भारत का 'मेक इन इंडिया' पार्टनर चीन है मसूद अजहर को UNO में समर्थन देने वाला
नई दिल्ली : पठानकोट हमले जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ मिले सबूत भारत संभवतः अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के पास में सौंपेगा यही नही जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ दुनिया के तमाम देश एकजुट हो हो सकते हैं। जिससे पाकिस्तान पर दबाव बढेगा। लेकिन भारत के सामने सबसे बड़ा रोड़ा चीन है। जो हर बार अपनी कोशिशों से पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को बचाता रहा है। चीन पकिस्तान का सबसे बड़ा दोस्त है और वह हर बार यूएनओ में पाकिस्तान को सुरक्षित निकाल लाया है। जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ UNO में चीन का समर्थन ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका जैसी महाशक्ति जैश को प्रतिबंधित कर चुकी है लेकिन पाकिस्तान हमेशा पाक नागरिक मसूद अजहर द्वारा चलाये जा रहे इस संगठन का बचाव करता रहा है। साल 2001 में भारतीय संसद पर हमला करने के बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में मसूद पर बैन लगाने की मांग की। यूपीए सरकार ने तो बाकायदा संसद पर हुए हमले को लेकर सबूत भी सौंपे थे। लेकिन यूएनओ के अहम् सदस्य और भारत का प्रतिद्वंदी माना जाने वाला चीन हमेशा भारत की राह में रोड़ा बनता रहा। चीन ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के सामने जैश-ए-मोहम्मद के समर्थन में यह दलील रखी कि उसके पास इस आतंकी पर बैन लगाने के पर्याप्त कारन नही हैं। चीन ने यह मानने से भी इनकार कर दिया कि संसद पर हुए हमले में मसूद अजहर का ही हाथ था। यही नहीं सुरक्षा परिषद में जब-जब पाकिस्तान में चल रहे आतंकी संगठनो पर प्रतिबन्ध की बात की गई तो चीन हर बार इस पर टांग अड़ाता रहा। चीन ने संयुक्त राष्ट्र में अल-अख्तर ट्रस्ट और अन्य संगठनों पर भी बैन का विरोध किया। इसी का असर था कि यूएनओ कभी इन संगठनों के खिलाफ कोई मजबूत एक्शन नही ले पाया। लखवी को बचाने में यूएनओ में दिया पाक का साथ 2010 में भारत ने लश्कर के दो आतंकियों रहमान मक्की और आज़म चीमा को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधो की लिस्ट में शामिल करने की मांग की तो चीन ने इसमें भी पेंच फंसा दिया। यही नही चीन ने मुंबई अटैक के आरोपी जकीउर रहमान लखवी का भी उस वक़्त समर्थन किया था जब साल 1015 में भारत ने यूएनओ में पकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश की थी कि पाकिस्तान ने उसे जेल से रिहा कर दिया है। उस वक़्त भी पाकिस्तान के समर्थन में चीन सामने आ गया था और पाकिस्तान पर दबाव नही बन पाया था। हालाँकि जमात उल दावा को भी आतंवादी लिस्ट में शामिल करने के प्रयासों को चीन ने तीन बार असफल कर दिया अंततः साल 2008 में यह कोशिश सफल हो पायी।