नई दिल्ली : भारत को विकसित बनाने की कवायद लगातार जारी है। "मेक इन इंडिया " प्रोजेक्ट के तहत प्रधानमंत्री मोदी दुनियां भर के औद्योगिक घरानों को भारत में निर्माण करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। भारत का असल सच यह भी है कि भारत में लगातार उर्जा संकट का खतरा मंडराता जा रहा है। भारत में बिजली का उत्पादन करने वाले पॉवर प्लांट लगातार संकट से जूझ रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में बिजली उत्पादन करने वाले सभी बड़े संयंत्रों की कुल क्षमता 2,68603 मेगावाट है लेकिन मई 2015 में भीषण गर्मी के दौरान देश में कुल बिजली उत्पादन 1,34892 मेगावाट था।
वर्तमान में देश के दो पॉवर प्लांट उत्पादन में पूर्ण सक्षम
इसका मतलब यह कि देश में बिजली उत्पादन का संकट बहुत बड़ा है। "पॉवर ग्रिड क्रॉप" के आंकड़ों के अनुसार साल 2010 में देश में बिजली उत्पादन करने वाले 46 पॉवर प्रोजेक्ट से बिजली का उत्पादन हो रहा था लेकिन 5 सालों के दौरान इनकी संख्या में जबरदस्त गिरावट आई साल 2014 में तो मात्र 2 पॉवर प्लांटों से ही बिजली का उत्पादन हो पा रहा है। देश में औग्द्योगिक विकास के लिए बिजली का उत्पादन अति आवश्यक है। आने वाले समय में अगर भारत में "मेक इन इंडिया" के तहत विदेशी कंपनियां कदम रखती हैं तो उनके लिए बिजली का संकट बड़ा खतरा बन सकता है।
उत्तरी और पश्चिमी भारत में 57 थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट ""रिजर्व शट डाउन" की समस्या से जूझ रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार साल 2014-15 में 830 कंपनियों ने पॉवर उत्पादन के क्षेत्र में 1459 बिलियन का निवेश किया। जबकि साल 2012 -13 में 1056 कंपनियों ने 2081 बिलियन का निवेश किया था। कुल मिलाकर संकट से जूझ रहे उर्जा क्षेत्र में निवेश के लिए भी कंपनियां हिचक रही हैं।
कोयले का भारी संकट
दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि जैसे-जैसे कोयले व पेट्रोलियम के सीमित भण्डार कम होते जाएंगे ऊर्जा संकट तो गहराता जाएगा। जिसका हमारे पास कोई वुइकल्प नही है। देश में कोयले का भंडार होने के बावजूद भी हम कोयले के लिए विदेशों पर निर्भर होते जा रहे हैं।
इस समय भारत में करीब 70% बिजली कोयला आधारित ताप बिजली घरों से आती है। लगभग 20% बिजली बड़ी पनबिजली परियोजनाओं से प्राप्त होती है। किंतु जब से विस्थापन के सवाल पर बड़े बांधों के खिलाफ आंदोलन शुरु हो गए हैं तब से ये परियोजनाएं व्यावहारिक नहीं रह गयीं हैं। एक बड़े बांध का जीवनकाल करीब 40 वर्ष होता है। यानी आने वाले समय में भारत के बिजली उत्पादन के जो दो सबसे बड़े श्रोत हैं वे समाप्त होने वाले हैं। तब हमारी बिजली कहां से आएगी ?
परमाणु उर्जा से बिजली संकट का समाधान असम्भव
भारत में परमाणु ऊर्जा से वर्तमान समय में मात्र 3% बिजली प्राप्त होती है। जब हमारे यहां परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी तो इसके जनक होमी भाभा ने भविष्यवाणी की थी कि सन् 1987 तक हम इस कार्यक्रम से 20-25,000 मेगावाट बिजली बनाएंगे। जाहिर है कि यह कार्यक्रम बहुत सफल नहीं रहा है। यदि इसके साथ परमाणु बम का कार्यक्रम नहीं जुड़ा होता तो अब तक इस कार्यक्रम को बंद करने की नौबत आ गई होती।
दुनिया के पैमाने पर भी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम दिक्कतों का सामना कर रहा है. इस कार्यक्रम में प्रमुख कठिनाई यह आ रही है कि परमाणु बिजली संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोधर्मी कचरे के सुरक्षित निबटारे का वैज्ञानिकों के पास कोई समाधान नहीं है।
भारत के योजना आयोग का 2006 का एक अध्ययन यह बताता है कि यदि भारत अमरीका परमाणु समझौता अंतत: सारी बाधाएं पार कर स्वीकृत भी हो जाता है और 2020 तक हम ज्यादा से ज्यादा 40,000 मेगावट बिजली भी बना लेते हैं तो भी वह भारत के कुल बिजली उत्पादन का 9% से ज्यादा नहीं होने वाला।