चौंकिए मत, खबर सच है, FCI के 370 मजदूरों की तनख्वाह है 4.50 लाख रुपये प्रतिमाह
चौंकिए मत, खबर सच है, FCI के 370 मजदूरों की तनख्वाह है 4.50 लाख रुपये प्रतिमाह
इंडिया संवाद ब्यूरो नई दिल्ली: अगर कोई आपसे कहे कि एक मजदूर की तनख्वाह साढ़े चार लाख रुपये प्रति माह है, तो आप क्या कहेंगे? निश्चित ही ऐसा कहने वाले को आप बेवकूफ समझेंगे, लेकिन यह सच है। चैंकाने वाली खबर यह है कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के मजदूर की तनख्वाह 4.50 लाख रुपये है, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट तक जब यह खबर पहुंची तो वह भी हैरान रह गया। इस खबर पर चकित सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफसीआई के मजदूरों जितना वेतन तो राष्ट्रपति तक को नहीं मिलता। बाहर से ठेके पर मजदूर नहीं ले सकता FCI सुप्रीम कोर्ट को अंदाजा नहीं था कि अनाज के बोरे ढोने वाले की तनख्वाह महीने में साढ़े चार लाख रुपये होगी। मजदूरों पर यह मेहरबानी केंद्र सरकार की उस नीति के कारण हो रही है जिसके तहत एफसीआई ठेके पर बाहर से मजदूर को नहीं रख सकता। इस कारण एफसीआई को अपने मजदूर (कर्मचारी) को इतना वेतन देना पड़ रहा है। सरकार को एफसीआई में अनाज प्रबंधन के लिए 18,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। अब ऐसा नहीं चलेगा एफसीआई के मजदूरों का वेतन सुन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि इस तरह का दस्तूर वास्तव में एफसीआई की हत्या करने के समान है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अब ऐसा नहीं चलेगा। अदालत ने कहा कि अनाज के संग्रह के लिए सालाना करीब 18 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। सरकार गंभीर नहीं है पीठ ने कहा कि इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। पीठ ने यह भी कहा कि पर्याप्त मात्रा में अनाज भंडार है, लेकिन सरकार गरीब लोगों को मुफ्त में अनाज वितरित नहीं कर रही है। बड़े पैमाने पर नुकसान के बावजूद सरकार गंभीर नहीं है। 370 मजदूर का मासिक वेतन चार लाख से अधिक शीर्ष अदालत ने सरकार को 10 दिनों के भीतर यह बताने के लिए कहा है कि आम लोगों के हितों को ताक पर रखकर इस तरह की जा रही उदारता को कैसे रोका जाए। अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि एफसीआई ने मजूदरों की मनमानी रोकने और घाटे से बचने के लिए ठेके पर मजदूर रखने के लिए जो आग्रह किया था, उस पर संबंधित अथॉरिटी ने क्या निर्णय लिया। 400 मजदूर का वेतन दो से ढाई लाख के बीच पीठ ने सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार से पूछा है कि पूर्व केंद्रीय खाद्य मंत्री शांता कुमार की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय कमेटी की सिफारिशों पर सरकार अमल करना चाहती है या नहीं। सॉलिसिटर जनरल को इस संबंध में सरकार की ओर से निर्देश लाने के लिए कहा गया है। पीठ ने पाया कि रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त 2014 में एफसीआई के 370 मजदूर ऐसे हैं, जिनका मासिक वेतन चार लाख रुपये से अधिक है। जबकि करीब 400 मजदूर ऐसे हैं जिनका वेतन दो से ढाई लाख रुपये के बीच है। पीठ ने कहा कि क्या एक मजदूर प्रति महीने साढ़े चार लाख रुपये कमा सकता है। 400 मजदूर ऐसे हैं जिनका वेतन दो से ढाई लाख रुपये के बीच आखिर यह कैसे संभव है। इतना तो राष्ट्रपति का वेतन नहीं है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति का वेतन डेढ़ लाख रुपये महीना है। यही कारण है कि सरकार को सालाना करीब 18 हजार करोड़ रुपये का भारी-भरकम बोझ उठाना पड़ रहा है। पीठ ने कहा कि हम इस तरह अनियमितता को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते। पीठ ने कहा कि यह बेहद गंभीर बात है। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार को पीठ ने इस मामले में मदद करने के लिए कहा है। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि उच्चस्तरीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी है। इसके अलावा बांबे हाईकोर्ट ने गत 20 नवंबर को सरकार को एक महीने में एफसीआई के आग्रह पर निर्णय लेने के लिए कहा था। पीठ ने कहा कि आखिर सरकार क्या कर रही है। अगर आप अपने द्वारा गठित कमेटी की बात नहीं मानेंगे तो हमें इस मामले में उच्चस्तरीय कमेटी का गठन करना होगा। पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि एफसीआई पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि वह अनाज का सही तरीके से भंडार नहीं कर पा रहा है। अनाज खुले में पड़ा रहता है और बर्बाद हो जाता है। अदालत ने एक बार यह भी कहा था कि अनाज को मुफ्त में गरीब लोगों में वितरित कर दिया जाए लेकिन सरकार ऐसा करने को तैयार नहीं है। पीठ ने केंद्र सरकार को 18 जनवरी तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।