैंने लंच के लिए बुलाया है - उससे बहुत बड़े बिजनेस की उम्मीद है। पच्चीस रुपए का तुम्हें इंतजाम करना ही है क्योंकि यह तुम्हारे जीवन-मरण का प्रश्न है, तो जैसे पच्चीस वैसे चालीस। कल सुबह तक पंद्रह रुपए मुझे दे देना - एक हफ्ते में मैं तुम्हें पंद्रह की जगह डेढ़ सौ रुपए वापस कर दूँगा।" रामगोपाल, वर्मा की यह बात सुनकर ठहाका मारकर हँस पड़ा।

वर्मा ने रामगोपाल के हँसने पर कोई ध्यान नहीं दिया। छबीलदास रामगोपाल की ओर घूमा, "आपका परिचय?" छबीलदास ने पूछा। छबीलदास से रामगोपाल का कोई परिचय न कराया गया था क्योंकि छबीलदास उस दिन सुबह से ही अपने मामलों में बुरी तरह उलझा हुआ था। "जी -मैं भी इसी कमरे में आज से रहने लगा हूँ - और आपका पड़ोसी हुआ। मैंने पांडे जी से आपकी दास्तान सुनी- काफी दिलचस्प थी।" "आपकी बला से।" छबीलदास ने रूखाई से उत्तर दिया। छबीलदास की रूखाई का रामगोपाल पर कोई खास असर नहीं पड़ा। इस समय वह छबीलदास से मित्रता बढ़ाने की कोशिश कर रहा था।

रामगोपाल सुलझे हुए दिमाग का आदमी था। एक साधारण कुल में बहुत बड़ी आकांक्षाएँ लेकर वह पैदा हुआ था, और उसके जीवन में नेकी, सत्य, ईमानदारी यह सब उसकी सुविधाओं पर अवलंबित थे। शायद इतना अधिक महत्वाकांक्षी और अवसरवादी होने के कारण वह आज तक न अपना कोई मित्र बना सका था और न कहीं टिक सका था। उसके रिश्तेदार उससे घबराते थे, जो स्पष्ट वक्ता थे और निर्भीक थे उन्होंने साफ-साफ उससे उनके घर में न आने को कह दिया था, जो शरीफ और मुहब्बतवाले थे वे ऐसी परिस्थिति पैदा कर देते थे कि रामगोपाल को जबर्दस्ती उनका घर छोड़ना पड़े।

ऐसा नहीं कि रामगोपाल को घर में पैसे की कोई तंगी रही हो। उसके पिता ने उसे नौकरी कर लेने को बहुत जोर दिया, मैट्रिकुलेशन-पास रामगोपाल को सौ-सवा सौ की नौकरी -बड़ी बात थी; लेकिन रामगोपाल की निगाह लाखों पर थी। उसने सुन रखा था कि सिनेमा लाइन एक ऐसी लाइन हैं जहाँ आदमी आसानी से लखपति या करोड़पति बन सकता है; और इसलिए पिता से अनुनय-विनय करके तथा एक लंबी रकम लेकर वह बंबई के लिए रवाना हो गया था।

बंबई में काफी चक्कर काटने के बाद एक बात उसकी समझ में और आई। अगर किसी युवक के साथ एक सुंदरी स्त्री है तो उसे आसानी से सफलता प्राप्त हो सकती है। लेकिन रामगोपाल को सुंदरी स्त्री कहाँ से मिलती। और आज छबीलदास की कहानी सुनकर एकाएक उनके दिमाग में यह बात आई - "क्या भगवान ने मुझे अनायास इस कमरे में इन लोगों के साथ मेरी सहायता करने के लिए भेज दिया है?" रामगोपाल ने कहा, "अजीब दुनिया हैं! दूसरों से हमदर्दी करो, उनकी सहायता करने की सोचो - लेकिन लोग इंसानियत से बात तक नहीं करते - जाने दीजिए, गलती हो गई।"

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रचनाएँ
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यह कहानी हमारे उस सामाजिक मानसिकता पर प्रकाश डालती है, जहाँ सारे रिश्ते बंधन केवल स्वार्थ और धन की डोर से बंधे हैं ।धन-संपत्ति केंद्र-बिंदु में आने पर वही रिश्ते प्रिय लगने लगते हैं और धन-संपत्ति की वजह से ही रिश्तो में दरार भी आ जाती है। यह कहानी उस सामाजिक विडंबना को भी प्रदर्शित करती है ।भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखी गई एक अच्छी कहानी है। इस कहानी के अपने परिवार के सदस्यों के व्यवहार एवं आदतों से सर्वथा परिचित थे। वह उन पर विश्वास नहीं करते थे। यहाँ तक कि अपनी पत्नी जसोदा देवी पर भी उन्हें विश्वास नहीं था। उन्हें वसीयत सौंपने या अपना उत्तराधिकारी बनाने के योग्य भी उन्होंने उसे नहीं समझा और अपने परम शिष्य जनार्दन जोशी को वह वसीयत सौंप देते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद वही उसे परिवारवालों के सामने पढ़कर सुनाये।.
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प्रायश्चित भाग 1

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भाग 2

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आवाज जो हुई तो महरी झाड़ू छोड़कर, मिसरानी रसोई छोड़कर और सास पूजा छोड़कर घटनास्‍थल पर उपस्थित हो गईं। रामू की बहू सर झुकाए हुए अपराधिनी की भाँति बातें सुन रही है। महरी बोली - "अरे राम! बिल्‍ली तो मर

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मोल-तोल शुरू हुआ और मामला ग्‍यारह तोले की बिल्‍ली पर ठीक हो गया। इसके बाद पूजा-पाठ की बात आई। पंडित परमसुख ने कहा - "उसमें क्‍या मुश्किल है, हम लोग किस दिन के लिए हैं, रामू की माँ, मैं पाठ कर दिया कर

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शायद ही कोई ऐसा अभागा हो जिसने लखनऊ का नाम न सुना हो; और युक्‍तप्रांत में ही नहीं, बल्कि सारे हिंदुस्‍तान में, और मैं तो यहाँ तक कहने को तैयार हूँ कि सारी दुनिया में लखनऊ की शोहरत है। लखनऊ के सफेदा आम

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पुल के बीचोंबीच, एक-दूसरे से दो कदम की दूरी पर दोनों बाँके रुके। दोनों ने एक-दूसरे को थोड़ी देर गौर से देखा। फिर दोनों बाँकों की लाठियाँ उठीं, और दाहिने हाथ से बाएँ हाथ में चली गईं। इस पारवाले बाँके

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मुगलों ने सल्तनत बख्श दी भाग 1

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हीरोजी को आप नहीं जानते, और यह दुर्भाग्‍य की बात है। इसका यह अर्थ नहीं कि केवल आपका दुर्भाग्‍य है, दुर्भाग्‍य हीरोजी का भी है। कारण, वह बड़ा सीधा-सादा है। यदि आपका हीरोजी से परिचय हो जाए, तो आप निश्‍च

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भाग 3

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प्रेजेंट्स भाग 1

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हम लोगों का ध्यान अपनी सोने की अँगूठी की ओर, जिस पर मीने के काम में 'श्याम' लिखा था, आकर्षित करते हुए देवेन्द्र ने कहा-“मेरे मित्र श्यामनाथ ने यह आँगूठी मुझे प्रेजेंट की। जिस समय उसने यह अँगूठी प्रेजे

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शशिबाला की और मेरी दोस्ती आशा से अधिक बढ़ गई। मैं विवाहित हूँ, यह तो आप लोग जानते ही हैं; और साथ ही मेरी पत्नी सुन्दरी भी है। इसलिए यह भी कह सकता हूँ कि मेरी दोस्ती आवश्यकता से भी अधिक बढ़ गई। शशिबाला

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भाग 3

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शशिबाला कुर्सी पर बैठ गई। “परमेश्वरी बाबू ! इस रहस्य में मेरी कमजोरी है और साथ ही मेरा हृदय है। ये सब चीजें मुझे अपने प्रेमियों से प्रेजेंट में मिली हैं। याद रखिएगा कि मैंने प्रत्येक प्रेमी से केवल एक

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आवारे भाग 1

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कुछ लोग दार्शनिक होते हैं, कुछ लोग दार्शनिक दिखते हैं। यह जरूरी नहीं कि जो दार्शनिक हो वह दार्शनिक न दिखे, या जो दार्शनिक दिखे वह दार्शनिक न हो, लेकिन आमतौर से होता यही है कि जो दार्शनिक होता है वह दा

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भाग 2

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भाग 3

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रामगोपाल को साथ लेकर जब पांडे और सिंह कमरे में पहुँचे, उस समय मिस्टर परमेश्वरीदयाल वर्मा अपनी हजामत बना रहे थे। एक ट्रंक और एक बिस्तर के साथ एक नए आदमी का कमरे में प्रवेश देखकर मिस्टर वर्मा चौंके, घूर

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भाग 4

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"कहो भाई मुलाकात हुई?" पांडे ने पूछा। "हुई भी और नहीं भी हुई।" छबीलदास ने सिगरेट का एक गहरा कश खींचकर उत्तर दिया। "यह तो पहेली बुझा रहे हो।" सिंह हँस पड़ा। "बात यह है कि जब मैंने उसके मकान में घंटी ब

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"खैर, कोई बात नहीं। तो अगर आप बुरा न मानें तो एक बात पूछूँ।" "हाँ, हाँ!" "सुशीला ने क्यों बुलाया था? क्या किसी मुसीबत में है?" छबीलदास ने कहा, "हाँ, बहुत बड़ी मुसीबत में हैं। इस सेठ ने उसे छोड़ दिया ह

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भाग 8

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उस दिन मिस्टर वर्मा ने पंजाब के एक बहुत बड़े व्यापारी को फाँसा था और उसे वे ताजमहल होटल में डिनर खिलाने को ले गए थे। रामगोपाल को एक स्त्री के साथ ताजमहल होटल में बैठा देखकर स्वाभाविक रूप से मिस्टर वर्

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चाय का प्याला मैंने होंठों से लगाया ही था कि मुझे मोटर का हार्न सुनाई पड़ा। बरामदे में निकल कर मैंने देखा, चौधरी विश्वम्भरसहाय अपनी नई शेवरले सिक्स पर बैठे हुए बड़ी निर्दयता से एलेक्ट्रिक हार्न बजा रह

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जिस समय मैंने कमरे में प्रवेश किया, आचार्य चूड़ामणि मिश्र आंखें बंद किए हुए लेटे थे और उनके मुख पर एक तरह की ऐंठन थी, जो मेरे लिए नितांत परिचित-सी थी, क्‍योंकि क्रोध और पीड़ा के मिश्रण से वैसी ऐंठन उन

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वरना हम भी आदमी थे काम के भाग 1

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लोग मुझे कवि कहते हैं, और गलती करते हैं; मैं अपने को कवि समझता था और गलती करता था। मुझे अपनी गलती मालूम हुई मियाँ राहत से मिलकर, और लोगों को उनकी गलती बतलाने के लिए मैंने मियाँ राहत को अपने यहाँ रख छो

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युवती ने पाँच रुपए का नोट मियाँ राहत को देते हुए कहा-“हाँ, अभी हाल में ही मोटर चलानी सीखी है। लो, अपने बचने की खैरात बॉँट देना।” अपने हाथ हटाकर जेब में डालते हुए मियाँ राहत ने अपना मुँह फेर लिया--“मि

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