जेटली के बाद अगला कौन होगा ?
मोदी सरकार के आते आते गुप्त रूप से सार्वजनिक चर्चाएं चलने लगी कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे के साथ कोई मामला हुआ है । फिर वो इस ख़बर के साथ खंडित हो गई कि कुछ और नहीं राजनाथ सिंह के आकार को कतरने ( cut to size) भर का खेल था । उसके बाद सुषमा स्वराज की बारी आई । वो लंबे समय तक स्थानीय विदेश मंत्री बनी रहीं । उन्हीं के साथ साथ वसुंधरा राजे सिंधिया भी ललित गेट के लपेटे में आ गईं । कितना हंगामा हुआ मगर संसद में एक बयान दिलाने की ज़िद पूरी होते ही विपक्ष ने अंजाम पर पहुँचा मान लिया । व्यापम के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ । वहाँ से सीबीआई की सक्रियता की ख़बरें आनी बाकी हैं लेकिन इस मामले में जेल गए मंत्री जब बाहर आए तो वैसा ही हुजूम स्वागत के लिए पहुँचा जैसा सोनिया राहुल या जेटली के समय पटियाला कोर्ट में दिखा था । लक्ष्मीकांत शर्मा नायक की तरह प्रतिष्ठित किये गए और ललित मोदी राजस्थान क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बन गए ।
अब अरुण जेटली निशाने पर हैं । 2014 के बाद वे बीजेपी के पाँचवें बड़े नेता हैं जिन पर आरोप लग रहे हैं और लगाये जा रहे हैं । यह सब एक पैटर्न के तहत हो रहा है या संयोगवश एक पैटर्न बनते जा रहा है ? कोई सबको फिक्स कर रहा है या कोई अपने आप फिक्स हो जा रहा है ? जेटली पर आरोप लगना सामान्य बात नहीं है । आम आदमी पार्टी के साहसिक उत्साह से भी आगे या पीछे की कोई रहस्यमयी कहानी ज़रूर होगी । हो सकता है कुछ भी न हो । संसद में पूछे गए कीर्ति के ही सवाल पर गृह मंत्रालय खेल मंत्रालय को लिखता है और खेल निदेशक दिल्ली सरकार को लिख देता है कि डी डी सी ए की जाँच करें ! याद कीजिये जब राजेंद्र कुमार के यहाँ छापा पड़ा तो आप नेता प्रधानमंत्री मोदी पर हमला कर रहे थे । अचानक सबकुछ जेटली जेटली हो गया । अचानक !
ये बात सही है कि जब किसी को आरोपों से रियायत नहीं मिली तो जेटली को क्यों मिले । अभी तक तो सारे आरोप उन्हीं की तरफ से आते थे लेकिन क्या किसी को भी लपेट लेना इतना आसान है ? राजस्थान क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बने ललित मोदी के ट्वीट देखेंगे तो वो भी जेटली पर हमला करते नज़र आयेंगे । आम आदमी पार्टी के जन्मकाल से पहले ही बीजेपी के सांसद कीर्ति आज़ाद डी डी सी ए के भ्रष्टाचार के मामले उठा रहे हैं । उन्हीं आरोपों की रिसायक्लिंग आप नेता कर रहे हैं । हालाँकि आरोप तय या साबित होने से पहले किसी भी नेता को नाना प्रकार की व्यक्तिगत उपमाओं से नवाज़ देना उचित नहीं है लेकिन सब यही तो करते रहे हैं । बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक के नेताओं की उपमाओं का एक शब्दकोश तैयार हो सकता है ।
मगर कोई अपनी तुलना कलमाडी से होते देख कैसे बर्दाश्त कर सकता है । वो भी जेटली जिनके पास हर सवाल का घुमावदार जवाब होता है । लेकिन उन पर लगने वाले आरोप क्या उसी घुमावदार राजनीति का हिस्सा नहीं है ? वैसे कॉमनवेल्थ गेम में मीडिया द्वारा उजागर किये जाने के पहले तक कलमाड़ी भी उसी खेल नेटवर्क के समादरित खिलाड़ी थे जिसका पार्ट इस लेख के तमाम विवादित खिलाड़ी हैं । क्या पता अब भी हो ! क्रिकेट के नेटवर्क का गेम कुछ और ही है । यही वो खेल हैं जहाँ सब मिलकर खेलते हैं । कभी कभी कप्तान और स्पीनर में झगड़ा हो जाता है !
ऐसी ही लंबी सूची विरोधी खेमे की है । राबर्ट वाड्रा से शुरू होकर राहुल सोनिया गांधी, वीरभद्र सिंह, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, यादव सिंह के ज़रिये कथित रूप से मुलायम सिंह सबको घेरा जा रहा है । विपक्ष में पास सुब्रमण्यम स्वामी जैसा रिसर्च विंग नहीं है ! न ही स्वामी के पास वक्त है कि थोड़ा व्यापम और ललित गेट या कम से कम डी डी सी ए की भी ख़बर ले लें । वैसे सारी उम्मीद एक आदमी से क्यों की जाए । कांग्रेस और आप का नेता यह जोखिम उठाये और व्यापम मामले में रिसर्च कर केस लड़े । दिग्विजय सिंह तो लगता है कि व्यापम भूल ही गए हैं । पर स्वामी नहीं भूलते । वो साहस कर जाते हैं । स्वामी का काम सिर्फ विपक्ष को धाराशाही करना है । वैसे कभी कभी वे अपने खेमे के लोगों को भी चित्त कर देते हैं । उनसे कोई जेटली के समर्थन में कोई बयान लेकर दिखाये । दिलचस्प होगा । वे काला धन के सवाल पर जेटली की शालीन सार्वजनिक आलोचना भी करते रहे हैं ।
क्या अब स्वामी जैसे नेताओं के दम पर राजनीतिक लड़ाई लड़ी जाएगी ? जल्दी ही हर दल में स्वामी की तर्ज पर कुशाग्र बुद्धि वाले वकीलों और नेताओं की ज़रूरत होगी जो विरोधी दल के बड़े नेताओं की पोल खोलते रहे । इसमें वकीलों की मौज होने वाली है । कुछ दिन पहले तक बीजेपी के सदस्य रहे और हाल फिलहाल में काला धन को लेकर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री की आलोचना करते रहे राम जेठमलानी अब अरविंद केजरीवाल की तरफ से मानहानि के मुक़दमें में पेश होंगे । ऐसी ख़बर सुनने को मिल रही है ।
आरोप आते हैं और आरोप जाते हैं । हमारे पास ऐसी कोई विश्वसनीय संस्था नहीं है जो इन बड़े खिलाड़ियों पर लगने वाले आरोपों की जाँच कर सके । तय समय में बता दे कि इन आरोपों में कोई दम है या नहीं । इन आरोपों को लेकर एक ही नीयत लगती है । कुछ दिन उछालों फिर भूल जाओ या फिर कोई ऐसा आरोप निकालो जो वो पहले के आरोप को सार्वजनिक चर्चा से गायब कर दे । गड्ढे में मिट्टी डालने जैसी बात है । आरोप लगने चाहिए लेकिन आरोपों का क्या हो यह भी सोचना चाहिए । किसी की साख पर मिट्टी डालने का खेल इतना भी आसान नहीं होना चाहिए । निश्चित रूप से उसे मानहानि के डर से महँगा नहीं किया जाना चाहिए !
राजनीति में बड़े नेताओं को छोड़ बाकी नेता ईमानदार हो गए हों ऐसा भी नहीं है । लगता है कि राजनीति दलों ने तय कर लिया है कि बड़े नेताओं को मुक़दमों से गिरायेंगे । बड़े नेताओं ने भी तय कर लिया है कि कंपनियाँ बनवाकर किसी और से ये सब काम करवायेंगे और मुक़दमा हारने पर वो जेल नहीं जायेंगे । थोड़ी बहुत नैतिक जवाबदेही के छींटे पड़ जायेंगे । बेशक मुक़दमा होना चाहिए और बड़े नेताओं के मामले भी अंजाम तक पहुँचने चाहिए लेकिन होता कहाँ है । बिना ठीक से जाँच की व्यवस्था के मुक़दमों का कोई मतलब नहीं रह जाता है ।
अगर लोकपाल जैसी व्यवस्था आ गई होती तो ऐसे बड़े राजनीतिक आरोपों की जाँच और निपटारे की उम्मीद की जा सकती थी । हमारे नेताओं को आरोप और खंडन में बहुत भरोसा है । सुविधा के अनुसार न्यूज एंकर को गरिया देते हैं और सुविधा के अनुसार उसे खिलौना पकड़ा देते हैं । जब अपनी बारी आती है तो कहते हैं न्यूज़ स्टुडियो अदालत नहीं है और जब दूसरे की बारी आती है तो स्टुडियो के एंकर का सवाल देश का ही प्रतिनिधित्व करने लगता है । हमारा प्रेस भी इन आरोपों को लेकर तरह तरह से तफ्तीश नहीं करता ।राजनीतिक दल हमेशा ऐसी व्यवस्था न होने की छूट लेते रहे हैं और लेंगे । आरोप लगाना मुश्किल हो जाएगा तो उनकी ठाठ चली जाएगी और दैनिक वाक्य कला का विकास नहीं होगा ।
कौन जानता है जेटली के बदले में कोई और निशाने पर आ जाए और बहस उस तरफ घूम जाये । और ऐसे सवाल पूछे जायें कि बड़े चले जेटली से पूछने पहले अपना तो बताइये । पहले भी यही हुआ है, आगे भी यही होगा । कुछ ही दिन पहले नेशनल हेराल्ड चला अब जेटली चल रहा है । सिनेमा की तरह ब्लाक बस्टर मुद्दे लाँच हो रहे हैं । बहस होगी फिर तहस नहस होगा । फिर बहस होगी फिर तहस नहस होगा । लोग जल्दी पूछने भी लगेंगे कि जेटली के बाद अगला कौन होगा ? नया खेप आते ही ग्राहक नए उत्साह से टूटेंगे